जब भारतीय संविधान में भरोसा नहीं है तो फिर फारुख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती जैसे नेता चुनाव के लिए लालायित क्यों हो रहे हैं?

जब भारतीय संविधान में भरोसा नहीं है तो फिर फारुख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती जैसे नेता चुनाव के लिए लालायित क्यों हो रहे हैं? रमजान में मतदान के विवाद को ओवैसी ने खारिज किया।
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चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू कश्मीर में लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव नहीं होंगे। चुनाव आयोग की इस घोषणा का नेशनल कान्फ्रेंस के प्रमुख फारुख अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती आदि नेताओं ने विरोध किया है। ऐसे नेता चाहते हैं कि लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव कराए जाए। इन नेताओं का आरोप है कि केन्द्र की भाजपा सरकार के दबाव में है इसलिए कश्मीर में विधानसभा के चुनाव नहीं करवाए जा रहे हैं।  ये वे ही नेता है जिनका भारतीय संविधान में भरोसा नहीं है। ऐसे नेता आतंकवादियों के सामने भारत को नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ते। हमेशा उन तत्वों के साथ खड़े होते है। जो कश्मीर को भारत से अलग करने के समर्थक हैं। फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को पाकिस्तान के साथ खड़े होने में भी कोई शर्म महसूस नहीं होती। नेताओं को हमारे सुरक्षा बलों के जवानों के बजाए आतंकियों की चिंता ज्यादा रहती है। हमारे कितने भी जवान कश्मीर में शहीद हो जाए इन्हें  दुःख नहीं होता। लेकिन आतंकी के मारे जाने पर ऐसे नेता टप टप आंसू बहाते हैं। इतना ही नहीं कश्मीर को भारत से अगल करने के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत करने का दबाव डालते हैं। भारत की वायु सेना जब पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकाने नष्ट करती है तो ऐसे नेता सेना से सबूत मांगते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि ये नेता विधानसभा के चुनाव करवाने के लिए क्यों उतावले हो रहे हैं। असल में कश्मीर में किसी भी दल की सरकार नेशनल काॅन्फ्रेंस और पीडीपी के सहयोग के बगैर नहीं बनती। इन दोनों दलों का उद्देश्य सरकार बना कर उन तत्वों की मदद करना है जो कश्मीर की आजादी चाहते है। चार वर्ष पहले पीडीपी ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार इसलिए बनाई ताकि आंतकियों को और मजबूत किया जा सके। कोई तीन वर्ष साथ रहने के बाद जब गठबंधन टूटा तो महबूबा ने कहा कि हमने जिस एजेंडे को लेकर सरकार बनाई थी वह पूरा हो गया है। सब जानते हैं कि भाजपा के कंधे पर सवार होकर महबूबा सीएम बनी। महबूबा ने दस हजार से भी ज्यादा पत्थरबाजों पर से मुकदमें वापस ले लिए। महबूबा के शासन में ही सेना पर एफआईआर तक दर्ज हुई। यानि आतंकियों की मदद और सेना को कमजोर करने के लिए जो कुछ भी संबंध था वो महबूबा ने किया। फारुख अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए कश्मीर घाटी से चार लाख हिन्दुओं को भगा दिया। आज कश्मीर में एक तरफा माहौल अब्दुल्ला परिवार की वजह से ही है। ऐसे नेता चाहते हैं कि कश्मीर में सरकार बनाकर फिर से आतंकियों को मजबूत किया जाए। फिलहाल सुरक्षा बलों ने आतंकियों की कमर तोड़ रखी है। राज्यपाल के शासन में फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं की बोलती बंद है। जम्मू कश्मीर में चुनाव से पहले यह जरूरी है कि आतंकवाद को समाप्त किया जावे।
रमजान में मतदान का विवाद खारिजः
भाजपा के घोर विरोधी एआईएमआईएम के प्रमुख अस्सुद्दीन ओवैसी ने रमजान माह में मतदान के विवाद को खारिज कर दिया है। ओवैसी ने कहा है कि रमजान माह में तो मुसलमान और अधिक संख्या में मतदान करेंगे। रमजान की वजह से मतदान के प्रतिशत में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला तक ने रमजान में मतदान कराए जाने का विरोध किया है। चुनाव आयोग से आग्रह किया गया है कि रमजान माह में मतदान न करवाया जावे। मालूम हो कि देश भर में लोकसभा के चुनाव सात चरणों में होने हैं। लेकिन तीन चरण रमजान माह के दौरान होंगे। चांद दिखने पर रमजान माह पांच मई से शुरू होगा।
एस.पी.मित्तल) (11-03-19)
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