प्रियंका गांधी पर चाॅकलेटी चेहरे जैसी टिप्पणी उचित नहीं।

प्रियंका गांधी पर चाॅकलेटी चेहरे जैसी टिप्पणी उचित नहीं।
कांग्रेसियों की ऐसी ही टिप्पणियों को नरेन्द्र मोदी बनाते रहे हैं चुनावी मुद्दा।
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भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने प्रियंका गांधी के कांगे्रस का राष्ट्रीय महासचिव बनने पर अमर्यादित टिप्पणी की है। विजयवर्गीय का कहना था कि अब कांग्रेस को चाॅकलेटी चेहरे की भी जरूरत हो गई है। हालांकि बाद में विजयवर्गीय ने सफाई देते हुए कहा कि उनका मतलब सलमान खान जैसे चेहरों से था। विजयवर्गीय कई बार ऐसी टिप्पणियां कर चुके हैं, लेकिन भाजपा के नेताओं को महिलाओं खास कर प्रियंका गांधी के बारे में अमर्यादित टिप्पणियों से बचना चाहिए। कांग्रेस किस नेता को आगे बढ़ाती है यह कांग्रेस का आंतरिक मामला है फिर प्रियंका गांधी राहुल गांधी की बहन है। क्या कोई बहन राजनीति में अपने भाई को सहयोग करने के लिए नहीं आ सकती? भाजपा के अधिकांश नेता अपने पुत्रों को राजनीति में ला रहे हैं। ऐसे में प्रियंका गांधी के राजनीति में आने पर किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। भाजपा के नेताओं को यह समझना चाहिए कि कांग्रेस की ऐसी ही टिप्पणियांे को नरेन्द्र मोदी चुनावी मुद्दा बनाते रहे हैं। गुजरात चुनाव में जब मणिशंकर अय्यर ने मोदी को नीच किस्म का व्यक्ति कहा, तब मोदी पूरे चुनाव में इस टिप्पणी की चर्चा करते रहे। मोदी का कहना था कि नीच व्यक्ति मुझे नहीं बल्कि गुजरात की जनता को कहा गया। गुजरात के चुनाव परिणाम के बाद खुद कांग्रेस ने माना कि अय्यर की टिप्पणी से नुकसान हुआ। अय्यर ही नहीं शशिथरूर आदि की टिप्पणियों को मोदी ने चुनावी मुद्दा बनाया है। सवाल उठता है कि जब कांग्रेस नेताओं की अमर्यादित टिप्पणियों को मोदी चुनाव में भुनाते है तो फिर राहुल गांधी अपनी बहन पर की गई टिप्पणी को लोकसभा चुनाव मुद्दा क्यों न बनाए? यह चाॅकलेटी चेहरे को कांग्रेस मुद्दा बनाती है तो भाजपा को नुकसान होगा। कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं को यह भी समझना चाहिए कि हाल ही में तीन राज्यों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। एक राज्य मध्यप्रदेश तो विजयवर्गीय का अपना प्रदेश है। तीनों राज्यों के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को एक परिवार की पार्टी करार दिया, लेकिन फिर भी तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। जहां तक प्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में आने का सवाल है तो इससे किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। प्रियंका हमेशा से ही पर्दे के पीछे से पहले मां सोनिया और बाद में भाई राहुल की राजनीति को आगे बढ़ाती रही हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब कांग्रेस लगातार चुनाव हारती रही तो प्रियंका शांत बैठी रही, लेकिन तीन राज्यों में जीत के बाद प्रियंका को भी लगा कि अब कांग्रेस फिर से सत्ता में आ सकती है तो प्रिंयका ने सक्रिय राजनीति में आने में देर नहीं लगाई। प्रियंका को भी पता है कि 2019 के चुनाव में यदि कांग्रेस को मजबूत नहीं हुई तो फिर भविष्य में कांग्रेस का मजबूत होना मुश्किल है।
एस.पी.मित्तल) (27-01-19)
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