अजमेर में 10 माह पहले मिली हार का बदला भाजपा ले पाएगी?

अजमेर में 10 माह पहले मिली हार का बदला भाजपा ले पाएगी?
आठों विधानसभा क्षेत्रों का ताजा आंकलन।
रघु शर्मा सांसद से विधायक बनने के लिए आतुर।
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अजमेर जिले में भी विधानसभा चुनाव के लिए 7 दिसम्बर को प्रातः 8 बजे से मतदान हो जाएगा। मतदान के लिए निर्वाचन विभाग सहित भाजपा और कांग्रेस जैसे बडे़ राजनीतिक दलों की पर्चियां अधिकांश मतदाताओं के घरों पर पहुंच गई। मतदान से कोई 16 घंटे पहले अजमेर जिले की आठों सीटों का चुनावी आकंलन किया गया है। यह मतदान से पूर्व कोई चुनावी सर्वे नहीं है, लेकिन तथ्यों के आधार पर आंकलन है। यूं तो बासपा जैसी पार्टियों ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सिर्फ किशनगढ़ के सुरेश टांक की चर्चा हो रही है। भाजपा के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि 10 माह पहले लोकसभा के उपचुनाव में जो हार मिली थी, क्या उसका बदला विधानसभा के चुनाव में लिया जा सकेगा? चुनावी जानकारियों के अनुसार उपचुनाव जीतने के लिए भाजपा ने जो तैयारियां की थी उसकी आधी तैयारी भी विधानसभा चुनाव में नहीं है। सब जानते है कि उपचुनाव में सीएम राजे ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में जातिगत आधार पर जनसंवाद किया। चुनाव के दौरान प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में प्रभारी मंत्री के साथ-साथ संगठन के पदाधिकारी को भी जिम्मेदारी दी गई, जबकि विधानसभा चुनाव में सारी तैयारियां संबंध्ंिात उम्मीदवार के भरोसे ही है। कांग्रेस इस बात को लेकर उत्साहित है कि 10 माह पहले सभी विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज की है।
केकड़ी और किशनगढ़:
अजमेर जिले में केकड़ी और किशनगढ़ ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां के मौजूदा विधायकों के टिकिट काटे गए। किशनगढ में भागीरथ च ौधरी को टिकिट कटने का अफसोस तो है, लेकिन फिर भी वे भाजपा उम्मीदवार विकास च ौधरी के साथ नजर आ रहे हैं, जबकि केकड़ी में पूरे चुनाव में वर्तमान विधायक शत्रुघ्न गौतम नजर नहीं आए। भाजपा उम्मीदवार राजेन्द्र विनायका ने गौतम को प्रचार के लिए बुलाया या नहीं यह तो गौतम और विनायका ही बता सकते हैं, लेकिन ताजा स्थितियों से राजनेताओं को सबक लेना चाहिए। राजनीति में जब तक कुर्सी है तब तक ही सम्मान होता है। कुर्सी जाने के बाद अपने भी मुंह फेर लेते हैं। कल तक जो कार्यकर्ता गौतम को कंधे पर बैठाकर केकड़ी की गलियों में घूमते थे, आज वो ही दरबारी विनायका को माथे पर बैठा रहे हैं। विनायका के लिए यह बड़ी उपलब्धि है कि वे पार्षद होते हुए विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं। मुकाबला भी अजमेर के सांसद और कांग्रेस के उम्मीदवार रघु शर्मा से है। शुरू में तो माना जा रहा था कि मुकाबला एकतरफा है, लेकिन अब बराबर की स्थिति हो गई है। ऐसे में परिणाम कुछ भी आ सकता है। हालांकि रघु शर्मा सांसद से विधायक बनने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। रघु को उपचुनाव में केकड़ी से 34 हजार मतों की बढ़त मिली थी। देखना कि इस बढ़त में कितनी कटौती होती है। किशनगढ़ में भाजपा उम्मीदवार विकास च ौधरी ने अपनी पकड़ को लगातार मजबूत किया है, लेकिन विकास के सामने कांग्रेस के उम्मीदवार सिनोदिया की कड़ी चुनौती है क्योंकि ये दोनों ही जाट समुदाय के हैं। तीनों ही उम्मीदवार अपनी जाति के वोटों पर दावा कर रहे हैं। विकास के समर्थकों का कहना है कि जाति के अलावा किशनगढ़ शहर से भाजपा के परंपरागत वोट भी मिलेंगे। शहरी मतदाता सिर्फ कमल के फूल का निशान देखता है। विकास ने अपनी राजनीतिक चतुराई से भाजपा विधायक भागीरथ को  अपने साथ खड़ा कर रखा है। वहीं कांग्रेस के बागी उम्मीदवार सिनोदिया भी शहरी मतदाताओं पर अपना दावा जता रहे हैं। सिनोदिया किशनगढ़ का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वहीं कांग्रेस के धाकड़ को लगता है कि जिस प्रकार उपचुनाव में बढ़त मिली, उसी प्रकार विधानसभा चुनाव में भी जीत मिल जाएगी। वहीं भाजपा के बागी सुरेश टांक तो स्वयं को किशनगढ़ के मतदाताओं का उम्मीदवार मानते हैं। टांक ने चुनाव में अपनी सारी राजनीतिक ताकत दांव पर लगा दी है। चुनाव की वजह से ही टांक को किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन की प्रतिष्ठा वाला अध्यक्ष का पद भी छोड़ना पड़ा है। जिले में सबसे रोचक चुनाव किशनगढ़ का हो गया है।
अजमेर उत्तर और दक्षिण:
अजमेर शहर की इन दोनों सीटों का आमतौर पर यह इतिहास रहा है कि या तो हार होती है या जीत। यानि दोनों सीटों के परिणाम एक से होते हैं। प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी भाजपा उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के महेन्द्र सिंह रलावता से कड़ा मुकाबला कर रहे हैं। रलावता को जहां अपने सरल और मधुर व्यवहार का फायदा मिल रहा है, तो वहीं देवनानी को मंत्री होने का खामियाजा उठाना पड़ रहा है। हालांकि देवनानी ने अपने क्षेत्र के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन अनेक लोगों को उनके व्यवहार से नाराजगी है। हो सकता है कि ऐसी नाराजगी देवनानी के मंत्री होने से भी हो। लेकिन वहीं ऐसी नाराजगी दक्षिण क्षेत्र में कम नजर आ रही है, जबकि यहां भी भाजपा उम्मीदवार श्रीमती अनिता भदेल मंत्री हैं। दक्षिण में कांग्रेस  उम्मीदवार हेमंत भाटी का अपना लाइफ स्टाइल है। बीड़ी कारोबारी होने के कारण हजारों कोली मतदाता सीधे सम्पर्क में हैं। चुनाव जीतने के लिए भाटी सभी प्रयास कर रहे हैं। दक्षिण क्षेत्र में उत्तर से भी ज्यादा सिंधी मतदाता हैं, लेकिन उत्तर में देवनानी के लिए सिंधियों में जो एकजुटता दिखाई दे रही है वैसी दक्षिण में भदेल के लिए नहीं है। हेमंत ने अपने व्यवहार से सिंधियों में सेंधमारी की है।
नसीराबाद और मसूदा:
राजनीतिक चालों को माना जाए तो जाट और राजपूत समाज के प्रतिनिधियों में नसीराबाद और मसूदा की सीटों को लेकर समझौता हुआ है। यह समझौता भाजपा उम्मीदवारों को लेकर है। मसूदा की भाजपा उम्मीदवार चाहती है कि उन्हें मसूदा से जाट वोट मिल जाएं और नसीराबाद के उम्मीदवार रामस्वरूप लाम्बा चाहते हैं कि उन्हें नसीराबाद में राजपूत वोट मिल जाएं। दोनों उम्मीदवारों ने अपनी अपनी जातियों से ऐसा आग्रह भी किया है। इस समझज्ञैते पर ही दोनों की जीत टिकी हुई है। अलबत्ता इसमें कोई दो राय नहीं कि मसूदा में कांग्रेस के उम्मीदवार राकेश पारीक ने ब्राह्मण, गुर्जर और मुसलमान मतदाताओं की एकजुटता की वजह से श्रीमती पलाड़ा को कड़ी चुनौती दी है। हालांकि पारीक को कांग्रेस के बागी उम्मीदवार कय्यूम खान से भी मुकाबला करना पड़ रहा है, लेकिन भाजपा को भीतरघात का डर है। मसूदा में ऐसे कई भाजपा नेता हैं जो पलाड़ा को हारा हुआ देखना चाहते हैं, लेकिन पलाड़ा दम्पत्ति ने लगातार दूसरी बार जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। नसीराबाद से भाजपा उम्मीदवार रामस्वरूप लाम्बा  को लगता है कि पिता स्व. सांवरलाल जाट के प्रति सहानुभूति की वजह से जीत हो जाएगी। असल में कांग्रेस के उम्मीदवार और मौजूदा विधायक रामनारायाण गुर्जर के पास भी गिनाने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। अलबत्ता गुर्जरों का सौ प्रतिशत समर्थन कांग्रेस के साथ हैं। नसीराबाद के स्थानीय भाजपा नेताओं को लाम्बा की स्थायी उम्मीदवारी से भी डर है। ऐसे में लाम्बा को भी भीतर घाट का डर है।
ब्यावर और पुष्कर: 
ब्यावर और पुष्कर दोनों विधानसभा क्षेत्र रावत बहुल्य हैं। इसलिए भाजपा ने दोनों क्षेत्रों में रावत उम्मीदवार बनाए हैं। पुष्कर में सुरेश रावत दूसरी और ब्यावर में शंकर सिंह रावत तीसरे बार चुनाव लड़ रहे हैं। आठ में दो सीटों पर भाजपा ने रावत उम्मीदवार बनाए हैं, इसलिए दोनों क्षेत्रों के रावत मतदाता भाजपा उम्मीदवारों के लिए एकजुट हैं। हिन्दुओं के तीर्थ स्थल पुष्कर में भाजपा उम्मीदवार सुरेश सिंह रावत का मुकाबला कांग्रेस की श्रीमती नसीम अख्तर से हैं। सुरेश को अपनी जाति के एकमुश्त और भाजपा के हिन्दुत्व वाले परंपरागत वोटों से जीत की पूरी उम्मीद है। यही वजह है कि कांग्रेस उम्मीदवार श्रीमती अख्तर को भी अपने साथ साधु-संतों को रखना पड़ रहा है। श्रीमती अख्तर 2008 का चुनाव पुष्कर से जीत चुकी है, लेकिन 2013 में उन्हें सुरेश रावत के हाथों 41 हजार मतों से हारना पड़ा था। हालांकि अब 2013 जैसी मोदी लहर नहीं है। लेकिन भाजपा को हिन्दुओं के तीर्थ स्थल से जीत की उम्मीद है। इसी प्रकार ब्यावर में शहरी क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार शंकर सिंह के प्रति नाराजगी हो, लेकिन हिन्दूवादी संगठनों की भूमिका से भाजपा को शहरी क्षेत्र में नुकसान कम होगा, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में रावत समुदाय की एकता को बनाए रखने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। पुष्कर और ब्यावर के रावत मतदाताओं को लगता है कि यदि किन्हीं कारणों से भाजपा उम्मीदवार की हार हो गई तो यह सीट रावतों के हाथ से निकल जाएगी। ब्यावर शहर में वैश्य मतदाताओ ंकी संख्या को देखते हुए कांग्रेस ने पारस जैन को उम्मीदवार बनाया है। जैन के लिए शहरी क्षेत्र के हिदूत्ववादी वोटों को तोड़ना मुश्किल हो रहा है।
एस.पी.मित्तल) (06-12-18)
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