तो अब मंदिरों की तरह सरकारी स्कूलों में लगेंगी दान पेटियां। तो क्या इससे सुधार जाएंगे हालात। =========

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राजस्थान सरकार ने सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं को उपलब्ध करवाने के लिए स्कूल परिसर में दान पेटियां लगाने का फैसला किया है। यानि जिस प्रकार मंदिरों में दान पेटियां रखी होती हंै, उसी प्रकार सरकारी स्कूलों में भी इधर-उधर दान पेटियां रखी होगी। समझ में नहीं आता कि सरकार के किस अक्लमंद व्यक्ति के दान पेटियां रखवाने का फैसला करवाया है। एक ओर सरकार स्कूलों पर अरबों रुपए खर्च करती है। सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले बच्चों को मुफ्त में भोजन से लेकर पाठ्य पुस्तकें यहां तक की साइकिल, स्कूटी आदि तक दी जा रही है। इसके अतिरिक्त एसएसी, एसटी वर्ग के बच्चों को अनुदान भी दिया जाता है। इतना सब कुछ होने के बाद भी सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बहुत कम है। सरकारी स्कूलों में शिक्षिकों को भी मोटा मासिक वेतन मिलता है। दूसरी ओर प्राइवेट स्कूल हैं, जहां शिक्षिकों मात्र 10 से 15 हजार रुपए का वेतन मिलता है और सरकारी स्कूल के मुकाबले में सुविधाएं भी कम होती है। लेकिन फिर भी सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जाता है। प्राइवेट स्कूल का संचालक इस बात का भरपुर प्रयास करता है कि उसके बच्चे पढाई में होशियार बने, जबकि सरकारी स्कूल में इतनी सुविधाएं उपलब्ध करवाने के बाद भी बच्चों को पढ़ाई में होशियार बनाने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं हो, इस पर किसी को ऐतराज नहीं है। लेकिन सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ जाए तो सरकार को दान पेटियां लगाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। सवाल यह भी उठता है कि जो सरकार मिड-डे मिल के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च कर रही है वह दान पेटी लगा कर कितने रुपए एकत्रित कर लेगी? सब जानते हैं कि मिड-डे-मिल के नाम पर भी बड़ा घोटाला हो रहा है। सरकार इस घोटालों को ही रोक ले तो उसे दान पेटियां लगाने की जरुरत नहीं होगी। सरकार पहले ही सरकारी स्कूलों के लिए भामाशाह योजना में धनाढ्य लोगों से आर्थिक सहयोग लेती है। इस पर स्कूल परिसर में दान पेटियां लगाना समझ से परे है।
एस.पी.मित्तल) (26-07-17)
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