आखिर अलवर पुलिस ने किसके आदेश से गैंग रेप की वारदात को छिपाए रखा?

आखिर अलवर पुलिस ने किसके आदेश से गैंग रेप की वारदात को छिपाए रखा?
क्या पुलिस 6 मई तक कांग्रेस सरकार को बदनामी से बचाना चाहती थी?
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राजस्थान में 6 मई को जब शेष 12 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी हो रही थी, तब अलवर जिले में गैंगरेप का एक शर्मनाक घटना उजागर हुई। हालांकि यह घटना 26 अप्रैल की है, लेकिन पुलिस ने इस घटना को दबाए रखा। राजस्थान में 29 अप्रैल को पहले दौरे में 13 सीटों पर मतदान हुआ। जो वारदात 26 अप्रैल को हुई हो, उसकी जानकारी यदि मतदान समाप्ति वाले दिन मिले तो पुलिस पर सवालिया निशान लगते हैं। अनुसूचित जाति के विवाहित जोड़े का कहना है कि 26 अप्रैल को जब वे अलवर जिले के लालबाड़ी से तालवृक्ष की ओर मोटर साइकिल पर जा रहे थे, तब थानागाजी बाईपास रोड पर पांच युवकों ने रास्ता रोक लिया। पांचों युवक पति-पत्नी को सूने स्थान पर ले गए और पति की पिटाई करने के बाद उसी के सामने पांचों युवकों ने उसकी पत्नी के साथ गैंगरेप किया। इतना ही नहीं गैंगरेप का वीडियो भी बनाया गया। संबंधित थाने की पुलिस ने जब कोई कार्यवाही नहीं की तो 2 मई को पीडि़त पति-पत्नी एसपी राजीव पचार के समक्ष उपस्थित हुए। हालांकि एसपी ने मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए, लेकिन फिर भी 6 मई तक गैंगरेप का मामला दबा रहा। पुलिस ने छोटेलाल गुर्जर को मुख्य आरोपी के तौर पर नामजद भी किया है। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट कह सकते हैं कि अलवर के गैंगरेप के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी, लेकिन सवाल उठता है कि यदि ऐसी घटना पांच माह पहले भाजपा सरकार की सीएम वसुंधरा राजे के समय में हुई होती तो गहलोत-पायलट की क्या प्रतिक्रिया होती? क्या अलवर की घटना के लिए सीधे सीएम वसुंधरा राजे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता? विधानसभा चुनाव के दौरान भी गहलोत पायलट ने प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाया था। क्या अब यह जिम्मेदारी गहलोत पायलट की नहीं है? वसुंधरा राजे ने तो गुलाबचंद कटारिया को गृहमंत्री बनाया था, लेकिन गहलोत ने तो गृह विभाग अपने ही पास रखा है। यानि प्रदेश के गृहमंत्री भी गहलोत ही है। अलवर पुलिस पर राजनीतिक दबाव होने से ही गैगरेप का मामला 6 मई तक दबा रहा। सरकार कोई भी हो, सरकारी मशीनरी का तो दुरुपयोग होता ही है। यदि पुलिस पर दबाव नहीं होता तो गैंगरेप 29 अप्रैल से पहले ही उजागर हो जाता। इसका फायदा पांचों अपराधियों को भी मिल रहा है। इसे राजनीतिक का चरित्र ही कहा जाएगा कि लोकसभा चुनाव के दौरान आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है। अब चूंकि प्रदेश की सभी 25 सीटों पर मतदान हो गया है तो संभव है आरोपी भी पकड़ में आ जाएं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने राजनीति और पुलिस की मिली भगत उजाकर कर दी है।
एस.पी.मित्तल) (07-05-19)
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