चीन-पाकिस्तान के बीच 880 किलोमीटर का रोड मात्र 36 माह में बन गया और स्मार्ट सिटी के लिए अजमेर में कंसलटेंट तक नहीं।

चीन-पाकिस्तान के बीच 880 किलोमीटर का रोड मात्र 36 माह में बन गया और स्मार्ट सिटी के लिए अजमेर में कंसलटेंट तक नहीं।  ऐलीवेटेड रोड की भी कछुआ चाल। क्या अब कांग्रेस सरकार से मिल पाएगा पैसा?
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मेरे फेसबुक पेज पर चीन-पाकिस्तान के बीच बने रोड का एक चमत्कारिक वीडियो देखा जा सकता है। चार लाख 48 हजार 500 करोड़ रुपए से बना यह 880 किलोमीटर का शानदार रोड मात्र 36 माह में बन कर तैयार हो गया। यह रोड किसी समतल मैदान भू भाग में नहीं बना बल्कि दुर्गम पहाडिय़ों और पानी में बना है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के किनारे लम्बे लम्बे पिलर खड़े कर रोड का निर्माण उच्चतम तकनीक से किया गया है। दुुनिया में ऐसा करिश्मा सिर्फ चीन जैसा देश ही कर सकता है। मैंने चीन-पाकिस्तान के इस रोड का उदाहरण इसलिए दिया, क्योंकि पिछले तीन वर्ष यानि 36 माह से अजमेर भी स्मार्ट सिटी बन रहा है। स्मार्ट सिटी में जो कार्य हुए वो सब अजमेरवासियों के सामने हैं। स्मार्ट सिटी योजना की इतनी बुरी दशा है कि हमारे पास कंसलटेंसी एजेंसी तक नहीं है। जबकि स्मार्ट सिटी की पहली अनिवार्य शर्त कंसलटेंसी एजेंसी का होना है। यूं कहने को तो योजना का चेयरमैन प्रदेश के यूडीएच विभाग के शासन सचिव को बना रखा है। जिला कलेक्टर, सीईओ और नगर निगम के आयुक्त को एसीईओ बना रखा है, जबकि योजना के लिए अलग से सीईओ की नियुक्ति होनी चाहिए, इन पदों पर बैठे अधिकारी पहले ही इतने व्यस्त होते हैं स्मार्ट सिटी के कार्यों की निगरानी करने का समय ही नहीं मिलता। अजमेर में स्मार्ट सिटी के लिए 1947 करोड़ की योजना बनाई गई। लेकिन मात्र 380 करोड़ के कार्य ही स्वीकृत ही पास अभी भी इस योजना के बैंक खाते में करीब सौ करोड़ रुपया पड़ा हुआ है। यश बैंक इस योजना से मालामाल हो गया है, क्योंकि जमा राशि पर मात्र 6 प्रतिशत ब्याज दिया जाता है। जबकि यश बैंक जरुरतमंद लोगों को 10 से 12 प्रतिशत की ब्याज दर पर लोन देता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि सौ करोड़ की राशि पर यश बैंक अकेले अजमेर में कितना मुनाफा कमा रहा होगा। जिन अफसरों ने सरकारी बैंक के बजाए निजी बैंक में खाता खुलवाया वो भी मालामाल हुए होंगे। अभी सबसे बड़ा डर राज्य सरकार से मिलने वाली राशि का है, स्मार्ट सिटी योजना के अनुसार पचास प्रतिशत का हिस्सा केन्द्र सरकार तीस प्रतिशत का राज्य सरकार और 10-10 प्रतिशत का नगर निगम और अजमेर विकास प्राधिरकण का है। तीन माह पहले तक राज्य में बीजेपी की सरकार थी, इसलिए राज्य सरकार के हिस्से की राशि आ रही थी, लेकिन अब राज्य में कांग्रेस की सरकार है, ऐसे में माना जा रहा है कि राज्य सरकार के हिस्से की राशि नहीं आएगी। निगम और प्राधिकरण भी राशि देने से इंकार कर सकते हैं। यानि स्मार्ट सिटी का ख्वाब अधूरा रह जाएगा। हो सकता है कि भाजपा सरकार में जो कार्य स्वीकृत हुए उनकी भी समीक्षा हो। देखा जाए तो अजमेर में स्मार्ट सिटी के काम शुरू से ढीले रहे। 250 करोड़ की लागत से बनने वाला ऐलीवेटेड  रोड का कार्य भी बहुत धीमी गति से चल रहा है। खाईलैंड में पूर्व अग्निशमन का दफ्तर सुभाषा बाग के निकट प्राइवेट बसस्टैंड वाले तथा स्टेशन रोड पर मोइनिया इस्लामिया स्कूल के मैदान पर जो मल्टी स्टोरी पार्किग की योजना बनाई गई थी, वह भी धरी रह गई। शहर के नागरिकों की अरुचि के चलते भी स्मार्ट सिटी का काम धरा रह गया। लोगों ने न तो अपने घरों के बाहर पेड़ लगाए और न ही सीवरेज के कनेक्शन लिए। नगर निगम पानी के बिल के साथ करीब 25 रुपए प्रतिमाह सीवरेज शुल्क वसूल रहा है। जबकि शहर में अभी तक भी सीवरेज का कार्य सूचारू नहीं हुआ है। आज भी गंदे नालों का पानी आनासागर झील में गिर रहा है। घर घर से कचरा संग्रहण का कार्य भी अब प्रभावी नहीं है। स्मार्ट सिटी की परिकल्पना में शहरवासियों को चौबीस घंटे पेयजल की सप्लाई होनी चाहिए थी लेकिन अजमेर में तो तीन दिन में एक बार मात्र 45 मिनट के लिए पेयजल की सप्लाई हो रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अजमेर में स्मार्ट सिटी का कितना बुरा हाल  है।
एस.पी.मित्तल) (05-05-19)
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