संसद के शीतकालीन सत्र का भट्टा बैठाने के बाद मिले नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी। क्या यही लोकतंत्र है ?

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संसद के शीतकालीन सत्र का भट्टा बैठाने के बाद मिले नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी। क्या यही लोकतंत्र है ?
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देश की जनता ने 16 नवंबर से यह देखा कि राजनीतिक दलों के सांसदों ने किस तरह से लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा किया। 16 दिसंबर को भी शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन जब कुछ भी नहीं हो सका तो बाद में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक प्रतिनिधि मंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। राहुल ने जहां किसानों के कर्ज माफ करने का आग्रह किया, वहीं मोदी ने राहुल से कहा कि इस तरह मुलाकात करते रहना चाहिए। यानी दोनों के मध्य सौहार्दपूर्ण माहौल में संवाद हुआ है। ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने दो दिन पहले नरेन्द्र मोदी के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत होने की बात कही थी। वहीं 16 दिसंबर को इस मुलाकात से पहले मोदी ने राहुल गांधी से लेकर उनकी दादी स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी तक आरोप लगाए। सवाल उठता है कि जब संसद को नहीं चलने दिया गया तो फिर राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी की मुलाकात का क्या महत्व है और राहुल गांधी को किसानों के कर्ज की इतनी चिंता थी तो फिर इस मुद्दे को संसद में क्यों नहीं उठाया? पूरा देश टी.वी. पर देख रहा था कि विपक्षी दलों के सांसदों ने नारेबाजी और हंगामा कर दोनों सदनों को नहीं चलने दिया। इसे लोकतंत्र का मजाक ही कहा जाएगा कि जिन सांसदों ने संसद नहीं चलने दी, उन्होंने शीतकालीन सत्र का कौनसा भला किया है। बड़ी अजीब बात है कि बिना काम के ही हमारे सांसद वेतन और भत्ते ले रहे हैं। राहुल गांधी ने संसद सत्र के दौरान ही कहा था कि यदि उन्होंने संसद में बोला तो भूकंप आ जाएगा। जो राहुल गांधी संसद में भूकंप लाने का दावा कर रहे थे, वो ही नरेन्द्र मोदी से मिलने चले गए।
(एस.पी.मित्तल) (16-12-16)
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