बैंक कर्मचारी आम व्यक्ति की पीड़ा को समझें। अपने व्यवहार में करें सुधार। बहुत फर्क है उपभोक्ता और वेतन पाने वाले कर्मचारी में। =====================

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी की योजना की सफलता में बैंक कर्मचारियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह माना कि नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही बैंक कर्मचारी को ज्यादा काम करना पड़ रहा है। कर्मचारियों की इस मेहनत पर मोदी ने आभार जताया है, लेकिन बैंक कर्मचारियों को ग्राहकों की पीड़ा को भी समझना चाहिए। किसी भी ग्राहक को नोट बदलकर अथवा चैक से भुगतान देकर ग्राहक पर कोई अहसान नहीं किया जा रहा। जो पैसा अपनी मेहनत से कमाया है, उसे ही ग्राहक मांग रहा है। ऐसे में बैंक कर्मचारियों का व्यवहार अच्छा होना ही चाहिए। सरकार ने भुगतान के लिए जो मापदण्ड निर्धारित किए हैं, उसी के अनुरूप ग्राहक अपना पैसा मांग रहा है। वातानुकूलित बैंक में बैठकर प्रतिमाह मोटा वेतन प्राप्त करने वाला बैंक कर्मचारी एक बार ग्राहक की स्थिति में खड़ा होकर विचार करे। जिस ग्राहक का पैसा बैंक में जमा है, उसे निकालने के लिए घंटों लाईन में खड़ा होना पड़ रहा है। मुसीबत की बात तो यह है कि लाइन में भी बैंक के अंदर नहीं, बल्कि बैंक के बाहर सड़क पर खड़ा होना पड़ रहा है। कर्मचारी तो अपनी सुविधा को ध्यान में रखते हुये एक-एक ग्राहक को अंदर बुलवा रहा है, लेकिन वही ग्राहक स्त्री हो या पुरूष बैंक के बाहर खड़ा है। आज जो ग्राहक अपना गुस्सा जता रहा है, वह वाजिब है। ऐसे में यदि बैंक कर्मचारी परेशान ग्राहक के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेंगे तो फिर प्रधानमंत्री की नोटबंदी योजना पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। यह माना बैंकों में मांग के अनुरूप नोट नहीं आ रहे हैं, लेकिन बैंक कर्मचारी अच्छा व्यवहार कर ग्राहक को सन्तुष्ट कर सकते हैं। एक ग्राहक दो घंटे से लाइन में खड़ा है, जैसे ही उसका नंबर आया, वैसे ही नोट खत्म होने के कारण काउंटर बंद हो गया। ऐसे में ग्राहक तो गुस्सा करेगा ही। इस स्थिति को ही बैंक कर्मचारियों को समझना होगा। यह ध्यान रखना होगा कि ग्राहक अपना पैसा लेने आया है और बैंक कर्मचारी वातानुकूलित माहौल में बैठकर वेतनभोगी है। यानि ग्राहक और कर्मचारी में बहुत फर्क है। काम की अधिकता की वजह से वेतनभोगी कर्मचारी किसी ग्राहक को दुत्कार नहीं सकता।
हालात तेजी से सुधारने होंगे
21 नवंबर को नोटबंदी के 13 दिन गुजर गए, लेकिन हालातों ने खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में कोई सुधार नहीं हो पाया है। जमीनी हकीकत यह है कि आधे से ज्यादा एटीएम या तो बन्द पड़े हैं या फिर 24 घंटे में सिर्फ एक या दो घंटे ही चालू रहते हैं। बैंकों के बाहर भी भीड़ में कोई कमी नहीं आई है। उम्मीद थी कि 10 दिन में सुधरे हालात नजर आने लगेंगे, लेकिन 21 नवंबर को भी वो ही हालात रहे, जो 10 नवंबर को थे। ग्रामीण क्षेत्रों में तो अराजकता का सौ माहौल बन रहा है। डाकघर बंद पड़े है, तो 20-25 गांव पर मात्र एक बैंक है। इस बैंक में भी दिनभर में 5 लाख रुपए ही वितरित हो पाते हैं। यदि हालातों में तेजी से सुधार नहीं हुआ तो फिर स्थितियों को संभालना मुश्किल होगा। रिजर्व बैंक को चाहिए कि जल्द से जल्द सभी एटीएम को चालू करें और बैंकों को मांग के अनुरूप भुगतान करावे।

(एस.पी.मित्तल) (21-11-16)
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