तो क्या राजपूतों की नाराजगी के चलते शेखावत को भाजपा में शामिल किया? अजमेर में कितना असर डालेगी घर वापसी।

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28 सितम्बर को जयपुर में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अशोक परनामी की उपस्थिति में भाजपा में पुन: शामिल हुए अजमेर के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत का कहना है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी चाहती थीं कि मैं भाजपा में ही काम करूं। यानि शेखावत की घर वापसी सीएम राजे की पहल पर हुई है। शेखावत के इस कथन से ही यह सवाल उठा है कि क्या राजपूतों की नाराजगी के चलते शेखावत को भाजपा में शामिल किया है? आनंदपाल एनकाउंटर को लेकर प्रदेश का राजपूत समाज सीएम राजे से नाराज बताया जाता है। समाज की नाराजगी के चलते ही सीएम ने पिछले दिनों समाज के बड़े प्रतिनिधियों की एक बैठक में भी भाग लिया था। चूंकि अजमेर में लोकसभा के उप चुनाव होने हैं। सीएम राजे अपने ही समाज को नाराज नहीं रखना चाहती हैं। हालांकि अजमेर में भाजपा में पहले से ही भंवर सिंह पलाड़ा राजपूत नेता के तौर पर हैं और पलाड़ा ने आनंदपाल के प्रकरण में आंदोलन को ठंडा करने में सरकार की ओर से सक्रिय भूमिका भी निभाई थ्ीा। इसके बाद ही सीएम की पहल पर शेखावत को भाजपा में शामिल किया गया है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि शेखावत राजपूत समाज में सीएम के प्रति फैली कथित नाराजगी को कितना दूर करते हैं। जहां तक अजमेर में राजपूत समाज का सवाल है तो उपचुनाव में इस समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। एक अनुमान के मुताबिक अजमेर संसदीय क्षेत्र के 18 लाख मतदाताओं में करीब दो लाख मतदाता राजपूत हैं। राजपूत समाज से जुड़ी अन्य जातियों के मतदाताओं की संख्या भी ज्यादा है।
भाजपा में विवाद भी :
शेखावत के भाजपा में शामिल होने से विवाद की आशंका भी जताई जा रही है। सब जानते हैं कि दो वर्ष पहले जब नगर निगम के मेयर के चुनाव में शेखावत ने बगावत की थी तो उत्तर क्षेत्र के भाजपा विधायक और स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने शेखावत को हराने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी। चुनाव की पूरी प्रक्रिया में देवनानी निगम कार्यालय ही बैठे रहे। शेखावत ने कोर्ट में जो याचिका दायर की, उसमें भी देवनानी की भूमिका को संदिग्ध बताया था। सवाल उठता है कि अब देवनानी के समर्थक शेखावत को कैसे पचा पाएंगे। 28 सितम्बर को भाजपा में शामिल होने पर शेखावत ने देवनानी के बजाए दक्षिण क्षेत्र की भाजपा विधायक महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अनिता भदेल के पास जाकर खुशी जताई। भदेल शेखावत को अपना बड़ा भाई मानती हैं। मेयर चुनाव के समय भी भदेल शेखावत को ही उम्मीदवार बनवाना चाहती थीं। इसलिए जब शेखावत ने कांग्रेस के समर्थन से बागी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा तो यही माना गया कि भदेल ने ही शेखावत को खड़ा किया है। आज भले ही देवनानी के समर्थक मायूस हों, लेकिन भदेल के समर्थक जश्न मना रहे हैं। शेखावत के जश्न के समारोह भी दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में ही हो रहे हैं।
निष्पक्ष बने हुए हैं गहलोत :
देवनानी ने भले ही धर्मेन्द्र गहलोत को मेयर बनवाने में एडी चोटी का जोर लगा दिया हो, लेकिन शेखावत के मुद्दे पर गहलोत निष्पक्ष बने हुए हैं। शेखावत की भाजपा में वापसी का गहलोत ने किसी भी स्तर पर विरोध नहीं किया। जबकि देवनानी के समर्थकों को उम्मीद थी कि गहलोत थोड़ा बहुत तो विरोध करेंगे। शेखावत के पुन: भाजपा में शामिल होने पर जो राजनीतिक हालात बदलेंगे, उनका मुकाबला देवनानी कैसे करते हैं, यह आने वाला समय ही बताएगा। हालांकि अभी शेखावत भी देवनानी का विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन सब जानते हैं कि शेखावत की नजर भी देवनानी के उत्तर विधानसभा क्षेत्र पर ही लगी हुई हैं।
दो माह पहले का पत्र :
28 सितम्बर को प्रदेशाध्यक्ष परनामी ने शेखावत की वापसी को जो पत्र दिया, उसमें दो माह पहले की तारीख अंकित है। इससे प्रतीत होता है कि घर वापसी का फैसला पहले ही हो गया था। शायद किसी विरोध के चलते घोषणा टलती रही।
(एस.पी.मित्तल) (29-09-17)
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