बहादुर सिंह और जीत सिंह के बयानों को हल्के में न ले सरकार। अभी और आ सकते हैं ऐसे वीेडियो। =

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बहादुर सिंह और जीत सिंह के बयानों को हल्के में न ले सरकार।
अभी और आ सकते हैं ऐसे वीेडियो।
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बीएसएफ के जवान बहादुर सिंह के वीडियो की आवाज अभी धीमी भी नहीं हुई थी कि 12 जनवरी को सीआरपीएफ के जवान जीत सिंह का वीडियो सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर गूंज उठा। जीत सिंह ने वीडियो के माध्यम से कहा कि सेना और सीआरपीएफ के जवान की ड्यूटी एक सी है। लेकिन सरकार सुविधाएं देने में भेदभाव कर रही है। सीआरपीएफ के जवानों को सेना के जवानों की तरह न तो पेंशन मिलती है और न ही सेवानिवृत्ति के बाद आरक्षित कोटे में सरकारी नौकरी। यह माना कि सरकार ने सीआरपीएफ, बीएसएफ जैसे सुरक्षा बलों को अद्र्धसैनिक माना है, इसलिए उनकी तुलना भारतीय सेना के जवानों से नहीं की जा सकती। लेकिन देश के वर्तमान हालातों में ऐसे सुरक्षा बलों के जवान भी सेना के जवानों की तरह चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कश्मीर, उत्तर पूर्व राज्यों व बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि में आतंकियों के साथ-साथ नक्सलियों से भी उसी तरह मुकाबला करना पड़ रहा है, जैसे देश की सीमा पर सेना का जवान करता है। बल्कि कई बार तो विपरीत परस्थितियों में सुरक्षा बलों के जवानों को अपनी जान देनी पड़ती है। हालांकि यह मामला पूरी तरह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और इस पर मीडिया में फालतू के कयास नहीं लगाए जाने चाहिए। लेकिन वहीं सरकार की भी यह जिम्मेदारी है कि जवानों के आरोपों को हल्के में न लें। अब चूंकि एक के बाद एक वीडियो का सिलसिला शुरू हो गया है तो आने वाले दिनों में और भी वीडियो सामने आ सकते हैं। हो सकता है कि कुछ वीडियो एक सुनियोजित षडय़ंत्र के तहत बाहर आए। ऐसे में सरकार और सुरक्षा बलों के शीर्ष अधिकारियों को सतर्कता के साथ-साथ जवानों की समस्याओं का समाधान भी करना चाहिए। यह सही है कि वर्ष 2004 से पहले तक सीआरपीएफ के जवानों को भी पेंशन की सुविधा थी। सरकार जब वन रेंक वन पेंशन के अनुरूप सेना के जवानों को अनेक सुविधाएं दे रही हैं। तब सुरक्षा बलों के जवानों की सहूलियों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
(एस.पी.मित्तल) (12-01-17)
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