जैनुल आबेदीन ने कहा मरते दम तक मैं ही ख्वाजा साहब की दरगाह का दीवान रहूंगा। भाई अलाउद्दीन कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित है।

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अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की विश्व प्रसिद्ध दरगाह के दीवान जैनुल आबेदीन ने कहा कि मैं ही मरते दम तक दीवान के पद पर रहूंगा। चूंकि मैंने जीते-जी अपने बड़े बेटे सैय्यद नसीरूद्दीन चिश्ती को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है, इसलिए मेरे मरने के बाद नसीरूद्दीन ही दीवान की गद्दी पर बैठेंगे। 5 अप्रैल को दीवान आबेदीन ने एक प्रेस कांफ्रेन्स बुलाई, इसमें पत्रकारों के सवालों के सटीक जवाब दिए। आबेदीन ने कहा कि 4 अप्रैल को मेरे छोटे भाई अलाउद्दीन अलीमी ने महफिल खाने में जो कुछ भी कृत्य किया, वह उचित नहीं है। अलाउद्दीन को मुझे दीवान के पद से हटाने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। मुझे सुप्रीम कोर्ट ने दीवान घोषित किया है, इसलिए मरते दम तक मैं ही दीवान रहूंगा। खानकाह सिलसिले में दीवान का पद पुश्तैनी है। मैंने और मेरे पिता मरहूम अलीमुद्दीन चिश्ती ने दीवान का पद हासिल करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा कि अलाउद्दीन को कानून की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं हमेशा देश हित में बयान जारी करता हूं। ख्वाजा साहब का वशंज होने की वजह से मैं धर्मगुरू भी हूं। उन्होंने आरोप लगाया कि उनका छोटा भाई कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित होकर गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहा है।
भाई ने की है हटाने की घोषणा :
आबेदीन को दरगाह दीवान के पद से हटाने की घोषणा उनके छोटे भाई अलाउद्दीन अलीमी ने ही की है। अलीमी का कहना है कि तीन तलाक के विषय पर जैनुल आबेदीन ने मुस्लिम धर्म के विरूद्व बयान दिया है। इसलिए मुफ्तियों की निगाह में आबेदीन मुसलमान नहीं रहे। उन्होंने कहा कि मैं देश के प्रमुख मुफ्तियों से इस संबंध में फतवा मांग रहा हूं। चूंकि एक मुफ्ती ने मौखिक तौर पर आबेदीन को मूर्तिद कर दिया है। इसलिए अब मैं ही दरगाह दीवान की भूमिका निभाऊंगा। मैंने 4 अप्रैल से ख्वाजा साहब की दरगाह में धार्मिक रस्मों को निभाने का काम भी पूरा कर दिया है।
महफिल में हो सकता है विवाद :
दरगाह में प्रत्येक गुरुवार को अहाता-ए-नूर में महफिल होती है। परम्परा के मुताबिक इस महफिल की सदारत दरगाह दीवान ही करते हैं। माना जा रहा है कि 6 अप्रैल की रात को होने वाली महफिल में दोनों भाईयों के बीच विवाद हो सकता है।
समझौते पर असर :
दीवान के पद को लेकर जैनुल आबेदीन और उनके भाई अलाउद्दीन अलीमी के बीच जो विवाद हुआ है, उसका असर खादिमों के साथ हुए समझौते पर भी पड़ सकता है। आबेदीन ने गत वर्ष ही नजराने के बंटवारे के तहत खादिमों के साथ समझौता किया है। अदालत के बाहर हुए इस समझौते में खादिम समुदाय कोई दो करोड़ रुपए की राशि प्रतिवर्ष दीवान आबेदीन को दे रहा है। खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा और शेख जादगान के सचिव डॉ. अब्दुल माजिद चिश्ती ने कहा है कि दोनों भाईयों के विवाद से हमारा कोई सरोकार नहीं है। आबेदीन की नियुक्ति वैधानिक तरीके से हुई है। यदि अलाउद्दीन अलीमी कोई सरकारी आदेश अपने पक्ष में लाते हैं तो फिर अंजुमन विचार करेगी।
एस.पी.मित्तल) (05-04-17)
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