क्या अब कांगे्रस एकजुट होकर राजस्थान में चुनाव लड़ पाएगी? 
उम्मीदवारों की सूची को लेकर जब यह हाल है तो प्रचार के दौरान क्या होगा? डूडी के बयान पर पायलट की सफाई।
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7 दिसम्बर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भले ही 15 नवम्बर की रात को राजस्थान के कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी हो जाए, तो भी यह सवाल तो रहेगा ही कि क्या कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ पाएगी? 12 नवम्बर से नामांकन शुरू हो चुका है और भाजपा ने 162 उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है, लेकिन कांगे्रस में 15 नवम्बर तक उम्मीदवारों को लेकर मंथन ही चलता रहा। पिछले एक माह में मीडिया घरानों के जितने भी सर्वे आए, उनमें भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को आगे दिखाया गया। एमपी और छत्तसीगढ़ में भले ही भाजपा की स्थिति अच्छी बताई गई, लेकिन राजस्थान में तो भाजपा को पीछे ही बताया गया। जनवरी के लोकसभा उपचुनावों में जीत के बाद तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के हौंसले बुलंद देखे गए। यह वजह रही कि कांग्रेस का टिकिट पाने के लिए हर विधानसभा क्षेत्र में लम्बी लाइन लग गई, लेकिन पिछले एक सप्ताह से दिल्ली में उम्मीदवारों की सूची को लेकर बड़े नेताओं में जो खींचतान देखने को मिली है, उससे कांग्रेस के पक्ष वाले माहौल पर थोड़ा प्रतिकूल असर पड़ा है। कांग्रेस नेता एकजुट होने का कितना भी दावा करें, लेकिन सूची जारी होने में विलम्ब बताता है कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। जो सचिन पायलट पिछले साढ़े चार वर्ष से प्रदेश में संघर्ष कर रहे थे, उन्हें अचानक दो नम्बर पर लाकर खड़ा कर दिया। कहा जा रहा है कि पायलट ने जो सूची बनाई है उसमें कई उम्मीदवारों की छवि अच्छी नहीं है। हालांकि राजनीति में छवि ज्यादा मायने नहीं रखती है, लेकिन यह भी सही है कि पिछले साढ़े चार वर्षों में संगठन के सारे खर्चे पायलट के समर्थकों ने ही किए। जब पैसा खर्च हो रहा था तब कोई आपत्ति नहीं हुई। अजमेर और अलवर के लोकसभा चुनाव के इंतजाम भी पायलट ने स्वयं किए। सब जानते हैं कि 2013 के चुनाव में तो कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई थी। मरी हुई कांग्रेस में जान डालने का कार्य पायलट ने ही किया। स्वाभाविक है कि अब पायलट उन समर्थकों का ख्याल रखेंगे, जिन्होंने साढ़े चार वर्ष तक संघर्ष किया। यदि राजस्थान में कांग्रेस गहलोत और पायलट के बीच  उलझी रही तो फिर कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा। राष्ट्रीय नेतृत्व को भी चाहिए कि इस मुद्दे पर दो टूक फैसला ले। उपचुनावों के परिणामों के बाद भाजपा सरकार की सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ जो माहौल बना, उस पर कांग्रेस की खींचतान ने असर डाला है। अशोक गहलोत यदि वाकई कांग्रेस के प्रति वफादार है तो उन्हें विवादों पर विराम लगाना चाहिए। कांग्रेस के नेता माने या नहीं लेकिन चुनाव के पहले दौर में भाजपा आगे निकल गई है।
पायलट की सफाईः
नेताओं की एकता को दिखाने के लिए 15 नवम्बर को जब दिल्ली में पायलट के निवास पर पायलट और प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी दोपहर का भोजन कर रहे थे, तब मीडिया कर्मियों को भी बुला लिया गया। पायलट के संबोधन के बाद डूडी से सवाल पूछा गया कि क्या वे 15 टिकिट जाट समुदाय के लिए मांग रहे हैं? इस डूडी ने कहा कि मैं किसानों के लिए मांग कर रहा हूं क्योंकि किसान हमेशा कांग्रेस के साथ रहा है। डूडी के इस कथन के बाद पायलट ने मीडिया से कहा कि कांग्रेस में किसी एक वर्ग नहीं, बल्कि किसान, गरीब, दलित आदि सभी का ध्यान रखा जाता है। पायलट और डूडी के अलग-अलग नजरिए से भी प्रतीत हो रहा था कि कांग्रेस में कुछ तो गड़बड़ है, इसलिए सूची में विलम्ब हो रहा है।
एस.पी.मित्तल) (15-11-18)
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