अजमेर उत्तर से इस बार देवनानी की राह आसान नहीं। 

अजमेर उत्तर से इस बार देवनानी की राह आसान नहीं। 
सिंधीवाद का मुद्दा भी नहीं उछल रहा।
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राजस्थान में भाजपा की सरकार के वसुंधरा राजे के मंत्रिमंडल में सबसे ज्यादा चर्चित रहे स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी लगातार चैथी बार अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्रसे अपना भाग्य आजमा रहे हैं। हालांकि उत्तर क्षेत्र सामान्य है, लेकिन सिंधी जाति के वोट ज्यादा होने के कारण भाजपा किसी सिंधी को ही उम्मीदवार बनाती है। खुद देवनानी लगातार चैथी बार उम्मीदवार है। कांग्रेस ने गत दो बार गैर सिंधी उम्मीदवार उतारा और हार हासिल की। लेकिन इस बार माहौल को देखते हुए कांग्रेस ने एक बार फिर गैर सिंधी महेन्द्र सिंह रलावता को उम्मीदवार बनाया है। रलावता की सबसे बडी उपलब्धि यही है कि भाजपा ने इस बार सिंधी वाद को मुद्दा नहीं बनाया है। देवनानी और उनके समर्थकों को लगता है कि सिंधी वाद का मुद्दा उछालने से नुकसान होगा। यंू तो रलावता सर्व समाज की बात कर रहे हैं, लेकिन रलावता के समर्थक जीत का आधार में राजपूत, रावणा राजपूत, मुस्लिम, गुर्जर मतदाताओं के साथ-साथ वैश्य समुदाय के मतों को अपनी ओर मानते हैं। माना जा रहा है कि नोट बंदी और जीएसटी से अभी भी व्यापारी वर्ग नाराज है। चूंकि देवनानी के पास स्कूल शिक्षा का स्वतंत्र प्रभार रहा, इसलिए तबादलों को लेकर भी नाराजगी है। मंत्री होने की वजह से भी देवनानी का पिछले पांच वर्षों से अपने क्षेत्र के मतदाताओं से जुड़ाव कम रहा। हालांकि देवनानी ने अपने क्षेत्र में विकास के कार्य खूब करवाए, लेकिन लगातार 15 वर्षों से विधायक होने की वजह से अनेक कार्यकर्ताओं में नाराजगी पनपी है। देवनानी सीना ठोक कर कह रहे है कि उन पर एक रुपए का भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। यह बात अलग है कि सभी सरकारी विभाग में बिना रिश्वत के काम नहीं हुए। अधिकांश विभागों में वो ही अफसर लगे हैं, जिनकी सिफारिश देवनानी ने की थी। देवनानी के सामने इस बार दस माह पहले हुए लोकसभा के उपचुनाव में हार की चुनौती भी है। देवनानी ने वर्ष 2013 में बीस हजार से ही ज्यादा मतों से जीत हासिल की थी, लेकिन उपचुनाव में करीब सात हजार मतों से उत्तर क्षेत्र से भाजपा पिछड़ गई।
देवनानी के समर्थकों का कहना है कि लोकसभा के उपचुनाव में देवनानी उम्मीदवार नहीं थे, अब चूंकि देवनानी स्वयं उम्मीदवार है इसलिए मतदाताओं का रूझान भाजपा के पक्ष में होगा। देवनानी को अपनी ही पार्टी के कई नेताओं की नाराजगी का भी सामना करना पड़ रहा है। सब जानते हैं कि अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा से देवनानी के संबंध कैसे रहे है? हालांकि 15 वर्ष पहले देवनानी उदयपुर से आकर अजमेर में सक्रिय हुए, लेकिन सिंधी समुदाय के अनेक भाजपा नेताओं की यह पीड़ा है कि देवनानी ने दूसरे सिंधी नेताओं को पनपने नहीं दिया। प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य कंवल प्रकाश किशनानी ने पूरा दम लगा कर टिकिट मांगा था, लेकिन देवनानी ने टिकिट की दौड़ में किशनानी को पछाड़ दिया। सिंधी समुदाय के कई नेता उत्तर क्षेत्र के बजाए दक्षिण क्षेत्र में भाजपा का काम कर रहे हैं। रलावता के लिए सकारात्मक बात यह है कि जिस प्रकार उपचुनाव में कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एक जुटता दिखाई थी, उसी प्रकार विधानसभा के चुनाव में भी दिखाई जा रही है। रलावता पूर्व में शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं और अजमेर में कांग्रेस की राजनीति में पिछले तीस वर्षों से सक्रिय हैं। रलावता का बूथ मैनेजमेंट भी मजबूत बताया जा रहा है। इस चुनाव में रलावता जहां परंपरा को तोड़ना चाहते हैं, वहीं देवनानी चैथी बार जीत दर्ज कर रिकाॅर्ड बनाने में लगे हुए हैं।
एस.पी.मित्तल) (01-12-18)
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