केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के चुनाव क्षेत्र में भी हार गई भाजपा।

केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के चुनाव क्षेत्र में भी हार गई भाजपा। जिला परिषद में भाजपा का अविश्वास प्रस्ताव खारिज। जयपुर शहर में भाजपा ने मेयर की कुर्सी भी गवाई।
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राजस्थान में नेतृत्व विहीन भाजपा को 23 जनवरी को लगातार दूसरे दिन तब एक और झटका लगा जब जिला परिषद में भाजपा का अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया। यानि अब कांग्रेस के मूलचंद मीणा ही जयपुर के जिला प्रमुख बने रहेंगे। जिला परिषद के वार्ड जयपुर ग्रामीण संसदीय क्षेत्र में आते हैं और यहां से केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण तथा खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ भाजपा के सांसद हैं। हाल ही के विधानसभा चुनाव में भी जयपुर ग्रामीण की दस सीटों में से भाजपा को मात्र दो सीटों पर सफलता मिली थी। यानि आठ सीटों पर राठौड़ के संसदीय क्षेत्र में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। मालूम हो कि राठौड़ दिल्ली में मोदी मंत्रीमंडल में सफलतम मंत्रियों में गिने जाते हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि राठौड़ अपने निर्वाचन क्षेत्र में लगातार हार का सामना कर रहे हैं।  ऐसे में सवाल उठता है कि मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में राठौड़ स्वयं अपने क्षेत्र से कैसे जीत पाएंगे। देखा जाए तो जि ला परिषद में जिला प्रमुख के चुनाव में भी भाजपा संगठन पूरी तरह बिखरा हुआ दिखा। विधानसभा चुनाव से पहले जिला प्रमुख मूलचंद मीणा पाला बदल कर कांग्रेस में शामिल हो गए। चूंकि जिला परिषद मेें भाजपा के 27 सदस्य है इसलिए यह माना जा रहा था कि भाजपा की ओर से जिला प्रमुख मीणा के खिलाफ रखा गया अविश्वास प्रस्ताव मंजूर हो जाएगा। जिला परिषद में कांग्रेस के 22 सदस्य ही है। लेकिन 23 जनवरी को अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में भाजपा के 27 सदस्य भी नहीं आए। ऐसे में जिला प्रमुख के खिलाफ रखा गया अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया। जानकारों की माने तो अविश्वास प्रस्ताव में भाजपा की ओर से कोई तैयारी नहीं थी। क्षेत्रीय सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने भी कोई योजना नहीं बनाई। यही वजह रही कि भाजपा के सदस्यों में बिखराव हो गया। भाजपा के लिए लगातार दूसरा दिन रहा जब राजनीतिक झटका मिला है। 22 जनवरी को जयपुर नगर निगम में मेयर के पद पर भाजपा का उम्मीदवार पराजित हो गया। बागी उम्मीदवार विष्णु लाटा ने 23 जनवरी को मेयर का पदभार संभाल लिया। लाटा को मेयर बनाने में कांगे्रस के पार्षदों की भूमिका रही। जयपुर नगर निगम में भाजपा के 63 पार्षद है लेकिन मेयर के चुनाव में अधिकृत उम्मीदवार को 44 वोट ही मिले। जाहिर है कि बड़ी संख्या में भाजपा पार्षदों ने बगावत की। यानि अब जयपुर शहर और ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस का कब्जा हो गया है। कहा जा रहा है कि इस समय भाजपा का प्रदेश नेतृत्व बेहद ही कमजोर है। राष्ट्रीय नेतृत्व ने जब से वसुंधरा राजे को राष्ट्रीउपाध्यक्ष नियुक्त किया है तब से राजे निष्क्रिय हैं। संगठन पर राजे के पदाधिकारी ही विराजमान हैं। इसलिए भाजपा के पक्ष में कोई रणनीति नहीं बनाई जा रही है। अशोक परनामी को हटा कर जब मदनलाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था तब भी संगठन में कोई बदलाव नहीं किया गया। यही वजह है कि सैनी अब नाममात्र के अध्यक्ष बने हुए हैं।
एस.पी.मित्तल) (23-01-19)
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