तो क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रणनीति के तहत अजमेर में चल रहा है जमीयत का राष्ट्रीय अधिवेशन।

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500 और 1000 रुपए के नोट अचानक बंद कर देने के बाद आम लोग यह मानने लगे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ भी कर सकते हंै। नोट बंदी से सर्जिकल स्ट्राइक भी पीछे छूट गया है। कांग्रेस, सपा, बसपा, टीएमसी जैसी पार्टियों के नेता नरेन्द्र मोदी को मुस्लिम विरोधी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसे में वाहबी विचारधारा के मुसलमानों की नुमाइन्दगी करने वाली संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अजमेर में चल रहे राष्ट्रीय अधिवेशन के पीछे नरेन्द्र मोदी की रणनीति मानी जाए तो यह आश्चर्यचकित करने वाली बात होगी। मैं अपनी बात लिखूॅं, इससे पहले मेरे मित्र और नागौर जिले के लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम सिंह टापरवाल के कथन का उल्लेख करना चाहुंगा। पिछले दिनों अजमेर के जिला कलेक्टर गौरव गोयल ने जमियत के अधिवेशन को मंजूरी देने से लिखित में इंकार कर दिया तो मेरे ब्लॉग पर टापरवाल ने प्रतिक्रिया दी थी कि जमियत के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी तो नरेन्द्र मोदी के समर्थक ही हैं। गुजरात में जब चौतरफा विरोध हो रहा था तो मदनी ने ही बड़ी समझदारी से नरेन्द्र मोदी का समर्थन किया। तब मुझे भी टापरवाल के कथन और टिप्पणी पर भरोसा नहीं हुआ, लेकिन 12 नवम्बर को जब मैंने मौलाना महमूद मदनी से सीधा संवाद किया तो मुझे टापरवाल की बात सही लगी। हुआ यूं कि तीन तलाक के अनेक सवालों के दौरान ही मैंने मौलाना मदनी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान पर प्रतिक्रिया चाही तो मौलाना ने मुझसे ही पूछा कि आप मुझसे क्या कहलवाना चाहते है? मैंने कहा कि मैं उन पत्रकारों में नहीं हूं जो किसी मुद्दे पर वाद-विवाद करूं। आप यदि मेरे सवाल का जवाब न देना चाहे तो न दें। मैं तो सिर्फ आपके विचार एकत्रित करने आया हूं। मैं भाई टापरवाल को बताना चाहता हूं कि मौलाना महमूद मदनी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की। सब जानते है कि जब तीन तलाक के मुद्दे पर केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस प्रथा को बंद करने वाला शपथ पत्र दे दिया था तब नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक मंच में तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में अपनी राय दी थी। मोदी ने कहा था कि हम मुस्लिम औरतों के साथ भेदभाव नहीं कर सकते। यानि तलाक पर जो अधिकार गैर मुस्लिम औरतों को मिले हुए हैं वो ही अधिकार मुस्लिम औरतों को भी मिलने चाहिए। यानि मौलाना मदनी सुप्रीम कोर्ट में तो सरकार के हलफनामे के खिलाफ खड़े होंगे, लेकिन अदालत के बाहर नरेन्द्र मोदी पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। सब जानते हंै कि अजमेर के कलेक्टर गोयल ने गत 10 अक्टूबर को जब जमीयत के अधिवेशन को मंजूरी देने से लिखित में इंकार किया था, तब कहा गया कि अधिवेशन के दिनों में ही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर मेला तथा कायड़ विश्राम स्थली पर एनसीसी की छात्राओं का नेशनल केम्प भी होगा। यातायात और अधिवेशन में आने वाले हजारों लोगों की भीड़ का बहाना करते हुए मंजूरी से साफ इंकार कर दिया। लेकिन इसे शायद नरेन्द्र मोदी की रणनीति ही कहा जाएगा कि अब उसी कायड़ विश्राम स्थली पर जमीयत का अधिवेशन हो रहा है और इन्हीं दिनों में पुष्कर मेला भी चल रहा है तथा छात्राओं का केम्प भी लग रहा है। यह लिखने की कोई जरूरत नहीं कि केन्द्र सरकार के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी भी कायड़ विश्राम स्थली पर जमीयत के अधिवेशन को सभी सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। इसे रणनीति का हिस्सा ही कहा जाएगा कि प्रशासन की मंजूरी के बगैर ही पिछले एक माह से विश्राम स्थली पर अधिवेशन की तैयारियां होती रहीं। आज संपूर्ण विश्राम स्थली पर जमीयत के हजारों कार्यकर्ता है। बड़े-बड़े पंडाल बनाकर ठहरने और खाने-पीने के इंतजाम किए गए हैं। खुफिया पुलिस की वो रिपोर्ट भी धरी रह गई जिसमें जमीयत के अधिवेशन को सुरक्षा की दृष्टि से खतरा बताया गया था।
(एस.पी.मित्तल) (12-11-16)
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