क्या हुआ वसुंधरा राजे के 180 प्लस के दावे का?

क्या हुआ वसुंधरा राजे के 180 प्लस के दावे का?
एग्जिट पोल तो 80 सीट भी नहीं दे रहा।
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राजस्थान में विधानसभा चुनाव का प्रचार शुरू होने से पहले सीएम वसुुंधरा राजे ने दावा किया था कि भाजपा को 200 में से 180 सीटों से ज्यादा मिलेंगी। सीएम ने कहा कि 2013 के चुनाव में भाजपा को 162 सीटें मिली थी, इसलिए इस बार 180 प्लस का लक्ष्य रखा गया है। 7 दिसम्बर को मतदान के बाद मीडिया के जो एग्जिट पोल आए उसमें भाजपा को 80 से भी कम सीटों का अनुमान लगाया गया है। यानि सीएम राजे के दावे और एग्जिट पोल के अनुमान में रात दिन का अंतर है। यह माना कि मीडिया घरानों के एग्जिट पोल एक दम सटीक नहीं होते थे, लेकिन रात और दिन का अंतर भी नहीं होता है। एग्जिट पोल बहती हवा के अनुरूप होते हैं, जबकि सीएम राजे का दावा हकीकत से काफी दूर नजर आ रहा है। राजे माने या नहीं लेकिन सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद दरबारियों ने उन्हें आम लोगों से दूर कर दिया। चूंकि  वसुंधरा राजे राज घरानों की प्रवृत्ति में रही, इसलिए सीएम के दरबार में चापलूसों को ही रखा। सही राय देने और आलोचना करने वालों को तुरंत बाहर का रास्ता दिखाया गया। यही वजह रही कि चापलूस दरबारियों की वजह से वसुंधरा राजे ने 180 प्लस का दावा कर दिया। किसी ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि प्रदेश के हालात कैसे हैं। अशोक परनामी के जरिए भाजपा संगठन को सत्ता की गोदी में बैठा दिया गया। 162 भाजपा विधायकों ने जो चाहा, वैसा ही संगठन में हुआ। सबने देखा कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहते हुए परनामी किस तरह सीएम की मिजाजपुर्सी करते थे। अशोक परनामी की गिनती भी दरबारियों में ही होती थी। यही वजह रही कि जब राष्ट्रीय नेतृत्व ने परनामी को हटाया तो सबसे ज्यादा बैचेनी वसुंधरा राजे को हुई। यदि उस वक्त भी हकीकत समझी जाती तो आज राजस्थान में भाजपा की स्थिति यह नहीं होती। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व राजस्थान की हकीकत को समझ गया था, इसलिए चुनाव की बागडोर स्वयं राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह ने संभाली। असल में जो व्यवहार सीएम राजे ने किया, वो ही व्यवहार भाजपा के 162 विधायकों ने अपने अपने क्षेत्रों में मतदाताओं के साथ किया। सबसे बड़ी बात यह रही कि परेशान कार्यकर्ता और जागरुक व्यक्ति की सुनवाई किसी भी स्तर पर नहीं हो रही थी। सीएम राजे अपने किसी विधायक के खिलाफ सुनने को तैयार नहीं थी तो विधायक भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में रावण की प्रवृत्ति जैसा व्यवहार कर रहे थे। कांग्रेस ने भले ही मजबूत विपक्ष की भूमिका नहीं निभाई, लेकिन सीएम से लेकर विधायकों के खिलाफ जो नकारात्मक भाव उपजा, उसी का परिणाम है कि कांग्रेस को सफलता मिल रही है। गंभीर बात तो यह है कि 10 माह पहले हुए दो लोकसभा और एक विधानसभा के सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में बुरी तरह हारने के बाद भी सीएम ने हकीकत को समझने की  कोशिश नहीं की। घमंड भी ऐसा कि उपचुनाव में हराने वालों से संवाद तक नहीं किया, जबकि वे सब भाजपा से जुड़े हुए थे। भले ही अशोक परनामी को हटा कर मदनलाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया हो, लेकिन फिर भी वही हुआ जो वसंुंधरा राजे ने चाहा। अब प्रदेश में जो हालात उत्पन्न हुए हैं उसकी पूर्ण जिम्मेदारी वसुंधरा राजे की है। दरबारियों को तो उम्मीद है कि वसुंधरा राजे ही तीसरे बार सीएम बनेगी।
एस.पी.मित्तल) (08-12-18)
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