मुस्लिम छज्ञत्रों ने अजमेर में जमियत के अधिवेशन का विरोध किया। विचार धारा पर उठाए सवाल।

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11 नवम्बर से अजमेर में शुरू हुए जमियत उलेमा हिन्द के प्रोग्राम का मुस्लिम छात्र संगठन स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया कड़ा विरोध जताया है। संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने काली पट्टी बांधकर कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन भी किया।
एमएसओ का कहना है कि जमियत सूफ़ीवाद का ढोंगकर लोगों को बरगलाने की कोशिश कर रही है, लेकिन भारत की आम जनता जमियत के मूल विचारों से वाकिफ है और वह जानती है कि जमियत सऊदी अरब की कट्टरवादी विचारधारा की समर्थक है। शहर के लोहाखान में जुमे की नमाज़ के बाद एमएसओ के कार्यकर्ता जमा हुए। काली पट्टी बांधकर मौन जुलूस के रूप में कलेक्ट्रेट के लिए निकले। प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए एमएसओ के प्रदेश महासचिव इरफान अली ने बताया कि महमूद मदनी की अध्यक्षता वाली जमियत उलेमा ए हिंद कायड़ विश्रामस्थली में सूफीवाद के नाम पर जो प्रोग्राम कर रहे हैं, उसका हम विरोध कर रहे हैं। सब जानते हैं कि जमियत सऊदी अरब से संचालित कट्टरवादी विचारधारा के मानने वालों की संस्था है। दरअसल जबकि पूरे विश्व में वहाबी विचारधारा के खिलाफ आम जनसमुदाय खड़ा हो रहा है, ऐसे में जमियत उदारवादी सूफी विचारधारा का चोगा ओढ़कर लोगों को बहलाने की कोशिश कर रही है। एमएसओ ने अजमेर, राजस्थान और भारत के सभी लोगों से अपील की कि वह जमियत के सऊदी एजेंडे को समझने की कोशिश करें। इरफान अली ने उदाहरण देकर समझाया कि अगर महमूद मदनी वाकई सूफी हैं और सूफीवाद की विचारधारा को मानते हैं तो वह आतंकवाद में लिप्त सऊदी तानाशाह परिवार और वहाबी विचारधारा का नाम लेकर निंदा करें। इरफान ने महमूद मदनी और जमियत को चुनौती देते हुए कहा कि वह पाकिस्तान की आईएसआई और सेना से पोषित वहाबी विचारधारा और इसे पालने वाले जमातुद दावा और इसके चीफ हाफिज सईद, लश्करे तैयबा, जैशे मुहम्मद और हिज़्बुल मुजाहिइ्दीन का नाम लेकर निंदा प्रस्ताव पारित करें अन्यथा आंतकवाद पर सामान्य वक्तव्य जारी न करें।
इस मौके़ लोहाख़ान मस्जिद के इमाम मौलाना अंसार ने कहा कि जमियत के प्रमुख महमूद मदनी इतने बड़े सूफी बनते हैं तो वह अजमेर में गरीब नवाज की मजार पर चादर चढ़ाकर, आस्ताने के कदम चूमकर यह वादा करें कि वह सऊदी अरब के राजपरिवार की तरफ से पोषित वैश्विक आतंकवाद की निंदा करते हैं। मौलाना अंसार ने कहा कि महमूद मदनी जितनी बार रियाद और जेद्दा की यात्रा करते हैं अगर उसके मुकाबले एक दो बार भी अजमेर में ख्वाजा साहब की चौखट पर आ जाते तो उन्हें पता चलता कि सूफीवाद क्या है। मुफ्ती बशीरुल कादरी ने कहा कि जब से सीरिया संकट के बाद से सऊदी अरब के आतंकवाद को प्रश्रय देने की पोल खुली है, रूस और भारत में सऊदी अरब पोषित वहाबी विचारधारा को लेकर आम जनता में समझ में काफी विस्तार हुआ है। सऊदी अरब के पेट्रोडॉलर से घबराए वहाबी तत्व अलग-अलग ढोंगकर अपने आप को सूफी घोषित करने पर तुले हैं।
(एस.पी.मित्तल) (11-11-16)
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