अजमेर में राठौड़ बाबा की सवारी का सफर अधूरा रहा। 

अजमेर में राठौड़ बाबा की सवारी का सफर अधूरा रहा। 
डेढ़ सौ वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ।
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कोई डेढ़ सौ वर्ष के इतिहास में यह पहला अवसर रहा जब अजमेर में राठौड़ बाबा की सवारी का सफर पूरा नहीं हो सका। भगवान शिव के प्रतीक माने जाने वाले राठौड़ बाबा की ऐतिहासिक सवारी 15 अप्रैल की रात को निकाली गई। प्रति वर्ष यह सवारी चैत्र माह की दशमी को निकाली जाती है। 15 अप्रैल को भी मोदियाना गली से धूमधाम से सवारी शुरू हुई और कड़क्का चौक होते हुए नया बाजार चौपड़ पर पहुंची। जब बाबा की सवारी नया बाजार चौपड़ से आगरा गेट के लिए रवाना हुई तो बाबा की पालकी उठाने वाली महिलाओं के पैर थम गए लाख कोशिश के बाद भी पैर आगे नहीं बढ़े। हालांकि बेमौसम की बरसात हो रही थी। तेज हवा के कारण भी चलाना मुश्किल था। लेकिन ऐसा प्रतिकूल मौसम बाबा की सवारी पर पहली बार हावी नहीं हुआ। इससे पहले भी कई मौके आए जब बरसात और अंधड़ में बाबा की सवारी उत्साह और उमंग के साथ निकली। चूंकि बाबा के दर्शन करने के लिए नया बाजार क्षेत्र में हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहते हैं। इसलिए 15 अप्रैल की रात को भी नया बाजार खचाखच भरा हुआ था, लेकिन श्रद्धालुओं को तब निराशा हुई, जब बाबा के सफर को घास कटला पर ही समाप्त कर दिया गया। यानि जो श्रद्धालु घास कटला से लेकर आगरा गेट स्थित भोजनशाला तक बैठे हुए थे, वे बाबा के दर्शन नहीं कर सके। परंपरा के मुताबिक दर्शन के समय हजारों श्रद्धालु बाबा के सामने प्रसाद चढ़ाते हैं, लेकिन बाबा की सवारी चौपड़ के निकट ही समाप्त हो जाने से श्रद्धालुओं के हाथों में प्रसाद धरा रह गया। बाबा की सवारी के अधूरे सफर के संबंध में सोल थम्बा फरीकेन गणगौर महोत्सव समिति के संयोजक मुन्ना लाल अग्रवाल का कहना है कि बरसात और बिजली गुल हो जाने की वजह से ऐसा निर्णय लिया गया। अग्रवाल ने दावा किया कि पूर्व में भी एक बार ऐसा हुआ है। लेकिन  जानकार लोगों का कहना है कि डेढ़ सौ वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब बाबा का सफर पूरा नहीं हो सका। प्रतिकूल मौसम का बहाना तो अपनी जगह है, लेकिन बाबा की सवारी इस बार हिन्दू तिथि के अनुरूप नहीं निकाली गई। हमेशा बाबा की सवारी चैत्र माह की दशमी को निकलती है, लेकिन इस बार ग्यारस को सवारी निकाली गई। पंडितों के अनुसार चैत्र माह दशमी 15 अप्रैल को सुबह 11 बजे ही समाप्त हो गई। 11 बजे बाद से ग्यारस की शुरुआत हो गई। यानि आयोजकों ने ग्यारस को बाबा की सवारी निकाली। इस विवाद पर समिति के संयोजक अग्रवाल का कहना है कि मध्यप्रदेश के लीलासागर पंचाग के अनुरूप बाबा की सवारी दशमी को ही निकाली गई है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व:
अजमेर की राठौड़ बाबा की सवारी का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। बााब के दर्शन करने के लिए दूरराज से लोग अजमेर आते हैं। एक अनुमान के अनुसार करोड़ों रुपए का प्रसाद-चढ़ावा एक दिन में चढ़ जाता है। शिव-पार्वती के स्वरूप को करोड़ों रुपए के गहने पहनाए जाते हैं। बाबा की सवारी एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु घंटों इंतजार करते हैं। बाबा की सवारी रात 9 बजे मोदियाना गली से शुरू होती है और आगरा गेट स्थित भोजनशाला के कोई पौने किलोमीटर के सफर को तय करने में छह घंटे लग जाते हैं। बाबा की सवारी पर त्यौंहार जैसा माहौल नया बाजार क्षेत्र में होता है।
एस.पी.मित्तल) (16-04-19)
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