अजमेर में बहुत मायने रखता है चेटीचंड का पर्व।

अजमेर में बहुत मायने रखता है चेटीचंड का पर्व।
मुस्लिम शासक को सबक सिखाने के लिए हुआ था भगवान झूलेलाल का जन्म।
विभाजन के समय सबसे ज्यादा सिंधी अजमेर आए। 
31 मार्च को सिंधियत मेला।
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अजमेर में इस बार भी सिंधियों के आराध्य देव झूलेलाल का जन्मदिन 6 अप्रैल को धूमधाम से मनाया जाएगा। अजमेर में भगवान झूलेलाल के जन्मदिन पर मनाए जाने वाला चेटीचंड का पर्व बहुत मायने रखता है। यही वजह है कि कोई डेढ़ लाख सिंधियों के द्वारा पूरे उत्साह और उमंग के साथ यह पर्व बनाया जा रहा है। इस पर्व के महत्व का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 22 मार्च से ही कार्यक्रम में शुरू हो गए हैं। पर्व के आयोजन से जुड़े हरि चंदनानी और कंवल प्रकाश किशनानी ने बताया कि देश के विभाजन के समय पाकिस्तान से सबसे ज्यादा सिंधी शरणार्थी अजमेर आए। भले ही 70 वर्ष पहले शरणार्थी की स्थिति में आए हो, लेकिन अपने पुरुषार्थ की वजह से आज सिंधी समुदाय बहुत सम्पन्न स्थिति में है। ऐसे अनेक परिवार है जिन्होंने अजमेर में फुटपाथ पर ठेला लगाकर जीवन यापन शुरू किया और आज करोड़ों रुपए की सम्पत्तियों के मालिक है। यह सब सिंधी समुदाय के लोगों ने अपनी मेहनत से एकत्रित किया है। आज अजमेर की पहचान सिंधी समुदाय की वजह से ही होने लगी है। उन्होंने बताया कि कोई सात सौ वर्ष पहले पाकिस्तान में मिरख नामक बादशाह ने हिन्दू माने जाने वाले सिंध प्रांत के लोगों को जबरन मुसलमान बनाने का प्रयास किया, तब हजारों परिवार जान बचाकर सिंधु नदी के किनारे आ गए। तभी नदी के जल से भगवान की आकृति के माध्यम से भविष्यवाणी हुई। इस भविष्यवाणी के बाद ही माता देवकी की कोख से एक शिशु का जन्म हुआ, जिसे भविष्यवाणी के अनुरूप भगवान झूलेलाल माना गया। झूलेलाल ने बाल्यावस्था में ही जो चमत्कार किए उससे मुस्लिम शासक की जोर जबरदस्ती रुक पाई यही वजह है कि तभी से भगवान झूलेलाल को सिंधी संस्कृति के लोग अपना आराध्य देव मानते हैं। उन्होंने बताया कि कोई 15 दिन तक चलने वाले विभिन्न समारोह में सिंधु संस्कृति के संरक्षण के लिए दिशा निर्देश दिए जाते हैं। उन्होंने माना कि भौतिकवाद के इस दौर में सिंधी भाषा का चलन कम हो रहा है। सिंधी परिवारों में भी अपनी मातृ भाषा को भुलाया जा रहा है। लेकिन उनका प्रयास होता है कि इस समारोह के दौरान सिंधी संस्कृति के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दी जाए। सिंधी संस्कृति कोई अलग संस्कृति नहीं बल्कि भारत की सनातन संस्कृति से ही जुड़ी हुई है, इसलिए हिन्दू कैलेंडर की शुरुआत ही भगवान झूलेलाल के जन्म दिन से शुरू होता है।
सिंधु रत्न सम्मानः
समारोह के दौरान 29 मार्च को स्वामी काॅम्प्लैक्स में सायं साढ़े पांच बजे समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए 11 व्यक्तियों को सिंधु रत्न से सम्मानित किया जाएगा। इनमें डाॅ. बलराम च ौधरी, दिनेश मुरजानी, शोभराज सतवानी, प्रभु लोंगानी, सुरेश सिंधी आदि शामिल हैं।
सिंधियत मेलाः
31 मार्च को आज पार्क में सिंधियत मेले का आयोजन किया गया है, मेेले के संयोजक महेश ईसरानी ने बताया कि इस मेले में सिंधी संस्कृति का प्रदर्शन किया जाएगा। मेले के दौरान लक्की ड्राॅ भी निकाले जाएंगे। प्रथम विजेता को दस ग्राम सोने का सिक्का दिया जाएगा। मेले के संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नम्बर 9414437621 पर महेश ईसरानी से ली जा सकती है।
पचास से अधिक झांकियांः
छह अप्रैल को चेटीचंड पर्व पर निकलने वाली शोभायात्रा में करीब पचास झांकियों का प्रदर्शन होगा। ये झांकियां सिंधी संस्कृति और भगवान झूलेलाल के चरित्र से जुड़ी होंगी। उल्लेखनीय है कि प्रति वर्ष इस शोभायात्रा की गूंज शहरभर में होती है। आयो लाल झूलेलाल के नारों से पूरा शहर गूंजता है। शोभायात्रा में सिंधी समुदाय के लोग बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं। चेटीचंड पर्व की जानकारी मोबाइल नम्बर 9649750811 पर हरि चंदनानी और  9829070059 पर कंवल प्रकाश किशनानी से ली जा सकती है।
एस.पी.मित्तल) (28-03-19)
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