जब मंत्री की सिफारिश से नियुक्ति होती है तो थाने का सीआई अपने ही आईपीएस की नहीं सुनता।

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जब मंत्री की सिफारिश से नियुक्ति होती है तो थाने का सीआई अपने ही आईपीएस की नहीं सुनता।
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दैनिक भास्कर के अजमेर संस्करण में 22 मई को पृष्ठ 7 पर पत्रकार अतुल सिंह और भीकम शर्मा की एक खोजपूर्ण रिपोर्ट छपी है। इसमें कहा गया है कि 20 मई को अजमेर में तैनात आईपीएस मोनिका सेन और उनकी टीम ने पुष्कर तीर्थ में शराब और चरस का कारोबार करने वालों पर छापामार कार्यवाही की तो पुष्कर के सीआई दुलीचंद गुर्जर मौके पर नहीं पहुंचे। कहा जाता है कि सीआई को बुलाने के लिए महिला आईपीएस ने पुलिस कंट्रोल रूम से भी मैसेज करवाया था। एक तरफ सीआई मौके पर नहीं आए और दूसरी तरफ जब मोनिका सेन अवैध कारोबारियों को पकड़ कर थाने पहुंची तो सीआई ने सीधे मुंह बात तक नहीं की, उल्टे ऐसी टिप्पणी की, जिसके जवाब में आईपीएस को कहना पड़ा कि आप थाने से बाहर चले जाइए। सीआई ने जो व्यवहार किया, उसकी शिकायत महिला आईपीएस ने अजमेर के एसपी राजेन्द्र सिंह चौधरी से की है। अब चौधरी सीआई के विरूद्व क्या कार्यवाही करते हैं, यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लेकिन हकीकत यह है कि जब किसी सीआई की नियुक्ति मंत्री की सिफारिश से होती है तो सीआई अपने आईपीएस के साथ ऐसा ही सलूक करता है। सीआई को यह पता होता है कि उसकी नियुक्ति आईपीएस ने नहीं बल्कि मंत्री ने करवाई है। यदि नियुक्ति में मंत्री का रूतबा नहीं होता तो सीआई की इतनी हिमाकत नहीं होती। हो सकता है कि आने वाले दिनों में आईपीएस मोनिका सेन की भूमिका को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाए। हालांकि इस मामले में पुलिस के आला अधिकारी फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। अधिकारियों ने सतर्कता के बतौर घटना की जानकारी अजमेर जिले के प्रभारी मंत्री हेमसिंह भडाणा को दे दी है।
एस.पी.मित्तल) (22-05-17)
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