तो क्या राजस्थान में नेतृत्व विहीन हो रही है भाजपा? 

तो क्या राजस्थान में नेतृत्व विहीन हो रही है भाजपा? 
जयपुर में मेयर के चुनाव में बगावत। 
उलझ सकता है जिला प्रमुख का मामला।


राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी में जो हालात उत्पन्न हुए हैं उनसे यह प्रतीत होता है कि पार्टी नेतृत्व विहीन हो रही है। हालांकि चुनाव में हार के बाद वरिष्ठ नेता और पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया को प्रतिपक्ष का नेता बनाया और पार्टी की कमान पहले की तरह राज्यसभा के सदस्य मदनलाल सैनी के पास रखी। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को प्रदेश का प्रभारी भी नियुक्त कर दिया। इसके साथ ही पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर प्रदेश की राजनीति से दूर करने के संकेत भी दिए। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि प्रदेश में भाजपा नेतृत्व विहीन हो रही है। 22 जनवरी को जब प्रदेश प्रभारी जावड़ेकर जयपुर में मौजूद थे तभी जयपुर नगर निगम के भाजपा पार्षदों में बगावत हो गई। मेयर के उपचुनाव में लाख कोशिश के बाद भी विष्णु लाटा ने बागी उम्मीदवार के तौर पर मेयर का चुनाव लड़ा। लाटा को मनाने के लिए सतीश पूनिया, विधायक अशोक लाहोटी, अरुण चतुर्वेदी आदि नेताओं ने पूरी ताकत लगा दी। लेकिन लाटा ने किसी की भी नहीं मानी। लाटा का कहना रहा कि जब अशोक लाहोटी मेयर से विधायक बन गए तब उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि उन्हें मेयर का टिकिट दिया जाएगा, लेकिन अब भाजपा ने उनके साथ विश्वासघात किया है। पार्षद की बगावत यह बताती है कि बड़े नेताओं का नियंत्रण नहीं है। जाकारों की माने तो 23 जनवरी को जयपुर के जिला प्रमुख का मामला भी उलझ सकता है। केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के निर्वाचन क्षेत्र जयपुर ग्रामीण से बनने वाला जिला प्रमुख यदि भाजपा का नहीं बनता है तो लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को भारी धक्का लगेगा। असल में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के जिला प्रमुख मूलचंद मीणा कांग्रेस में शामिल हो गए। इसलिए 23 जनवरी को जिला प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हो रहा है। वैसे तो जिला परिषद में भाजपा के 27 और कांग्रेस के 22 सदस्य हैं, लेकिन कांग्रेस अब पूरी तरह मूलचंद मीणा के साथ खड़ी है। इसलिए माना जा रहा है कि मीणा की जीत हो सकती है।
भाजपा के निर्दलीय विधायकों पर भी नियंत्रण नहीं:
हाल ही के विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश हुंडला, सुरेश टांक आदि तीन चार भाजपा के बागी विधायक हैं। यानि इन विधायकों को भाजपा का टिकिट नहीं मिला,इसलिए निर्दलीय तौर पर जीते हैं। आमतौर पर बागी विधायक अपनी मातृ पार्टी के साथ ही जाते हैं, लेकिन इन दिनों प्रदेश में नेतृत्व असर कारक नहीं है इसलिए भाजपा की विचारधारा वाले निर्दलीय विधायक कांग्रेस के बड़े नेताओं के सम्पर्क में है। 21 जनवरी को ही ऐसे विधायकों ने कांग्रेस के राष्ट्रयीय महासचिव अविनाश पांडे से मुलाकात की। असल में भाजपा की विचारधारा वाले निर्दलीय विधायकों से भाजपा के बड़े नेता कोई सम्पर्क नहीं कर रहे हैं। हालांकि पूर्व में वसुंधरा राजे की पकड़ रहती थी। राजे के डर की वजह से भाजपा में बगावत नहीं के बराबर थी। चूंकि अब राजे प्रदेश की राजनीति में रुचि नहीं ले रही है और उन्होंने राष्ट्रीय नेतृत्व पर सारे निर्णय छोड़ दिए है, इसलिए भाजपा के पार्षदों में भी बगावत हो रही है।

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