तो क्या अब मंत्रियों को लेकर भी गहलोत ओर पायलट में हो रही है खींचतान।

तो क्या अब मंत्रियों को लेकर भी गहलोत ओर पायलट में हो रही है खींचतान।
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राजस्थान में अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री और सचिन पायलट ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ 17 दिसम्बर को ली थी, लेकिन छह दिन गुजर जाने के बाद भी मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो सका है। सब जानते है कि सीएम पद को लेकर गहलोत और पायलट में जोरदार खींचतान हुई थी। जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से मामला नहीं सुलझा तो सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को दखल देना पड़ा। पायलट को डिप्टी सीएम बना कर मामले को एक बार तो शांत कर दिया गया, लेकिन प्रतीत होता है कि मंत्रिमंडल के गठन को लेकर गहलोत और पायलट में सहमति नहीं बन रही है। यदि दोनों में सहमति होती तो मामला राहुल गांधी तक नहीं जाता। सूत्रों के अनुसार 22 दिसम्बर को गहलोत और पायलट की मुलाकात राहुल गांधी से हो रही है। असल में राहुल तो चाहते हैं कि गहलोत और पायलट आपस में मिलकर मंत्रिमंडल का गठन कर ले। इस बात के संकेत राहुल गांधी ने दिए भी हैं। लेकिन माना जा रहा है कि मंत्रियों को दिए जाने वाले विभागों को लेकर सहमति नहीं बन रही है। विभाग तो अभी पायलट को भी लेने हैं। पायलट दिखाने के लिए भले ही डिप्टी सीएम हो, लेकिन उन्हें केबिनेट मंत्री के तरह विभाग लेने होंगे। जानकारों की माने तो पायलट गृह जैसे महत्वपूर्ण विभाग के साथ-साथ कार्मिक विभाग भी चाहते है ताकि प्रदेश ब्यूरोक्रेसी पर पकड रखी जा सके। कांर्मिक विभाग ही आईएएस, आईपीएस, आरएएस, आरपीएस जैसे अधिकारियों के तबादले करता है। आमतौर पर इन बड़े अधिकारियों के तबादले सीएमओ से होते हैं। इसलिए कार्मिक विभाग सीएम के पास या फिर सीएम के भरोसेमंद मंत्री के पास होते हैं। ऐसा कभी नहीं होता कि सीएमओ से जारी सूची पर कार्मिक विभाग का मंत्री विचार विमर्श करे। सीएमओ की सूची को ही अंतिम सूची माना जाता है। अब यदि कार्मिक विभाग सचिन पायलट के पास होता है तो फिर सीएमओ से जारी होने वाली सूची पर विचार विमर्श की संभावना बढ़ जाती है। इतना तो सभी जानते हैं कि सचिन पायलट लकीर के फकीर वाले मंत्री नहीं होंगे। पायलट के समर्थकों को आज भी लगता है कि मुख्यमंत्री के पद पर पायलट का हक था। ऐसे में अब विभागों के बंटवारे को लेकर पायलट अपना पक्ष मजबूत रखना चाहते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पायलट डिप्टी सीएम के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने रहेंगे। ऐसे में पायलट का सत्ता और संगठन  दोनों में दखल रहेगा। चूंकि गहलोत राजनीति के पुराने खिलाड़ी है, इसलिए माना जा रहा है कि गहलोत फिलहाल सचिन पायलट के मिजाज के अनुरूप तालमेल बैठा लें। गहलोत नहीं चाहते हैं कि इस मौके पर कोई खींचतान राहुल गांधी के सामने आए। देखना है कि आपसी सहमति से मंत्रिमंडल का गठन कब तक होता है। इस बीच गहलोत और पायलट दोनों के समर्थक विधायक मंत्री बनने के उतावले हैं। अजमेर के केकड़ी से कांग्रेस विधायक रघु शर्मा का तो मानना  है कि उनका नाम पायलट और गहलोत दोनों की  सूची में होगा।
एस.पी.मित्तल) (22-12-18)
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