तो क्या इस बार वसुंधरा राजे के बगैर राजस्थान में लोकसभा का चुनाव लड़ेगी भाजपा?

तो क्या इस बार वसुंधरा राजे के बगैर राजस्थान में लोकसभा का चुनाव लड़ेगी भाजपा?
पूर्व सीएम अभी तक सक्रिय नहीं।
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17 मार्च को दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह की मौजूदगी में राजस्थान भाजपा कोर कमेटी की बैठक हो रही है। इस बैठक में प्रदेश के लोकसभा चुनाव के 25 उम्मीदवारों के नामों पर अंतिम निर्णय लिया जा रहा है। उम्मीद है कि होली के बाद उम्मीदवारों की घोषणा हो जाए। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश भाजपा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की सक्रियता नहीं के बराबर देखी गई। उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया में भी राजे ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। दिखाने के लिए कोर कमेटी की बैठकों में उपस्थित रहती हैं, लेकिन वे अपनी राय नहीं दे रही है। सीएम के पद पर रहते हुए राजे का जो नियंत्रण था, वह अब नहीं है। यही वजह रही कि विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद जयपुर नगर निगम में बगावत हो गई और भाजपा को मेयर का पद गंवाना पड़ा। इसी प्रकार बीकानेर में भाजपा के दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी ने भी भाजपा सांसद और केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ खुली बगावत कर दी है। भाटी अब मेघवाल की फिर से उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। भाटी को राजे का समर्थक माना जाता है। यदि भाटी पर राजे का दबाव होता तो भाटी खुली बगावत नहीं करते। सब जानते हैं कि मेघवाल भाजपा हाईकमान के चेहते बने हुए हैं, ऐसे में भाटी से बगावत करवा कर हाईकमान को भी संकेत दे दिए हैं। यदि वसुंधरा राजे नरेन्द्र मोदी को दोबारा से प्रधानमंत्री बनवाने में रुचि रखती तो अब तक अपनी सक्रियता दिखा देती। वसुंधरा की सक्रियता नहीं दिखाने का एक और उदाहरण मार्बल नगरी किशनगढ़ के निर्दलीय विधायक सुरेश टांक का है। टांक ने 29 हजार मतों से किशनगढ़ से विधानसभा का चुनाव जीता है और सब जानते हैं कि सुरेश टांक पूर्व सीएम के खास रहे हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजे ने एक बार भी टांक से संवाद नहीं किया। वर्तमान परिस्थितियों में टांक भाजपा के बजाए कांग्रेस के निकट ज्यादा है। सीएम अशोक गहलोत के सम्पर्क में भी हैं, इसलिए किशनगढ में अपने पसंदीदा अधिकारियों की नियुक्ति करवा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण किशनगढ़ के एसडीएम के पद पर श्यामा राठौड़ की नियुक्ति है। हालांकि प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया ने टांक से एक बार बात की है, लेकिन टांक भी अब किशनगढ़ का हित पहले देख रहे है। असल में वसुंधरा राजे को भी आभास हो गया कि इस बार उनके बगैर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा जाएगा। अमित शाह ने गुलाबचंद कटारियां को दिल्ली बुलाकर कहा था कि वे ही दो-तीन नामों पर सहमति बना कर 25 संसदीय क्षेत्रों की सूची बनाएं। जानकारों की माने तो कटारिया ने जो सूची बनाई है उसी पर 17 मार्च को दिल्ली में विचार विमर्श हो रहा है। हालांकि कोर कमेटी में राजे भी शामिल है, लेकिन केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी, कटारिया, संगठन महासचिव चन्द्रशेखर आदि की भूमिका महत्वपूर्ण है। विधानसभा चुनाव के बाद राजे को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर चार राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन राजे ने उपाध्यक्ष की भूमिका सक्रियता नहीं दिखाई, इससे भी भाजपा हाईकमान राजे से नाखुश है। भाजपा के कई नेता अभी मानते हैं कि यदि विधानसभा चुनाव से पहले राजे को सीएम पद से हटा दिया जाता तो राजस्थान में भाजपा की सरकार बन सकती थी, लेकिन राजे की जिद के आगे भाजपा हाईकमान की एक नहीं चली। यही वजह है कि अब लोकसभा के चुनाव से वसुंधरा राजे को अलग कर लड़े जाने का मानस बनाया गया है। यही वजह है कि वसुंधरा राजे के भरोसे राजनीति करने वाले नेता घबराए हुए हैं, जबकि भाजपा संगठन से जुडे नेता खुश हैं। यदि वसुंधरा राजे को लोकसभा चुनाव में राजस्थान से दूर रखा जाता है तो भाजपा को फायदा होगा। वसुंधरा राजे का उपयोग अन्य प्रदेशों में हो सकता है। यूपी में प्रियंका गांधी के मुकाबले में वसुंधरा राजे को उतारा जा सकता है।
एस.पी.मित्तल) (17-03-19)
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