इस तरह के तीन तलाक के खिलाफ तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी है। कम से कम एक सकारात्मक पहल तो हुई।

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मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक के मुद्दों को लेकर 16 अप्रेल को लखनऊ में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक बैठक हुई। इस बैठक में यह माना गया कि जो पुरूष शरीयत का हवाला दे कर एक बार में ही तलाक, तलाक, तलाक कह कर या लिख कर निकाह तोड़ रहा है, वह इस्लाम के कानून के अनुरूप नहीं है। तीन तलाक का गलत इस्तेमाल करने वालों का सोशल बायकाट भी किया जाएगा। शरीयत में तलाक के लिए जो तीन माह की प्रक्रिया बताई गई है, उसी के अनुरूप निकाह टूटना चाहिए। पहले माह तलाक देने के बाद यदि आपस में समझौता हो जाता है तो पति रिश्ता बहाल कर सकता है। यानि इन दिनों मोबाइल फोन, वाट्स एप आदि पर तलाक देने की जो घटनाएं हो रही हैं, उसका बोर्ड ने विरोध किया है। यह माना कि बोर्ड की बैठक में मुस्लिम कानून में दखल का विरोध भी किया गया। लेकिन कम से कम बोर्ड ने तीन तलाक के गंभीर मुद्दे पर एक सकारात्मक पहल तो की ही है। इन दिनों हम टीवी चैनलों पर पीडि़त मुस्लिम महिलाओं को देख और सुन रहे हैं। अधिकांश पीडि़त महिलाओं का यह कहना है कि उनके शौहर ने शरीयत के विपरीत तलाक दिया है। यहां तक की औरत की सहमति भी नहीं ली गई। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को यह चाहिए कि वह परेशान मुस्लिम औरतों की मदद के लिए आगे आए। बोर्ड को इस मामले में मौलाना और मौलवियों के बीच भी जागरूकता पैदा करनी चाहिए। यदि मौलाना और मौलवी के स्तर पर ही एक साथ तीन तलाक का विरोध किया गया तो मुस्लिम महिलाएं अनेक परेशानियों से बच सकती हैं। जो भी मुस्लिम महिलाएं चैनलों पर अपनी पीड़ा सुना रही है, उनमें से अधिकांश एक साथ तीन तलाक वाली महिलाएं ही हैं। बोर्ड ने इस मुद्दे पर जो सकारात्मक पहल की है, उसके पीछे भी पीडि़त मुस्लिम महिलाओं का आगे आना हैं। केन्द्र सरकार भले ही मुस्लिम औरतों को भी समान अधिकार देने की बात करती हो, लेकिन अब सामाजिक सुधार के लिए मुस्लिम औरतें सामने आने लगी हैं।
एस.पी.मित्तल) (17-04-17)
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