राजस्थान की राजनीति से वसुंधरा राजे की विदाई होनी चाहिए।

राजस्थान की राजनीति से वसुंधरा राजे की विदाई होनी चाहिए। राजे की वजह से ही भाजपा की हार हुई। 
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भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के भविष्य को लेकर मंथन हो रहा है। 29 दिसम्बर को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदनलाल सैनी दिल्ली से जयपुर आ गए। सैनी ने भी अपनी राय से राष्ट्रीय नेताओं को अवगत करा दिया है। इससे पहले राजस्थान की राजनीति में रूचि रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर को गुजरात और राष्ट्रीय महासचिव भूपेन्द्र यादव को बिहार का प्रभारी बना दिया गया। यह दोनों अब लोकसभा चुनाव तक गुजरात और बिहार में ही रहेंगे। हालांकि गत विधानसभा के चुनाव में ओम माथुर की भूमिका राजस्थान में महत्वपूर्ण थी। राष्ट्रीय नेतृत्व भी यह मानता है कि राजस्थान में हार का एक कारण पूर्व सीएम राजे   भी रही। कांग्रेस की ओर से लगातार यह आरोप लगाया जाता रहा कि सरकार घमंडी है। मंत्रियों को मिलने के लिए इंतजार करना पड़ता है। हालांकि जिला स्तर पर जनसंवाद कर राजे ने अपनी छवि को जनसेवक की बनाने की कोशिश की, लेकिन राजे के इर्द-गिर्द जमा लोगों ने छवि को धूमिल कर दिया। राजे के आसपास चार-पांच लोगों की ऐसी चैकड़ी जमा हो गई, जो सही बात राजे तक पहुंचने नहीं दे रही थी। अब चूंकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बन गई है और भाजपा विपक्ष में है, ऐसे में राजे के कुछ समर्थक चाहते हैं कि राजे को विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाकर राजस्थान की राजनीति में सक्रिय रखा जाए। लेकिन यदि ऐसा होता है तो आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को फिर से विपरित परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। सब जानते है कि विधानसभा चुनाव से एक वर्ष पहले से ही प्रदेश भर में राजे सरकार के खिलाफ माहौल बन गया था। यही वजह थी कि जनवरी में हुए लोकसभा के दो उपचुनावों में भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इस एकतरफा हार के बाद भी राजे सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। चूंकि टिकट वितरण में भी राजे की चली इसलिए अधिकांश उम्मीदवार हार गए। राजनीति के जानकारों का मानना रहा कि यदि लोकसभा के उपचुनाव की हार के बाद सरकार का चेहरा बदल दिया जाता तो राजस्थान में एक बार फिर भाजपा की सरकार बन सकती थी। सरकार विरोधी माहौल के बारे में राष्ट्रीय नेतृत्व को भी पता था, लेकिन इसे राष्ट्रीय नेतृत्व की मजबूरी ही माना जाएगा कि लाख कोशिश के बाद भी चेहरा नहीं बदला जा सका। राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का मामला था। राजे की वजह से ही कोई 70 दिनों तक प्रदेश अध्यक्ष का मामला लटका रहा। गजेन्द्र सिंह शेखावत को लेकर जिस तरह राजे का विरोध रहा, उससे राजपूत समाज में भी नाराजगी रही। मई में होने वाले लोकसभा के चुनाव को लेकर राष्ट्रीय नेतृत्व अभी से ही सक्रिय है। राष्ट्रीय नेतृत्व यह भी नहीं चाहता कि राजे के नकारात्मक रवैए से चुनाव में नुकसान हो। हालांकि लोकसभा के चुनाव में देशभर में नरेन्द्र मोदी का चेहरा ही सामने रहेगा। जानकारों की माने तो राजे को लोकसभा का चुनाव लड़ा कर राजस्थान की राजनीति से विदा किया जा सकता है।
एस.पी.मित्तल) (29-12-18)
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