तो फिर किस काम की है ऐसी आरक्षण व्यवस्था।

तो फिर किस काम की है ऐसी आरक्षण व्यवस्था।
नौकरी-रोजगार नहीं मिलने से परेशान होकर अनुसूचित जनजाति के तीन युवकों ने ट्रेन के आगे कूद कर जान दी। आरक्षण का लाभ लेने वाले कर सकते हैं पहल।
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21 नवम्बर को राजस्थान के अलवर शहर में जिन तीन युवकों ने ट्रेन के आगे कूद कर जान दे दी, वे कोई सामान्य वर्ग के युवक नहीं थे। तीनों युवक उस अनुसूचित जनजाति वर्ग के थे, जिन्हें संविधान के अनुरूप 12 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। यानि 100 युवकों की भर्ती में 12 युवक इसी वर्ग के होंगे। सवाल उठता है कि सरकारी नौकरियों तथा सरकार की अन्य योजनाओं में अनिवार्य तौर पर लाभ मिलने के बाद भी एसटीवर्ग के युवकों को आत्महत्या क्यों करनी पड़ी? असल में आरक्षित वर्ग में भी अमीर और गरीब की खाई हो गई है। जिन परिवारों ने एक बार आरक्षण का लाभ लेकर अपना जीवन स्तर सुधारा, फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। सभी योजनाओं का लाभ ऐसे ही सम्पन्न परिवार उठाते रहे, जबकि आरक्षित वर्ग के दूसरे परिवार गरीब से गरीब होते चले गए। अलवार में जिस तरह एसटी के तीन युवकों ने नौकरी के अभाव में मौत को गले लगाया है, उसे देखते हुए अब आरक्षित वर्ग को भी कोई सकारात्मक पहल करनी चाहिए। यह मांग वर्षों से हो रही है कि जिस परिवार ने एक या दो बार आरक्षण का लाभ ले लिया, उस परिवार को आगे लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसके बजाए इसी वर्ग के उस परिवार को लाभ मिले जिसने एक बार भी लाभ नहीं लिया है। इससे आरक्षित वर्ग के लोगों का समान विकास हो सकेगा। ऐसा नहीं कि राजस्थान में एसटी वर्ग में आने वाले मीणा जाति के परिवारों को लाभ नहीं मिला है। सरकार के बड़े बड़े पदों पर मीणा अधिकारी विराजमान हैं। राजनीति में भी मीणा समुदाय का बोलबाला है। ऐसे में यदि मीणा समुदाय के तीन युवकों को एक साथ आत्महत्या करनी पडे तो यह शोचनीय विषय है। राजस्थान में तो मीणा समुदाय के लोग आईएएस, आईपीएस, आरएएस, आरपीएस जैसे प्रशासनिक और प्रतिष्ठित सेवाओं में हैं। ऐसे परिवार भी मिल जाएंगे, जिनके अधिकांश सदस्य बड़े ओहदों पर बैठे हैं, लेकिन वहीं ऐसे मीणा परिवार भी है जिनके एक भी सदस्य को चपरासी अथवा बाबू तक की नौकरी नहीं मिली है। ऐसी स्थिति सिर्फ एसटी वर्ग में ही नहीं, बल्कि एससी और ओबीसी वर्ग में भी है। यदि आरक्षण का लाभ समानता के आधार पर मिलता है तो अलवर में मनोज मीणा 24, सत्यनारायण मीणा 22 तथा रितुराज मीणा 17 को आत्महत्या नहीं करनी पड़ती। दो युवक तो बीए पास थे, जबकि रितुराज बीए की पढ़ाई कर रहा था। तीनों के एक दोसत की बात पर यकीन किया जाए तो पता चलता है कि तीनों नौकरी रोजगार नहीं मिलने से परेशान थे। एसटी वर्ग के युवकों की आत्महत्या से सरकार के उन दावों की पोल भी खुलती है कि  इस वर्ग के युवकों को अनेक सुविधाएं दी जा रही है।
एस.पी.मित्तल) (22-11-18)
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