तो क्या धर्मेन्द्र गहलोत अजमेर के मेयर पद से सस्पेंड हो सकते हैं?

तो क्या धर्मेन्द्र गहलोत अजमेर के मेयर पद से सस्पेंड हो सकते हैं?
सरकार के नोटिस से तो ऐसा ही लगता है।
उपायुक्त रलावता के खिलाफ भी कार्यवाही।
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13 व्यावसायिक भवनों के मानचित्रों को गैर कानूनी तरीकों से स्वीकृत करने के मामले में स्वायत्त शासन विभाग ने अजमेर के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को जो नोटिस दिया है, उससे प्रतीत होता है कि राज्य की कांग्रेस सरकार गहलोत को मेयर के पद से सस्पेंड करने मूड में हैं। यदि ऐसा होता है तो यह लोकसभा चुनाव के मौके पर भाजपा को बड़ा झटका होगा। अजमेर नगर निगम पर भाजपा का ही कब्जा है। सरकार ने नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 39 में गहलोत को नोटिस दिया है। इस अधिनियम में नोटिस देने के बाद पार्षद को जांच होने तक सस्पेंड किया जा सकता है। निष्पक्ष जांच के लिए गहलोत को मेयर के पद से सस्पेंड किया जा सकता है, हालांकि अभी सरकार के नोटिस का जवाब गहलोत को देना है। 13 व्यावसायिक नक्शों के मामले में सरकार द्वारा गठित कमेटी ने मेयर गहलोत को भी दोषी माना है। सरकार की जांच रिपोर्ट में माना गया है कि मेयर ने नियमों के विरुद्ध जाकर कार्यवाहक उपायुक्त गजेन्द्र सिंह रलावता ने दोषपूर्ण नक्शों को स्वीकृत करवा दिए। सरकार ने जब नक्शों की जांच करवाने के निर्देश दिए थे, मेयर ने साधारण सभा में नक्शों पर स्वीकृति की मुहर लगवा दी। यानि इन नक्शों को लेकर मेयर की भूमिका नियम विरोधी रही। हालांकि पूर्व में भी गहलोत के कार्यकाल में इस तरह से काम हुए हैं, लेकिन भाजपा के शासन में गहलोत पर कार्यवाही नहीं, लेकिन अब कांग्रेस के शासन में गहलोत के खिलाफ सीधी कार्यवाही हो रही है। असल में इस मामले में आईएएस अफसरों की नाराजगी भी गहलोत को महंगी पड़ रही है। निगम के पूर्व आयुक्त हिमांशु गुप्ता और मौजूदा आयुक्त सुश्री चिन्मय गोपाल भी गहलोत के तौर तारीकों से परेशान रहे। मेयर ने जिस अंदाज में अजमेर के कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा को नोटिस दिया, उससे भी प्रशासनिक क्षेत्रों में नाराजगी बढ़ी। डीएलबी के निदेशक पवन अरोड़ा से भी गहलोत कई बार उलझ चुके हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही गहलोत के खिलाफ चैतरफा माहौल बन गया। हालांकि गहलोत स्वयं एडवोकेट हैं और मुसीबतों से पार पाना जानते हंै, लेकिन इस बार माहौल कुछ ज्यादा ही खराब नजर आ रहा है। गहलोत के समर्थकों को उम्मीद थी कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव महेन्द्र सिंह रलावता के भाई गजेन्द्र सिंह रलावता के उपायुक्त पद पर आ जाने से बचाव हो जाएगा। लेकिन अब रलावता स्वयं संदेह के घेरे में आ गए हैं। रलावता को तो विभागीय आरोप पत्र तक दिया जा रहा है। गत विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर के भाजपा प्रत्याशी वासुदेव देवनानी ने गजेन्द्र सिंह रलावता की शिकायत की थी। तब यह आरोप लगा कि रलावता केकडी में ड्यूटी देने के बजाए अजमेर उत्तर से कांग्रेस प्रत्यशाी और अपने भाई महेन्द्र सिंह रलावता का प्रचार कर रहे हैं। हालांकि भाजपा के शासन में रलावता का अजेमर से तबादला कर दिया गया था, लेकिन कांग्रेस का राज आते ही रलावता फिर से अजमेर नगर निगम के उपायुक्त के पद पर तैनात हो गए। यह बात अलग है कि मेयर की राजनीतिक लड़ाई में इस बार रलावता भी चपेट में आ गए हैं। कांग्रेस के शासन में रलावता पर कार्यवाही होना मायने रखता है।
फिलहाल खामोशीः
आमतौर पर हमलावर रहने वाले मेयर गहलोत इस बार खामोश हैं। सरकार द्वारा नोटिस दिए जाने पर गहलोत कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। लेकिन निगम में गहलोत के समर्थक पार्षद मानते हैं कि यह राजनीतिक द्वेषता है। 13 व्यावसायिक नक्शों का मामला जनहित का है। अधिकारियों ने स्वीकृति में जो लापरवाही बरती उसका दंड भवन मालिकों को क्यों दिया जा रहा है? साधारण सभा में कांग्रेस के पार्षद भी मौजूद थे। यदि कोई कार्य नियम विरुद्ध हो रहा था, तो कांग्रेस के पार्षदों को एतराज करना चाहिए था। कांग्रेस के पार्षद तो आज भी भवन मालिकों के पक्षधर हैं। कांग्रेस की सरकार भले ही मेयर गहलोत और उपायुक्त रलावता को दोषी माने, लेकिन निगम के कांग्रेसी पार्षद साथ खड़े हैं।
एस.पी.मित्तल) (23-03-19)
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