भाजपा का मेयर होने की वजह से कांग्रेस सरकार तंग कर रही है। 

भाजपा का मेयर होने की वजह से कांग्रेस सरकार तंग कर रही है। 
अजमेर के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने अफसरों पर साधा निशाना। 
स्वयं को बताया निर्दोष। 
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13 व्यावसायिक भवन मानचित्रों की स्वीकृति में दोषी ठहराए गए अजमेर नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने अब कांग्रेस सरकार पर राजनीतिक हमला बोला है। गहलोत का कहना है कि मैं भाजपा का कार्यकर्ता हंू, इसलिए मौजूदा कांग्रेस सरकार राजनीतिक द्वेषता से परेशान कर रही है। मालूम हो कि राज्य सरकार द्वारा गठित जांच समिति ने मानचित्रों की स्वीकृति में मेयर गहलोत को सीधे तौर पर दोषी मानते हुए नगर पालिका अधिनियम की विभिन्न धाराओं में कार्यवाही शुरू की है। इन धाराओं में गहलोत का मेयर के पद से निलंबन भी हो सकता है। गहलोत को हाल ही में जो आरोप पत्र दिया है उसका अब गहलोत स्वायत्त शासन विभाग के संयुक्त सचिव और निदेशक पवन अरोड़ा के समक्ष जवाब प्रस्तुत कर दिया है। इस जवाब में गहलोत ने कहा कि 13 व्यावसायिक मानचित्रों की पत्रावलियां 1 अक्टूबर 2018 से 31 जनवरी 2019 तक यानि चार माह तक स्वायत्त शासन विभाग में निरीक्षण और परीक्षण के लिए उपलब्ध रही। यदि इन पत्रावलियों में कोई त्रुटि होती तो विभाग बताता। लेकिन विभाग ने ऐसा कुछ नहीं किया और 31 जनवरी 2019 को वापस अजमेर नगर निगम को लौटा दिया। साथ ही निदेशक पवन अरोड़ा ने निर्देश दिए कि इन पत्रावलियों को निगम की साधारण सभा में रख कर निस्तारण किया जावे। सरकार के इन्हीं निर्देशों के तहत 14 व 15 फरवरी 2019 को हुई साधारण सभा में सभी 13 मानचित्रों को स्वीकृति दी गई। 15 फरवरी को साधारण सभा में आयुक्त चिन्मयी गोपाल भी उपस्थित थीं, लेकिन तब आयुक्त ने अपनी कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई। वैसे भी साधारण सभा की कार्यवाही की जिम्मेदार आयुक्त की ही होती है। 15 फरवरी को हुई साधारण सभा की कार्यवाही पर आयुक्त ने 26 फरवरी को हस्ताक्षर किए, लेकिन 23 फरवरी को ही अखबारों में छपवा दिया कि 13 व्यावसायिक भवनों की स्वीकृति वाले प्रस्ताव से सहमत नहीं है। आयुक्त की यह कार्यवाही द्वेषतापूर्ण प्रतीत होती है। यदि कोई आपत्ति थी तो साधारण सभा में बताई जानी चाहिए थी। स्वीकृति देने का निर्णय साधारण सभा में सर्वसम्मति से हुआ था। साधारण सभा के एजेंडे में प्रस्ताव भी आयुक्त की सहमति से ही रखे जाते हैं।
जांच कमेटी पर सवाल:
मेयर गहलोत ने 13 पत्रावलियों के संबंध में गठित जांच समिति पर भी सवाल उठाए हैं। गहलोत ने कहा कि जब चार माह तक पत्रावलियों को अपने पास रखने के बाद भी विभाग के संयुक्त सचिव और निदेशक को कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई, तब  इन्हीं पत्रावलियों की जांच के लिए अजमेर के अतिरिक्त कलेक्टर (शहर) अशोक नाथ योगी की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित कर दी। 5 मार्च को कमेटी गठन के  आदेश और मात्र तीन दिन में कमेटी ने जांच भी पूरी कर ली। चार माह तक परीक्षण करने के बाद भी स्वायत्त शासन विभाग के कार्मिकों को कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई, लेकिन योगी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने मात्र तीन दिन में कथित गड़बडिय़ां निकाल कर सीधे मेयर को दोषी ठहरा दिया। जांच कमेटी में एक मात्र तकनीकी सदस्य के तौर पर वरिष्ठ नगर नियोजक मुकेश मित्तल को शामिल किया गया, लेकिन तबादला हो जाने के कारण मित्तल ने जांच में सहयोग नहीं किया। ऐसे में योगी ने सहायक अभियंता स्तर की अधिकारी श्रीमती नैंसी जैन को शामिल कर लिया, लेकिन जांच रिपोर्ट पर जैन के भी हस्ताक्षर नहीं है। जांच समिति के सदस्य और नगर निगम के विधि अधिकारी हरजीराम सिरवी का कथन तो हास्यास्पद है। सिरवी को निगम के नियमों की पूरी जानकारी होनी चाहिए, लेकिन जांच रिपोर्ट में सिरवी ने कहा है कि आयुक्त के आकस्मिक  अवकाश पर होने सेे उपायुक्त को शक्तियां प्रदान करने की उन्हें कोई जानकारी नहीं है। सिरवी के ऐसे कथन से जाहिर होता है कि मिथ्या तथ्यों पर जांच रिपोर्ट तैयार की गई है। इतना ही नहीं अशोक नाथ योगी का तबादला 8 मार्च 2019 को अजमेर के अतिरिक्त कलेक्टर (शहर) के पद से जयपुर हो गया, लेकिन फिर भी जांच कमेटी के अध्यक्ष की हैसियत से रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए हैं। गंभीर बात यह है कि जांच रिपोर्ट 18 मार्च को जयपुर भेजी गई। इससे प्रतीत होता है कि योगी ने तबादला होने के बाद हस्ताक्षर किए हैं।
उपायुक्त को अधिकार देने का मामला:
आयुक्त के अवकाश पर रहने के दिन उपायुक्त को अधिकार देने के संबंध में मेयर गहलोत का कहना रहा कि समय समय पर सरकार ने स्वयं ऐसे अधिकार दिए हैं। मुख्यमंत्री शहरी जन कल्याण योगना या फिर अन्य कोई महत्वपूर्ण अवसर। सरकार ने परिपत्र जारी  कर उपायुक्त को अधिकार दिए हैं। 8 मई 2017 को राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 49(9) व 332(3) में संशोधन करते हुए अध्यक्ष को नगर पालिका के समस्त प्रशासनिक एवं वित्तीय कार्यों के लिए अधीकृत किया है। ऐसे में मेरे द्वारा उपायुक्त को अधिकार दिए जाने के आदेश दोषपूर्ण नहीं है।
विवादों में रही हैं आयुक्त:
मेयर गहलोत ने कहा कि निगम की आयुक्त सुश्री चिन्मयी गोपाल (आईएएस) विवादों में रही हैं। अजमेर से पहले चिन्मयी जिन जिलों में भी नियुक्त रहीं वहां उच्चाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से उनका विवाद रहा। अपने जवाब में मेयर ने समाचार पत्रों की कटिंग संलग्न की है जो चिन्मयी के विवादों से जुडी हुई हैं। गहलोत का कहना रहा कि द्वेषतापूर्ण तरीके से उनके विरुद्ध जांच रिपोर्ट तैयार करवाई गई है, जबकि उन्होंने मेयर के पद पर रहते हुए नियमों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं किया।
हाईकोर्ट की शरण:
निलंबन की संभावित कार्यवाही से बचने के लिए गहलोत ने हाईकोर्ट की भी शरण ली है। हालांकि अभी कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। गहलोत ने जो जवाब भेजा है उस पर अब सरकार को निर्णय लेना है।
एस.पी.मित्तल) (08-05-19)
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