कलेक्टर, विधायक और पालिकाध्यक्ष की तिकड़ी ने आखिर पुष्कर में भक्ति उत्सव करवा ही दिया। सीएम के नहीं आने का रहा अफसोस।

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अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर में 11 दिसंबर को 2 दिवसीय भक्ति उत्सव सम्पन्न हो गया। यूं तो इस उत्सव को करवाने का ठेका सुप्रसिद्ध इवेंट एक्सपर्ट संजीव रॉय ने लिया था, लेकिन उत्सव को कामयाब बनाने में अजमेर के जिला कलेक्टर गौरव गोयल, पुष्कर के विधायक व संसदीय सचिव सुरेश सिंह रावत तथा नगर पालिका के अध्यक्ष कमल पाठक की सक्रिय भूमिका रही। असल में संजीव रॉय की कम्पनी से पुष्कर में भक्ति उत्सव करवाने का निर्णय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है। बताया जा रहा है कि सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से रॉय की कंपनी टीम वर्क को कोई ढ़ाई करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है, इसीलिए उत्सव की पूरी लगाम रॉय के हाथों में रही है। उत्सव में देश विदेश से आने वाले कलाकारों का चयन भी संजीव रॉय ने ही किया। इसमें थोड़ा सहयोग ब्यावर की श्री सीमेंट की ओर से भी किया गया। गत वर्ष भक्ति उत्सव का आयोजन संजीव रॉय की ओर से ही पुष्कर मेल में किया गया था, लेकिन इस बार किन्हीं कारणों से भक्ति उत्सव का आयोजन मेले के दौरान नहीं हो सका। चूंकि फैसला मुख्यमंत्री राजे का था इसलिए भक्ति उत्सव को मेला सम्पन्न हो जाने के बाद 10 और 11 दिसंबर को आयोजित किया गया। पुष्कर मेले में तो बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं, इसलिए देशी-विदेशी कलाकारों का भक्ति उत्सव पर्यटन बढ़ाने के लिए मायने रखता है, लेकिन मेले के बाद भक्ति उत्सव से कितना पर्यटन बढ़ेगा, इसका जवाब इवेंट एक्सपर्ट संजीव रॉय ही दे सकते हैं। गत वर्ष पुष्कर मेले के दौरान जब संजीव रॉय ने पवित्र सरोवर के अंदर स्टेज बनाया था तब अनेक तीर्थ पुरोहितों ने एतराज किया था लेकिन इस बार कलेक्टर, विधायक और पालिका अध्यक्ष की तिकड़ी के प्रयासों और मेहनत से कोई विवाद नहीं हुआ। सीएम राजे ने संजीव रॉय के लिए इस तिकड़ी से जो उम्मीद जताई थी, उस पर यह तिकड़ी खरी उतरी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि तिकड़ी के आपसी तालमेल से भक्ति उत्सव के लिए संजीव रॉय के अनुकूल इंतजाम हो गए। तिकड़ी इससे ज्यादा और क्या कर सकती है कि विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से पवित्र सरोवर के 52 घाटों पर सजावट करवा दी। भले ही भक्ति उत्सव का भुगतान संजीव रॉय प्राप्त करें, लेकिन तिकड़ी ने बहुत सा वजन अपने कंधों पर उठा लिया।
सीएम के न आने का अफसोस
भक्ति उत्सव में सीएम वसुंधरा राजे भाग लेंगी, इसको लेकर तिकड़ी और संजीव रॉय उत्साहित थे। दस दिसंबर को सीएम के आने का निर्णय भी हो गया था, लेकिन मंत्रीमंडल में फेरदबल और विस्तार का पेच ऐसे फंसा कि सीएम चाह कर भी नहीं आ सकीं। सीएम के नहीं आने का अफसोस सभी को रहा। सीएम आतीं तो सार्वजनिक शाबासी मिल जाती। अब अनेक लोगों को सीएम के फोन का इंतहजार है। सीएम फोन पर शाबासी देने में कंजूसी नहीं करती हैं।
दलेर मेहंदी का मेहनताना और गाने
दस दिसंबर को संजीव रॉय ने दलेर मेहंदी को भी आमंत्रित किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि 10 दिसंबर को उत्सव में जो भीड़ जुटी, उसके पीछे दलेर मेहंदी की प्रस्तुति रही, लेकिन उपस्थित लोगों को इस बात का अफसोस रहा कि दलेर मेहंदी रात 9 बजे स्टेज पर आए और मुश्किल से एक घंटा ही अपनी प्रस्तुति दे पाए। नियमों के मुताबिक रात सवा 10 बजे उत्सव को समाप्त कर दिया गया। माना जाता है कि दलेर मेहंदी एक कार्यक्रम के करीब 15 लाख रुपए मेहनताना वसूलते हंै और यदि कोई इवेंट कंपनी बुलाती है तो मेहनताना 20 लाख रुपए तक पहुंच जाता है। मेहनताना क्यों बढ़ता है, इसका जवाब दलेर मेहंदी और संबंधित इवेंट कंपनी ही दे सकती है। सवाल उठता है कि क्या 15 से 20 लाख रुपए का भुगतान कर मात्र एक घंटे के लिए दलेर मेहंदी को बुलाया गया?
सरकार और संजीव रॉय को देना चाहिए खर्च का हिसाब
पुष्कर के भक्ति उत्सव पर कितने करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, इसका हिसाब राज्य सरकार और इवेंट एक्सपर्ट संजीव रॉय को देना चाहिए। सरकार जो भी पैसा खर्च करती है, वह आम जनता का होता है, इसलिए जनता को यह जानने का अधिकार है कि सरकार ने संजीव रॉय को कितना भुगतान किया और संजीव रॉय ने किस कलाकार को कितना-कितना मेहनताना दिया।
(एस.पी.मित्तल) (11-12-16)
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