कचरे के डस्टबिन में हो रहा है गड़बड़झाला। निगम का टेंडर एक लाख 40 हजार का, लेकिन जागृति फाउंडेशन खर्च करवा रहा है 3 लाख से भी अधिक। फिर सामने आई प्रमुख शासन सचिव मंजीत सिंह की भूमिका।

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ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्थान के स्वायत शासन विभाग के प्रमुख शासन सचिव मंजीत सिंह का अजमेर नगर निगम और अजमेर विकास प्राधिकरण के कामकाज में सीधा सीधा दखल है। मंजीत सिंह के दखल की वजह से ही इन दोनों संस्थाओं को अनेक अवसरों पर बेवजह धनराशि खर्च करनी पड़ती है। आरोप है कि 15 अगस्त को अजमेर में हुए राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस के समारोह की तैयारियों में इन दोनों संस्थाओं को अनेक ठेकेदारों को उपकृत करना पड़ा है। तैयारियों के लिए लाखों रुपए का जो सामान खरीदा गया, वह अब बेकार पड़ा हुआ है। ताजा मामला भूमिगत डस्टबिन से जुड़ा है। अजमेर नगर निगम ने पिछले दिनों डस्टबिन के लिए जो टेंडर किए उसमें सेठ ब्रदर्स फर्म को डस्टबिन लगाना निर्धारित किया गया। सेठ ब्रदर्स मात्र एक लाख 40 हजार रुपए में भूमिगत डस्टबिन लगा रहा है, लेकिन वहीं जागृति फाउंडेशन के अनिल त्रिपाठी तीन लाख रुपए से भी ज्यादा में डस्टबिन लगा रहे हैं। त्रिपाठी डस्टबिन को विदेश से आयात करते हैं, जबकि सेठ ब्रदर्स ने मेकइन इंडिया की तर्ज पर स्वदेशी डस्टबिन तैयार करवाया है। सवाल उठता है कि जब स्वदेशी डस्टबिन मात्र 1 लाख 40 हजार रुपए में लग रहा है तो फिर 3 लाख रुपए से अधिक वाले डस्टबिन को क्यों लगवाया जा रहा है? असल में जागृति फाउंडेशन पर प्रमुख शासन सचिव मंजीत सिंह मेहरबान हैं। इसीलिए यह संस्था प्रदरेशभर में भूमिगत डस्टबिन लगा रही है। चूंकि अजमेर में नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत की पहल पर टेंडर हो गए इसलिए अब कोई न कोई कमी निकाल कर एक लाख चालीस हजार रुपए वाले डस्टबिन को फेल करवाया जा रहा है। चूंकि मंजीत सिंह का दबाव है इसलिए जिला कलेक्टर गौरव गोयल भी जागृति फाउंडेशन के मददगार बने हुए हैं। फाउंडेशन के प्रतिनिधि कलेक्टर को मौके पर ले जाकर टेंडर वाली फर्म की गलतियां बता रहे हैं। यह बात अलग है कि नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी रूपाराम चौधरी को अभी तक भी टेंडर वाली फर्म के डस्टबिन में कोईगड़बड़ी नजर नहीं आईहै।
चौधरी का कहना है कि दोनों ही संस्थाओं के डस्टबिन सही प्रकार से काम कर रहे हैं। उन्होंने माना कि जागृति फाउंडेशन के माध्यम से जो डस्टबिन लगते हैं उस पर निगम का एक लाख रुपए से भी ज्यादा खर्च हो जाता है। यह संस्था दो लाख रुपए में विदेशी डस्टबिन को बेचती है यानि विदेशी डस्टबिन को स्थापित करने में तीन लाख रुपए से भी ज्यादा का खर्चा होता है। भूमिगत डस्टबिन के लिए आम लोगों की भागीदारी रहती है। अभी तक अजमेर में जो भी डस्टबिन लगे हैं, उन सभी को जनसहयोग से लगाया गया है।
झूठा प्रचार
सेठ ब्रदर्स के प्रतिनिधि ललित सेठ ने एक बयान जारी कर कहा कि उनकी प्रतिद्वंद्वी संस्था (जागृति फाउंडेशन) झूठा प्रचार कर रही है। स्वदेशी डस्टबिन हर दृष्टि से मजबूत है। लेकिन यह देखने में आया है कि कुछ स्थानों पर प्रतिद्वंद्विता की वजह से डस्टबिन के इंटर लॉक में गड़बड़ी की गई। ऐसा हमारी संस्था को बदनाम करने के लिए किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्था एक लाख चालीस हजार रुपए में डस्टबिन स्थापित कर देती है।
सामाजिक सरोकार है:
जागृति फाउंडेशन के प्रतिनिधि अनिल त्रिपाठी ने कहा कि उनकी संस्था का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है। उनका उद्देश्य सामाजिक सरोकार से जुड़ा हुआ है। उनकी संस्था दो लाख रुपए में डस्टबिन विदेश से मंगवाकर नगर निगम को देती है। संबंधित स्थान पर खड्डा खोदने और अन्य कार्य निगम के द्वारा किया जाता है। इसके लिए संस्था के कार्यकर्ता जागरुकता का कार्य भी करते हैं। क्षेत्र में स्वच्छता भी बनी रहे, इसके लिए लोगों को जागरुक किया जाता है। इतना ही नहीं डस्टबिन खरीदने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है। उन्होंने कहा कि उनकी संस्था प्रदेश भर में काम कर रही है।
उपयोगिता पर सवाल:
अजमेर में भूमिगत डस्टबिन लगाने की भले ही होड़ मची हुई हो, लेकिन नगर निगम के सफाई के जानकारों ने इसकी उपयोगिता पर सवाल उठाए हैं। जानकारों का मानना है कि ऐसे डस्टबिन का उपयोग तभी हो सकता है, जब घर-घर से कचरा संग्रहण की व्यवस्था हो। इन भूमिगत पात्रों में खुला कचरा नहीं डाला जा सकता है। वैसे भी इस पात्र की क्षमता मात्र एक टन ही है। जबकि एक ट्रेक्टर में तीन टन कचरा भरा जाता है।
(एस.पी. मित्तल) (11-09-2016)
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