भक्ति, शक्ति और वीरता के अद्वितीय संगम थे गुरु गोविंद सिंह। शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा।

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भक्ति, शक्ति और वीरता के अद्वितीय संगम थे गुरु गोविंद सिंह। शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा।
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11 फरवरी को अजमेर स्थित जवाहर रंगमंच पर डॉ. हेडगेवार स्मृति सेवा प्रन्यास और श्री माधव स्मृति सेवा प्रन्यास की ओर से गुरु गोविन्द सिंह साहिब के 530 वें प्रकाशोत्सव वर्ष के उपलक्ष में एक संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा कि गुरु गोविन्द सिंह सिक्ख पंथ के अन्तिम धर्मगुरु ही नहीं थे, बल्कि वे भक्ति, शक्ति और वीरता के अद्वितीय संगम थे। इसलिए आज भी गुरु गोविंद सिंह का जीवन सम्पूर्ण समाज के लिए प्रासंगिक है। गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों के अत्याचार सहते हुए बार-बार अपनी वीरता दिखाई और लम्बे समय तक संघर्ष के लिए सिक्ख पंथ की स्थापना की। गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया और दशम गं्रथ का लेखन अपनी कृतियों पर किया। राठौड़ ने बताया कि जब गुरु गोविंद सिंह मात्र 10 वर्ष के थे तब 11 नवंबर 1675 को मुगल शासक औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस पुत्र के पिता की हत्या सरेआम गर्दन काटकर की गई है, उस पुत्र पर क्या बीत रही होगी। लेकिन इसके बाद भी गुरु गोविंद सिंह ने हिम्मत नहीं हारी और लम्बे संघर्ष के लिए खालसा पंथ की स्थापना की। मुस्लिम धर्म स्वीकार नहीं करने की वजह से ही गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटे जोरावर सिंह और फतह सिंह को औरंगजेब ने जिन्दा दीवार में चुनवा दिया। औरंगजेब को सबक सिखाने के लिए ही 1705 में मुक्तसर में गुरु गोविंद सिंह ने युद्ध में मुगलों को हराया। इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह को बादशाह बनवाने में गुरु गोविंद सिंह की सक्रिय भूमिका थी। इससे नाराज होकर ही नवाब वजीद खां ने धोखे से गुरु गोविंद सिंह की हत्या करवा दी। अंत समय में गुरु गोविंद सिंह ने सिख समुदाय से कहा कि अब वे गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु माने। राठौड़ ने कहा कि अपने जीवनकाल में गुरु गोविंद सिंह ने जो भक्ति, शक्ति और वीरता दिखाई, वह आज भी प्रासंगिक है। आज देश में जो हालात बन रहे हैं, उसमें गुरु गोविंद सिंह जैसे व्यक्तित्व की ही जरूरत है। राठौड़ ने कहा कि आज जिस तरह से हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, उससे हमें बचने की जरूरत है। संगोष्ठी में प्रन्यास के प्रमुख निरंजन शर्मा ने आगुन्तकों का आभार प्रकट किया।
एस.पी.मित्तल) (11-02-17)
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