कितना मायने रखता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कबीर दास जी की मजार पर जाना।

कितना मायने रखता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कबीर दास जी की मजार पर जाना।
कंकर पत्थर जोरि के… पाथर पूजें हरि मिल…
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28 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 14वीं सदी के सुविख्यात कवि कबीर दास जी की मजार पर गए। कबीर दास जी की मजार उत्तर प्रदेश के मगहर में है। प्रधानमंत्री ने यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ के साथ मजार पर चादर चढ़ाई और पुष्प अर्पित किए। बाद में एक सभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि कबीर दास जी ने अपना जीवन सत्य की खोज और असत्य के खंडन में व्यतीत कर दिया। उन्होंने ईश्वर का दर्शन कराने का रास्ता भी दिखाया जो लोग अम्बेडकर के नाम पर समाज को तोड़ने का काम करते हैं। उन्हें कबीर दास के जीवन को समझना चाहिए। सब जानते है। कि जब देश में मुगलों का शासन था तब कबीर दास ने अपनी कविताओं में दोनों ही धर्मों के पाखंड को लिखा। मैं यहां कबीर दास के दो दोहों का उल्लेख कर रहा हंूः-
(1)
कंकर पत्थर जोरि के, मस्जिद लई बनाये।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, का बेहरा भया खुदाये।।
(2)
पाथर पूजें हरि मिलें तो मैं पूजूं पहाड़।
घर की चाकी कोऊ ना पूजे जाका पीसा खाये।।
कबीर दास जी ने ये दोहे 500 वर्ष पहले लिखे थे, लेकिन आज भी ये दोहे वर्तमान व्यवस्था पर खरे उतरे हैं। उस वक्त मंदिर मस्जिद पर लिखना कितना जोखिम पूर्ण होगा, यह तबके लोग ही जानते होंगे। नरेन्द्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो कबीर दास की मजार पर पहुंचे हैं। जिस कवि ने सत्ताधारियों और धर्म के ठेकेदारों पर चोट की है। उस कवि की मजार पर चादर पेश करना मायने रखता है। मैं ये नहीं कहता कि नरेन्द्र मोदी कबीर दास की कविताओं के भावार्थ से सहमत होंगे, लेकिन फिर भी कबीर दास की मजार पर जाकर प्रधानमंत्री ने अनेक संकेत दिए हैं। जो लोग इस देश में धर्म के नाम पर राजनीतिक कर रहे हैं उन्हें भी कबीर दास के दोहो से सीख लेनी चाहिए। ऊपर लिखे दोनों दोहो के भावार्थ समझने के बाद धर्म के ठेकेदारों को अपनी स्थिति का अंदाजा लग जाएगा। कई बार हमारे देश में साम्प्रदायिक दंगे उन्हीं मुद्दों पर होते हैं जिनकी 500 वर्ष पहले कबीर दास ने इशारा किया था। काश! कबीर दास के दोहो को 500 वर्ष पहले ही समझ लिया जाता तो आज इस देश के हालात खराब नहीं होते। कबीर दास ने बहुत सरल भाषा और शब्दों में अपने दोहे लिखे हैं। इन दोहो का अर्थ समझने के लिए ज्यादा बुद्धिमान होने की जरुरत नहीं है। मैंने भी कोशिश की है कि दोनों दोहो के बारे में समझा संकु। प्रधानमंत्री ने कबीर दास की मजार पर जाकर एक बार फिर उनके दोहो को देश के सामने रखने की कोशिश की है। अब यह आने वाला समय बताएगा कि हमारा देश कबीर दास के दोहो को कितना समझा।
एस.पी.मित्तल) (28-06-18)
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