तो अनशन शुरू कर शिवराज ने कांग्रेस को सीधी चुनौती दे दी है। यदि आंदेालन नहीं थमा तो क्या शिवराज जान दे देंगे?

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तो अनशन शुरू कर शिवराज ने कांग्रेस को सीधी चुनौती दे दी है।
यदि आंदेालन नहीं थमा तो क्या शिवराज जान दे देंगे?
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10 जून को मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के दशहरा मैदान पर बेमियादी अनशन शुरू कर कांग्रेस को सीधी चुनौती दे दी है। अनशन की शुरुआत करते हुए शिवराज ने कहा कि अनशन तब तक जारी रहेगा, जब तक किसानों का आंदोलन शांत नहीं हो जाता। वहीं कांग्रेस के नेताओं ने शिवराज के अनशन को नौटंकी बताते हुए कहा है कि कांग्रेस किसान आंदोलन के साथ मजबूती से खड़ी है।
यानि कांग्रेस मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन की आग को सुलगाए रखेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि तो क्या शिवराज सिंह अपनी जान दे देंगे? शिवराज ने कहा है कि वे अनशन के दौरान सिर्फ पानी ही पीएंगे। इस समय मध्यप्रदेश में भी भीषण गर्मी पड़ रही है। ऐसे में किसी मुख्यमंत्री का बेमियादी अनशन शुरू करना खुद की जान को खतरे में डालना है। कांग्रेस भले ही शिवराज के अनशन को नौटंकी बताए, लेकिन बेमियादी अनशन शुरू करना शिवराज के आत्म विश्वास को भी दर्शाता है। अनशन में सिर्फ पानी पीएंगे। यह संकल्प शिवराज ने तब लिया है, जब उन्हें पता है कि किसान आंदेालन को भड़काने में कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ेगी। अब देखना है कि शिवराज का अनशन कितने दिनों तक जारी रहता है। यदि कांग्रेस ने आंदोलन को चलाए रखा तो शिवराज को भी अनशन पर बैठे रहना पड़ेगा। लेकिन यदि अनशन के बाद मध्यप्रदेश में किसानों का आंदोलन शांत हो जाता है तो फिर कांग्रेस को अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। कांग्रेस माने या नहीं, लेकिन अनशन का दाव खेलकर शिवराज ने कांग्रेस को खुली चुनौती भी दे दी है। कांग्रेस और शिवराज सिंह दोनों को पता है कि एमपी में अलग वर्ष नवम्बर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस जहां किसान आंदोलन की आड़ में शिवराज सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहती है तो वहीं शिवराज ने अनशन के माध्यम से अपनी जान को भी दांव पर लगा दिया है।
इसके लिए भी आत्म बल चाहिए:
भोपाल के दशहरा मैदान पर जो वाटरप्रूफ पाडाल बनाया गया है, वहीं से शिवराज सिंह की सरकार भी चलेगी। मंत्रीमंडल के सदस्य भी सचिवालय में बैठने के बजाए दशहरा मैदान पर ही बैठेंगे। यानि शिवराज सिंह स्वयं तो अनशन पर है, लेकिन सरकार चलती रहेगी। सरकारी फाइलों पर हस्ताक्षर भी स्थल पर ही होंगे। सीएम की हैसियत से शिवराज किसानों के प्रतिनिधियों से भी वार्ता करेंगे। अनशन शुरू करने के साथ ही सीएम ने किसानों के लिए रियायत की अनेक घोषणाएं भी की हैं। 10 जून को शिवराज ने जो कुछ भी किया, वह उनका आत्मबल भी दर्शाता है। देश की राजनीति के इतिहास में संभवत: यह पहला अवसर होगा, जब किसी मुख्यमंत्री ने आंदोलन के दौरान ऐसा आत्मबल दिखाया है।
(एस.पी.मित्तल) (10-06-17)
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