क्या वाकई जनसेवक की भूमिका में है पार्षद?

क्या वाकई जनसेवक की भूमिका में है पार्षद? अजमेर निगम के अब 80 वार्ड होंगे।

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शहरी क्षेत्र में वार्ड पार्षद को लोकतंत्र की पहली सीढ़ी माना गया है। भारतीय संविधान की भावना है कि वार्ड पार्षद अपने क्षेत्र के नागरिकों की छोटी छोटी समस्याओं का समाधान करेगा। वार्ड पार्षद को लोकतंत्र में प्रथम जनसेवक माना गया है। इसी भावना के अनुरूप राज्य सरकार ने प्रदेशभर में एक हजार 903 नए वार्ड बना दिए हैं। ये वृद्धि आबादी को ध्यान में रखते हुए की गई है। सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना के अनुसार अब अजमेर  नगर निगम में साठ के बजाए अस्सी वार्ड होंगे। इसी प्रकार जिले में किशनगढ़ में अब 60, केकड़ी में 40, बिजयनगर में 35, सरवाड़ में 25 और पुष्कर में 25 पार्षद चुने जाएंगे। सवाल उठता है कि क्या पार्षद वाकई जनसेवक की भूमिका निभा रहे हैं। इसका जवाब अजमेर के पार्षद चन्द्रेश सांखला और वीरेन्द्र वालिया अच्छी तरह दे सकते हैं। ये दोनों भाजपा के पार्षद हैं और खुलेआम एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। दोनों का आरोप है कि पार्षद सरकारी जमीनों पर कब्जे कर रहे हैं और आवासीय भूखंड पर व्यावसायिक निर्माण करवा रहे हैं। इतना ही नहीं कृषि भूमि पर कॉलोनियों काट कर बेची जा रही है। यानि पार्षद माल कमाने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं वो कर रहे हैं। कमोबेश यही हाल पूरे प्रदेश का है। ऐसा नहीं कि सारे पार्षद गैर कानूनी कार्य कर रहे हैं। कुछ पार्षद वाकई जनसेवक की भूमिका में है। जो पार्षद जनसेवक की भूमिका में रहे वे आगे चल कर विधायक, सांसद और मंत्री भी बने। लेकिन अधिकांश पार्षद दोबारा से चुनाव जीत नहीं पा रहे हैं। पार्षद के तौर पर कोई बड़ा पारिश्रमिक भी नहीं मिलता है, लेकिन इसके बावजूद भी अधिकांश पार्षद बीस बीस लाख रुपए की कीमत वाली कारो में घूमते हैं। पार्षद बनने से पहले जो किराये के मकान में रहते थे, उनके पास पांच वर्ष में आलीशान बंगले हो गए हैं। कई पार्षदों ने तो विदेश यात्राएं भी की है। अजमेर की जनता बता सकती है कि उनका पार्षद किस भूमिका में है।
इस बार जनता चुनेगी मेयर:
राजस्थान में इस बार स्थानीय निकायों के प्रमुखों का चुनाव आमजनता करेगी। भाजपा के शासन में पार्षदगण मिलकर निकायों के प्रमुखों को चुनते थे, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर अब निकाय प्रमुखों के चुनाव की प्रक्रिया को बदल दिया गया है। यानि अजमेर के मेयर के चुनाव के लिए आम मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेगा। इस प्रक्रिया की वजह से पार्षदों का महत्व कम होगा। मेयर चुन जाने के बाद साधारण सभा में मेयर को हटाने का कोई खतरा नहीं होगा।
एस.पी.मित्तल) (11-06-19)
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