भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को निरंकुश बनाने वाले बिल को विधानसभा में रखने से पहले ही आईएएस ओपी यादव के परिवार से जुड़ा सौ करोड़ का मामला सामने आ गया। राज्य सरकार के सबसे चहेते अफसर हैं यादव।

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भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को निरंकुश बनाने वाले बिल को विधानसभा में रखने से पहले ही आईएएस ओपी यादव के परिवार से जुड़ा सौ करोड़ का मामला सामने आ गया। राज्य सरकार के सबसे चहेते अफसर हैं यादव।
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राजस्थान में भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को निरंकुश बनाने वाला बिल 23 अक्टूबर को विधानसभा में प्रस्तुत कर दिया गया। सीएम वसुंधरा राजे का प्रयास है कि इस बिल को इसी सत्र में मंजूर करवा लिया जाए। चूंकि 200 में से 162 विधायक भाजपा के हैंए इसलिए बिल को मंजूर करवाने में कोई परेशानी नहीं होगी। इस बिल को मंजूर करवाने में सीएम राजे और भाजपा के अन्य मंत्री जो जिद कर रहे हैं उन्हें प्रदेश के आबकारी आयुक्त ओपी यादव के ताजा प्रकरण से सबक लेना चाहिए। आयकर विभाग ने 22 अक्टूबर को ही जयपुर में सिरसी रोड पर 21 बीघा जमीन को बेनामी मानते हुए अटैच किया है। 100 करोड़ रुपए की कीमती इस जमीन की खरीद.फरोख्त में यादव की पत्नी लक्ष्मी यादव और परिवार के अन्य सदस्यों के नाम भी सामने आ रहे हैं। सब जानते हैं कि ओपी यादव पर राज्य सरकार कितनी मेहरबान है। लम्बे समय से यादव आबकारी आयुक्त बने हुए हैं। इससे पहले वे ट्रांसपोर्ट कमिश्नर भी रहे हैं। सवाल उठता है कि यादव को कमाई वाले महकमोें में ही क्यों नियुक्त किया जाता हैघ् अफसरों और नेताओं के ऐसे गठजोड़ पर कोई आपत्ति नहीं कर सकेए इसलिए विधानसभा में ऐसा बिल रखा गया। इस बिल के पास होने के बाद कोर्ट के आदेश से भी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं हो सकेगा। यानि सीआरपीसी की धारा 156;3द्ध को भी निष्प्रभावी कर दिया जाएगा। राज्य सरकार मंजूरी देगी तभी प्रकरण दर्ज हो सकेगा। अब सरकार मंजूरी कैसे देती है यह किसी से छिपा नहीं है। सरकार की मंजूरी से पहले यदि सोशल मीडिया से लेकर अखबार और चैनलों पर खबर आ गई तो संबंधित पत्रकार और उसके संस्थान के मालिक को तीन वर्ष तक की सजा दी जा सकेगी। यानि इस बिल से प्रेस की स्वतंत्रता भी प्रभावित होगी।
क्या यादव को आबकारी आयुक्त के पद से हटाएगी सरकारः
अब जब ओपी यादव के परिवार से जुड़ा सौ करोड़ का मामला सामने आ गया है तब यह सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार यादव को प्रदेश के आबकारी आयुक्त के पद से हटाएगीघ् यह बात अलग है कि सरकार नेताओं और अफसरों को बचाने के लिए ही विधानसभा में बिल मंजूर करवा रही हैं। देखना है कि इस मामले में सरकार कितनी ईमानदारी दिखाती है। सरकार की ओर से बार.बार ये दावा किया गया है कि वह किसी भी भ्रष्ट अधिकारी को बचाने का प्रयास नहीं करेगी।
एस.पी.मित्तल) (23-10-17)
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