सचिन पायलट को न गृह विभाग मिला न वित्त।

सचिन पायलट को न गृह विभाग मिला न वित्त।
आखिर गहलोत ने दे दी पटखनी।
रात  दो बजे मंत्रियों के विभागों की घोषणा का क्या तुक?
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राजस्थान के शहरी क्षेत्र के अखबारी पाठकों को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि 27 दिसम्बर के अखबार खास कर दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका का प्रथम पृष्ठ बदला हुआ है। कुछ अखबारों प्रदेश के मंत्रियों के विभागों की खबर है और कुछ में नहीं। यानि बड़े शहरों में दो तरह के अखबार बंटे। असल में मंत्रियों के विभागों के वितरण पर राज्यपाल कल्याण सिंह से रात दो बजे हस्ताक्षर करवाए गए। आदेश अखबारों के दफ्तरों में पहुंचता तब तक शायद तीन बज चुके थे। तीन बजे से ही अखबारों का शहरी संस्करण छपने लगता है। यही वजह रही कि हजारों अखबारों में विभाग वितरण की खबर नहीं छपी। सम्पादकों ने मशीन को रुकवा कर नया पेज बनवाया और अखबार छपा। सवाल उठता है कि विभागों के वितरण की घोषणा इस तरह रात के अंधेरे में क्यों की गई? मंत्रियों ने तो 24 दिसम्बर को ही शपथ ले ली थी यदि 27 दिसम्बर को सूर्योदय के साथ घोषणा होती तो भी फर्क नहीं पड़ रहा था। असली कहानी क्या है यह तो सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ही बता सकते है, क्योंकि दिल्ली में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के सामने ये दोनों ही आंसू बहा रहे थे। जहा तक मंत्रियों के विभागों का सवाल है तो जाहिर है कि अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को पटखनी दे दी है। जिस प्रकार सीएम का पद पायलट से छीन लिया गया, उसी प्रकार पायलट को गृह, वित्त, कार्मिक जैसे महत्वपूर्ण विभागों से वंचित कर दिया गया। जो सचिन पायलट सीएम के  दावेदार थे, उन्हें यदि गृह विभाग भी नहीं मिलता है तो उनकी राजनीतिक हैसियत का अंदाजा गाया जा सकता है। पायलट के लिए शर्म की बात यह है कि गृह और वित्त जैसे विभाग गहलोत ने अपने पास रखे हैं। यानि पायलट की स्थिति एक सामान्य मंत्री जैसी है। संविधान में डिप्टी सीएम का कोई पद नहीं होता। सिर्फ मंत्री का होता है। मंत्री के नाते ही पायलट को पंचायती राज, पीडब्ल्यूडी, ग्रामीण विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा सांख्यिकी विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि पायलट अभी भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं, लेकिन सवाल उठता है कि ऐसी परिस्थितियों में पायलट प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका कैसे निभाएंगें।
दिल्ली में कमजोर स्थिति:
राजस्थान में कांग्रेस की जीत के बाद पायलट की जो दुर्दशा हुई है उससे प्रतीत होता है कि दिल्ली में अशोक गहलोत के मुकाबले पायलट की पकड़ कमजोर है। भले ही राहुल गांधी पायलट के साथ हों, लेकिन दिल्ली दरबार में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी से लेकर अहमद पटेल अविनाश पांडे, विवेक बंसल तक अशोक गहलोत के साथ नजर आए। पायलट ने भी वो सख्त रवैया नहीं अपनाया जो मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य राजे ने अपनाया। मध्यप्रदेश में जब ज्योतिरादित्य को सीएम नहीं बनाया तो उन्होंने डिप्टी सीएम का झुनझूना भी नहीं लिया। आज मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य की अलग पहचान है। लेकिन पायलट नेे गहलोत सरकार में शामिल होकर दो नावों की सवारी कर ली है। पायलट माने या नहीं लेकिन गहलोत ने अपनी राजनीतिक कुशलता से पायलट को पटखनी दे दी है। देखना होगा कि इस राजनीतिक झटके से पायलट कैसे उभरते हैं। पायलट के समर्थक मंत्रियों को भी कम महत्व के विभाग दिए गए हैं। कहा जा सकता है कि कांग्रेस को जीत दिलवाने में जिन नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही, उन्हें पायलट की निकटता का खामियाजा उठाना पड़ा। जबकि गहलोत के समर्थक माने जाने वाले मंत्री शांतिधारीवाल, बीडी कल्ला जैसों को प्रभावशाली विभाग मिले हैं। पायलट की वह से भले ही विभागों का वितरण दिल्ली दरबार में हुआ हो, लेकिन गहलोत ने अपने दबदबे को जाहिर किया है।
एस.पी.मित्तल) (27-12-18)
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