अजमेर विकास प्राधिकरण अब आम जनता के लिए दो घंटे ही खुलेगा।

अजमेर विकास प्राधिकरण अब आम जनता के लिए दो घंटे ही खुलेगा।
नए आयुक्त नामित मेहता का फरमान।

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राजस्थान में विधानसभा चुनाव के मात्र छह माह ही रह गए हैं, तब आम लोगों को और गुस्सा दिलवाने वाला आदेश अजमेर विकास प्राधिकरण के आयुक्त नामित मेहता (आईएएस) ने जारी किया है। इस आदेश में सुरक्षा प्रहरियों से कहा गया कि दिन में तीन से पांच बजे के बीच ही लोगों को प्राधिकरण में प्रवेश दिया जाए। यह फरमान 21 मई को निकाला और 21 मई से लागू हो गया। यही वजह रही कि जो लोग अपने छोटे-छोटे कामों के लिए 22 मई को सुबह प्राधिकरण के दफ्तर पहुंचे, उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। मेहता का मानना रहा कि लोगों के दिन भर आने से प्राधिकरण में काम नहीं होता है। सवाल उठता है कि यदि प्राधिकरण में आसानी से काम हो जाए तो धक्के खाने के लिए इस भीषण गर्मी में कौन आएगा? लोग तो मजबूरी में आते है। प्राधिकरण के हालात किसी से छिपे नहीं है। लोगों को लालफीताशाही से राहत मिले, इसलिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भाजपा के वरिष्ठ नेता शिव शंकर हेड़ा को प्राधिकरण का अध्यक्ष बना कर राज्यमंत्री का दर्जा भी दिया। लेकिन अब हेड़ा भी नई व्यवस्था पर खामोश है। लोकसभा के उपचुनाव में हाल ही में सत्तारूढ़ दल की बुरी हार हुई है, ऐसे में प्राधिकरण के आयुक्त का ताजा फरमान लोगों का गुस्सा और बढ़ाऐगा। चुनाव से पहले तो लोगों को राहत देने वाले कार्य करने चाहिए। प्राधिकरण का कार्य क्षेत्र चार विधानसभा क्षेत्रों का है। अजमेर शहर के उत्तर और दक्षिण के साथ-साथ पुष्कर और किशनगढ़ विधानसभा भी आती है। सवाल उठता है कि दो घंटे वाला आदेश निकालने से पूर्व क्या इन क्षेत्रों के विधायकों की सहमति ली गई? यह माना कि अध्यक्ष हेड़ा प्राधिकरण को संचालित करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन आम जनता से जुड़े मामलों में जनप्रतिनिधियों की सहमति तो होनी चाहिए। हालांकि दो घंटे वाला प्रयोग पहले भी किया गया, लेकिन विफल होने के बाद बंद कर दिया गया, अब देखना है कि आम लोगों की परेशानी बढ़ाने वाले इस आदेश पर कब रोक लगती है। राहत देने वाले कार्य हों और बिना भ्रष्टाचार के लोगों के कार्य हो जाएं। हेड़ा और मेहता माने या नहीं लेकिन फिलहाल दलाल किस्म के लोग ही प्राधिकरण में काम करवाने में सक्षम हैं। आम व्यक्ति तो प्राधिकरण के धक्के ही खा रहा है। प्राधिकरण की आवासीय कॉलोनियों में हो रहे व्यावयासिक निर्माणों से भ्र्रष्टाचार का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल उठता है कि प्राधिकरण के इंजीनियरों को अवैध निर्माण नजर क्यों नहीं आते? क्या सारी दादागिरी आम व्यक्ति पर ही है? रिहायशी भूखंड पर बना तीन चार मंजिला काम्प्लेक्स प्राधिकरण के इंजीनियरों को क्यों नहीं दिखता?

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