अजमेर के लोकसभा उपचुनाव को लेकर सचिन पायलट उलझे। आखिर कौन होगा कांग्रेस का उम्मीदवार। ===========

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अजमेर के भाजपा सांसद सांवर लाल जाट के निधन के बाद होने वाले लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार को लेकर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट उलझ गए हैं। यदि और कोई संसदीय क्षेत्र होता तो पायलट आसानी से उम्मीदवार घोषित कर देते। लेकिन अजमेर पायलट का निर्वाचन क्षेत्र है, इसलिए पायलट उलझे हुए हैं। हालांकि पायलट कई बार कह चुके हैं कि उपचुनाव में कांग्रेस की ही जीत होगी, लेकिन पायलट ने अभी तक स्वयं के चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं की है। जबकि पायलट अजमेर से गत दो बार लगातार चुनाव लड़ चुके हैं। सवाल उठता है कि जब पायलट को जीत पक्की नजर आती है तो वे चुनाव लड़ने की घोषणा क्यों नहीं करते? आम कांग्रेसियों का भी मानना है कि यदि पायलट चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस की स्थिति मजबूत होगी। लेकिन जानकारों की माने तो पायलट अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। चूंकि विधानसभा चुनाव में पायलट ही कांग्रेस का नेतृत्व करेंगे, इसलिए कांग्रेस अपने नेता पर हार का ठप्पा नहीं लगवाना चाहती है और यदि उपचुनाव में उम्मीदवार की जीत हो गई तो प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते पायलट को ही श्रेय मिलेगा।
राष्ट्रीय सचिव ने लिया है जायजाः
कांग्रेस के हाईकमान माने जाने वाले राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय सचिव विवेक बंसल को अजमेर भेज कर राजनीतिक हालातों का जायजा लिया है। गत 20 अगस्त को स्व. राजीव गांधी की जयंती पर बंसल को खासतौर से अजमेर भेजा गया। हालांकि बंसल को जोधपुर जाना था, लेकिन ऐनमौके पर बंसल को अजमेर भेज दिया गया। बंसल ने सर्किट हाउस में एक-एक नेता से मुलाकात कर जानना चाहा कि पायलट के अतिरिक्त और कौन से उम्मीदवार हैं। सबकी राय से बंसल ने पायलट को अवगत करा दिया है।
राजपूत नेताओं की बैठकः
उपचुनाव के मद्देनजर हाल ही में अजमेर और नागौर के राजपूत समाज के नेताओं की एक बैठक पुष्कर स्थित जयमल कोट धर्मशाला में हुई। इस बैठक में भाजपा से निष्कासित नेता सुरेन्द्र सिंह शेखावत, पूर्व प्रधान नारायण सिंह, महेन्द्र सिंह कडैल, भूपेन्द्र सिंह शक्तावत आदि उपस्थित थे। बैठक में निर्णय लिया गया कि पायलट से मुलाकात कर चुनाव लड़ने का आग्रह किया जाए। क्योंकि पायलट कांग्रेस के उम्मीदवार होते हैं तो भाजपा से कड़ा मुकाबला किया जा सकता है। यह माना गया कि आनंदपाल प्रकरण के बाद अजमेर जिले का राजपूत समाज भी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से खासा नाराज हैं। अब देखना है कि राजपूत प्रतिनिधियों का पायलट पर कितना असर होता है। आज भी तीन हजार राजपूत जेलों में बंद हैं। इनमें अजमेर के युवक भी शामिल हैं।
पायलट समर्थक को ही प्राथमिकताः
यदि पायलट स्वयं चुनाव नहीं लड़ते हैं तो पायलट समर्थक को ही उम्मीदवार बनाया जाएगा। उम्मीदवार भी ऐसा जो जीतने के बाद भी पायलट के लिए कुर्बानी देने को तैयार रहे। यदि उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार की जीत होती है तो स्वाभाविक है कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इसी सांसद को उम्मीदवार बनाया जाएगा। लेकिन तब ऐसे सांसद को कुर्बानी के लिए तैयार रहना होगा। क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार नहीं बनती है तो बड़े नेता लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहेंगे। इसलिए यह तो तय है कि उम्मीदवार पायलट का पक्का समर्थक होगा।
भूपेन्द्र सिंह राठौड़ और रघु शर्माः
यूं देखा जाए तो अजमेर जिले में पायलट के बाद रघु शर्मा का नम्बर आता है। भाजपा उम्मीदवार के मुकाबले रघु शर्मा के पक्ष में ब्राह्मण, राजपूत, रावत, महाजन, मुसलमान आदि जातियां लामबंद हो सकती हैं। रघु केकड़ी से विधायक भी रह चुके हैं। लेकिन रघु के मुकाबले देहात कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह राठौड़ को पायलट का करीबी माना जाता है। शायद इशारों को समझते हुए ही राठौड़ ने ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर उपचुनाव के लिए जनसम्पर्क भी शुरू कर दिया है। फिलहाल राठौड़ का कहना है कि वे संगठन के लिए ऐसा कर रहे हैं, जबकि राजनीति में सब जानते हैं कि कौन नेता किस मकसद से क्यों आता है। राठौड़ उन समर्थकों में से हैं जो फिलहाल पायलट के लिए कुछ भी कुर्बानी कर सकते हैं। पायलट की मेहरबानी से ही जिले के दिग्गज कांग्रेसियों के मुकाबले राठौड़ जिलाध्यक्ष बने।
रामस्वरूप चैधरी और नाथूराम सिनोदियाः
अजमेर के पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चैधरी और किशनगढ़ के पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया भी कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन सिनोदिया को पूर्व सीएम अशोक गहलोत के खेमे का माना जाता है, इसलिए पायलट के राज में सिनोदिया को उम्मीदवार नहीं बनाया जा सकता। जबकि रामस्वरूप चैधरी को स्व. सांवरलाल जाट के परिवार के सामने कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा है। हालांकि चैधरी पायलट के प्रति वफदार हैं और उनका रूपनगढ़-किशनगढ़ वाले जाट बाहुल्य क्षेत्रों में खासा प्रभाव है।
डाॅ. श्रीगोपाल बाहेती और श्रीमती नसीम अख्तरः
कांग्रेस के पूर्व विधायक डाॅ. श्रीगोपाल बाहेती और पूर्व मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर को भी कांग्रेस का संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है। डाॅ. बाहेती के पक्ष में जहां वैश्य समाज के साथ-साथ अन्य जातियां भी लामबंद हो सकती हैं, वहीं श्रीमती अख्तर का मुस्लिम मतदाताओं में खासा प्रभाव है। जिले में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या दो लाख से भी ज्यादा मानी जा रही है। लेकिन डाॅ. बाहेती को पूर्व सीएम गहलोत का समर्थक माना जाता है। हालांकि श्रीमती अख्तर भी गत गहलोत सरकार में ही मंत्री बनी थीं, लेकिन उन्होंने पायलट से भी अपनी राजनीतिक नजदीकियां बढ़ाई हैं। यदि श्रीमती अख्तर उपचुनाव में उम्मीदवार बनती हैं तो डाॅ. बाहेती के समर्थकों को खुशी होगी, क्योंकि डाॅ. बाहेती की नजर अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र पुष्कर पर लगी हुई है।
श्रवण सिंह रावत और ब्रह्मदेव कुमावतः
मसूदा के पूर्व विधायक ब्रह्मदेव कुमावत और पायलट के खास समर्थक श्रवण सिंह रावत को भी संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है। हालांकि कुमावत गहलोत समर्थक माने जाते हैं, लेकिन उन्होंने पायलट से भी अपनी नजदीकियां बढ़ाई हैं। हालांकि रावत की पृष्ठ भूमि भाजपा की रही है, लेकिन गत लोकसभा के चुनाव में सचिन पायलट का खुला समर्थन करने की वजह से रावत को पायलट का पक्का समर्थक माना जाता है। रावत ने पायलट को यह भरोसा दिलाया है कि वे अजमेर संसदीय क्षेत्र के रावत मतदाताओं के वोट आसानी से हांसिल कर सकते हैं।
एस.पी.मित्तल) (25-08-17)
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