फिल्मों में क्या परोसा जाए, यह दर्शकों पर छोडऩा उचित नहीं। उड़ता पंजाब फिल्म पर बॉम्बे हाईकोर्ट सोच समझ कर फैसला करें।

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रिलीज होने से पहले ही चर्चित हो गई उड़ता पंजाब फिल्म पर बॉम्बे हाईकोर्ट को 13 जून को अपना फैसला सुनाना है। सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ दृश्यों पर जो आपत्ति जताई थी उसे फिल्म के निर्माता अनुराग कश्यप ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। 10 जून को अनुराग कश्यप की याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश एस.सी. धर्माधिकारी और शालिनी फणसालकर ने मौखिक टिप्पणी की कि सेंसर बोर्ड का काम फिल्में प्रमाणित करना है, सेंसर करना नहीं। फिल्म के बारे में दर्शकों को ही फैसला करने देना चाहिए। भारतीय संविधान में न्यायपालिका का पाया सबसे मजबूत और शक्तिशाली माना गया है, लेकिन यह पाया भी लोकतंत्र में ही शामिल है। आज देश के जो हालात है उसमें कोई फिल्म दर्शकों की इच्छा पर नहीं छोड़ी जा सकती। बॉम्बे हाईकोर्ट को 13 जून को अपना फैसला देने से पहले देश की वर्तमान परिस्थितियों पर विचार करना चाहिए। यह माना कि यदि कोई फिल्म खराब होगी तो दर्शक अपने आप नकार देंगे। लेकिन यदि कोई फिल्म भारत की एकता, अखंडता और सामाजिक ताने बाने को तोडऩे वाली होगी तो फिर सेंसर बोर्ड की भी जिम्मेदारी है कि वह फिल्म के ऐसे दृश्यों पर कैची चला दे। सेंसर बोर्ड का गठन भी भारतीय संविधान के अनुरुप ही हुआ है इसलिए सेंसर बोर्ड एक संवैधानिक संस्था है। उड़ता पंजाब फिल्म के अभिनेता शाहिद कपूर को भीड़ पर पेशाब करते दिखाया गया है। इतना ही नहीं फिल्म में अश्लील और भद्दी गालियां भी है। यह माना कि उड़ता पंजाब फिल्म पंजाब की नशाखोरी पर बनी हुई है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि फिल्म का निर्माता बेतुके दृश्यों को भी फिल्म में घुसेड़ दे। पंजाब हमारे जम्मू-कश्मीर प्रांत से सटा हुआ है। हम सब जानते है कि कश्मीर के हालात बद से बदतर हैं। पाकिस्तान से प्रशिक्षित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर से होकर ही पंजाब तक आ रहे हैं। अभी हाल ही में जब ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार की 32वीं बरसी मनाई गई तो श्री हरमिन्दर साहब में खुलेआम खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए। अब यदि किसी निर्माता ने आतंकवादियों के समर्थन में कोई फिल्म बना दी तो क्या इसे भी सेंसर बोर्ड प्रमाणित कर दर्शकों के भरोसे छोड़े दे? टीवी चैनलों के माध्यम से पहले ही भारतीय संस्कृति को खराब किया जा रहा है। ऐसे में यदि फिल्मों को भी बिना सेंसर के जारी किया जाता है तो देश के हालात बहुत खराब होंगे। हमारी न्यायपालिका भी इस भारतीय संस्कृति और समाज का अंग है। सिर्फ संवैधानिक संस्थाओं को डंडा मार देने से न्यायपालिका का झंडा बुलंद नहीं होगा। न्यायपालिका के लिए भी सबसे पहले देश की एकता, अखण्डता और संस्कृति को बचाना है। अच्छा होता कि सेंसर बोर्ड ने जिन दृश्यों पर आपत्ति जताई है उस पर सवाल जवाब किए जाते। यदि सेंसर बोर्ड को सिर्फ फिल्मों के प्रमाणित करने तक ही सीमित कर दिया जाएगा तो आने वाले दिनों में आतंकवादियों और देशद्रोहियों के समर्थन में भी फिल्में बनने लग जाएंगी।
(एस.पी. मित्तल) (11-06-2016)
(www.spmittal.in) M-09829071511

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