अजमेर के 7 लोगों की दर्दनाक मौत के हादसे से स्मार्ट सिटी की पोल खुली।

अजमेर के 7 लोगों की दर्दनाक मौत के हादसे से स्मार्ट सिटी की पोल खुली। अस्पताल में शवों को रखने तथा घायल मरीजों के इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं।
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8 जुलाई को अजमेर के निकट तबीजी में एक डम्पर और रोडवेज बस में जोरदार भिड़ंत हो जाने से यात्रियों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि 21 घायलों का इलाज अजमेर के जेएलएन अस्पताल में चल रहा है। बस पाली से अजमेर की ओर आ रही थी कि तभी गलत दिशा से आया डम्पर भिड़ गया। भिड़ंत इतनी तेजी थी  बस का कंडक्टर साइड वाला हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। यात्रियों के शव खिड़कियों में फंस गए, जिन्हें बड़ी मुश्किल से निकाला। एक यात्री की तो गर्दन ही अलग हो गई। इस हादसे से अजमेर के स्मार्ट सिटी होने की भी पोल खुल गई। सबसे पहले तो मौके पर राहत कार्य देरी से शुरू हुए, जिससे घायलों को भी विलंब से अस्पताल पहुंचाया जा सका। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुलिस भी देरी से आई। हालांकि हादसे के तुरंत बाद एम्बुलैंस के लिए 108 पर फोन कर दिया गया था।
अस्पताल में पर्याप्त सुविधा नहींः
अजमेर के जेएलएन अस्पताल को संभाग का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है। स्मार्ट सिटी योजना में भी करोड़ों रुपए के कार्य अस्पताल में करवाए जा रहे हैं। लेकिन आज जब अस्पताल में अधिक चिकित्सा की जरुरत हुई तो सारी पोल खुल गई। अस्पताल की आपातकालीन इकाई में मात्र 18 पलंग ही थे, जबकि तबीजी हादसे में घायलों की संख्या 21 थी। अस्पताल के प्राचार्य का तर्क रहा कि नई आपातकालीन इकाई बनाई जा रही है इसलिए अस्थायी इकाई में थोड़े ही पलंग हैं। गंभीर बात यह है कि नई इकाई का कार्य पिछले एक वर्ष से चल रहा है। इस कार्य को लेकर भी कई बार शिकायतें हो चुकी है। सवाल उठता है कि जब 21 घायलों को भी तत्काल चिकित्सा सुविधा नहीं मिल सकती तो फिर करोड़ों रुपए क्यों बर्बाद किए जा रहे हैं। यूं दिखने के लिए स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी अस्पताल आए, लेकिन उनके आने का मकसद सिर्फ प्रचार करना था। देवनानी का कहना रहा कि उन्होंने घायलों के निःशुल्क इलाज के निर्देश दिए हैं। शायद देवनानी को यह नहीं पता कि सरकारी अस्पतालों में पहले से ही निःशुल्क इलाज की व्यवस्था है।
मुर्दा धर का बुरा हालः
7 शवों के एक साथ आने से स्मार्ट सिटी वाले मुर्दा घर की भी पोल खुल गई। मुर्दाघर में दो ही फ्रीज हैं जो पहले से भरे थे। ऐसे में तबीजी हादसे के शवों को यूं ही पटक दिया। चूंकि परिजन के आने में विलम्ब हुआ, इसलिए शवों को मुर्दाघर में रखवाया गया। जब मुर्दाघर में शवों को भी सम्मान के साथ नहीं रखा जा सकता तो फिर जेएलएन अस्पताल को संभाग के सबसे बड़े अस्पताल का दर्जा क्यों दिया जाता है।
एस.पी.मित्तल) (08-07-18)
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