कांग्रेस नेता और बीड़ी उद्योगपति हेमंत भाटी द्वारा धोखाधड़ी कर माता-पिता की सम्पत्ति हड़पने के आरोपों की जांच दोबारा से होगी। भाई ललित भाटी (पूर्व मंत्री) के विरोध पत्र पर अदालत ने निर्णय दिया।

#2025
कांग्रेस नेता और बीड़ी उद्योगपति हेमंत भाटी द्वारा धोखाधड़ी कर माता-पिता की सम्पत्ति हड़पने के आरोपों की जांच दोबारा से होगी।
भाई ललित भाटी (पूर्व मंत्री) के विरोध पत्र पर अदालत ने निर्णय दिया।
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अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ चुके अजमेर के प्रमुख बीड़ी उद्योगपति हेमंत भाटी पर लगे गंभीर आरोपों की जांच दोाबरा से होगी। हेमंत भाटी वर्तमान में भी शहर कांग्रेस में सक्रिय हैं और दक्षिण क्षेत्र से फिर से कांग्रेस टिकिट के प्रबल दावेदार हैं। विगत दिनों ही डीएवी कॉलेज छात्र संघ के पदाधिकारियों को हेमंत भाटी ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल करवाया है। हेमंत के भाई और पूर्व मंत्री ललित भाटी ने स्थानीय अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-2 की अदालत में एक विरोध पत्र प्रस्तुत किया। एडवोकेट पी.एस.सोनी और रामस्वरूप की ओर से प्रस्तुत इस विरोध पत्र में बताया गया कि 19 अप्रैल 2012 को भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468 तथा 471 में एक रिपोर्ट सिविल लाइन पुलिस थाने पर दर्ज करवाई गई थी। लेकिन पुलिस ने 14 नवम्बर 2014 को अंतिम प्रतिवेदन अदमबूक (गलत फहमी) के निष्कर्ष के साथ अदालत में पेश कर दिया। अपने विरोध पत्र में ललित भाटी ने कहा कि पुलिस ने अपनी जांच में महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर कोई अनुसंधान नहीं किया।
अदालत को बताया गया कि मेरे पिता स्व.शंकर सिंह भाटी ने मैसर्स शंकर सिंह एंड संस की सम्पत्ति की कथित वसीयत 17 दिसम्बर 2010 को की। इस कथित वसीयत पर नोटरी के हस्ताक्षर 15 फरवरी 2012 को करना बताया गया है। पुलिस ने इस बात की जांच नहीं की कि 17 दिसम्बर 2010 से लेकर 15 फरवरी 2012 तक की अवधि में कथित वसीयत किसके पास रही। जबकि परिवार वाले जानते हैं कि शंकर सिंह वर्ष 2000 से ही बोलने की स्थिति में नहीं थे। ऐसे में वसीयत किससे लिखवाई गई। वसीयत के स्टाम्प शंकर सिंह भाटी द्वारा खरीदना बताया गया है, लेकिन पुलिस ने स्टाम्प वेंडर से भी अनुसंधान नहीं किया। माताजी श्रीमती बरजी देवी की वसीयत भी उसी डीडराइटर से लिखवाना बताया, जिसने शंकर सिंह भाटी की वसीयत लिखी थी। इतना ही नहीं स्वर्गीय शंकर सिंह भाटी ने 17 दिसम्बर 2010 को ही श्रीमती बरजी देवी को अपनी सम्पत्ति से वंचित कर दिया था, तो फिर स्व.श्रीमती बरजी देवी द्वारा 12 अगस्त 2011 को उसी सम्पत्ति के संबंध में वसीयत का निष्पादन किस प्रकार से हो गया। इस पर भी पुलिस ने कोई अनुसंधान नहीं किया गया। बरजी देवी अंगूठा लगाती थी, लेकिन वसीयत में हस्ताक्षर अंकित है। विद्वान न्यायाधीश ने विरोध पत्र में उठाए गए बिंदुओं के संबंध में कहा कि पुलिस ने इन पर अनुसंधान नहीं किया है। इसलिए इस पूरे प्रकरण को दोबारा से जांच के लिए पुलिस को भेजा जाता है तथा प्रार्थी का प्रार्थना पत्र स्वीकार किए जाने योग्य है। मालूम हो कि ललित भाटी ने अपने छोटे भाई हेमंत भाटी पर जो एफआईआर दर्ज करवाई है, उसमें आरोप लगाया है कि हेमंत भाटी ने मिथ्या एवं कूटरचित दस्तावेज बना कर मेरे माता-पिता की सम्पत्ति को हड़प लिया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अजमेर के बहुचर्चित कोर्ट लिपिक घोटाले में फंसे तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश अजय शारदा के प्रकरण में भी अनुसंधान के दौरान हेमंत भाटी का नाम सामने आया था। इस प्रकरण में हेमंत भाटी की अदालत से जमानत भी हो रखी है। संभवत: पारिवारिक विवाद में फैसला अपने पक्ष में करवाने के लिए ही हेमंत भाटी ने सिफारिश की बात मोबाइल फोन पर की थी।
(एस.पी.मित्तल) (03-12-16)
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