आखिर क्यों जरूरत पड़ी वसुंधरा सरकार को इनर इंजीनियरिंग की।

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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 20 और 21 मई को जयपुर में एक वातानुकुलित हॉल में इनर इंजीनियरिंग का शिविर आयोजित करवाया। इस शिविर में सरकार के मंत्री और विधायकों के साथ-साथ सांसद, आईएएस, आईपीएस आदि अधिकारियों को भी उपस्थित रखा। राजे का कहना है कि जिन विपरित परिस्थितियों में जनप्रतिनिधि और अफसर काम करते हैं, उसके अंतर्गत ऐसे शिविर जरूरी हैं। सीएम राजे की अपनी सोच हो सकती है, लेकिन यह दो दिवसीय शिविर तब हुआ है, जब एसीबी की टीम नेशनल हेल्थ मिशन (एनएमएम) में हुए घोटाले में आईएएस अफसरों से पूछताछ कर रही है। वहीं दूसरी ओर भीषण गर्मी में प्रदेशभर की जनता पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है। क्या जो आईएएस भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उनके लिए इनर इंजीनियरिंग हो रही है। जिस एनएचएम की जांच हो रही है उसका सालाना बजट दो हजार करोड़ रुपए का है। दलाल अजीत सोनी के टेलीफोन के संवाद को सही माना जाए तो वसुंधरा राजे सरकार के अधिकांश आईएएस और आईपीएस भ्रष्ट हैं। इन अफसरों को करोड़ों रुपए की रिश्वत के साथ-साथ मुफ्त का ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर भी चाहिए। विदेशी शराब तो जरूरी है ही। समझ में नहीं आता कि जब राजस्थान की अफसरशाही का इतना बुरा हाल है, तब सीएम किस बात की इंजीनियरिंग करवा रही है? क्या यह अफसरशाही इनर इंजीनियरिंग शिविर के लायक है? सीएम माने या नहीं इस बेइमान और निरकुंश अफसरशाही की वजह से ही अनेक लोगों की मानसिक स्थिति खराब हो गई है। अच्छा होता कि सीएम उन लोगों को खोजती और उनके लिए इनर इंजीनियरिंग का शिविर आयोजित करवाती, लेकिन हो इसका उल्टा रहा है। उन अफसरों के लिए शिविर आयोजित किया है, जिनकी वजह से लोगों की मानसिक स्थिति खराब हो रही है। जहां तक विधायक, सांसद, मंत्रियों का सवाल है तो इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये लोग तो पहले ही राजा-महाराजाओं की जिंदगी जी रहे हैं। मंत्रियों के पास वातानुकुलित कार से लेकर बंगले और सुख-सुविधाएं भरी पड़ी हैं। विधायकों के लिए स्वार्थी लोग एसी वाहन लेकर तैयार खड़े रहते है। आखिर राजे यह बताएं तो सही कि इन जनप्रतिनिधियों को इनर इंजीनियरिंग की जरूरत क्यों पड़ी है? अच्छा होता कि विधायकों, सांसदों, मंत्रियों को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में भेजकर पीने के पानी के इंतजाम करवाए जाते। राजे भले ही अच्छा महसूस करें, लेकिन प्रदेश की जो जनता भीषण गर्मी में बूंद-बूंद पानी को तरस रही है, वह सरकार को कोस रही है। जहां तक शिविर में आए सद्गुरु जग्गी वासुदेव महाराज का सवाल है तो उन्हें भी चाहिए कि वे जीवन जीने की कला न सिखाएं। आज जीवन में छोडऩे की कला सीखनी चाहिए। जब-जब मनुष्य जीने की कला सीखता है तब-तब उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और जब छोडऩे की कला सीखता है तो उसका जीवन सरल से और सरल हो जाता है।
फोटो- इनर इंजीनियरिंग के शिविर में सीएम, मंत्री, अफसर आदि।
नोट- फोटोज मेरे ब्लॉग spmittal.blogspot.in तथा फेसबुक अकाउंट पर देखें।

(एस.पी. मित्तल) (21-05-2016)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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