राजस्थान में लोकसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से 80 लाख वोट ज्यादा मिले।

राजस्थान में लोकसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस से 80 लाख वोट ज्यादा मिले। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को डेढ़ लाख वोट ज्यादा मिले थे। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की दर्शनीय उपस्थिति।

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16 जून को राजस्थान भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक जयपुर में तोतुका भवन में सम्पन्न हुई। इस बैठक में भाजपा के नवनिर्वाचित सांसद भी उपस्थित रहे। केन्द्रीय संसदीय राज्यमंत्री अर्जुन मेघवाल दिल्ली में व्यस्त रहने की वजह से नहीं आए, लेकिन केबिनेट मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और राज्यमंत्री कैलाश चौधरी पूरे उत्साह और उमंग के साथ उपस्थित रहे। बैठक की कमान प्रदेश संगठन मंत्री चन्द्रशेखर के हाथों में थी। लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर जीत से चन्द्रशेखर भी उत्साहित थे। बैठक में प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि लोकसभा का यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आजादी के बाद यह पहला अवसर रहा जब राजस्थान में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले में 80 लाख वोट ज्याद मिले हैं। इसका श्रेय कार्यकर्ताओं की मेहनत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा है। 80 लाख वोटों की जीत बताती है कि राजस्थान में भाजपा कितनी मजबूती के साथ खड़ी है। आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को 200 में से 150 विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली है। कटारिया जब पूरे उत्साह के साथ लोकसभा चुनाव के आंकड़े बता रहे थे, तब बैठक में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी उपस्थित थीं, लेकिन उनके चेहरे पर खुशी का कोईभाव नहीं था। सब जानते हैं कि पांच माह पहले विधानसभा का चुनाव भाजपा ने राजे के नेतृत्व में ही लड़ा था और भाजपा को हार का समना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले कांगे्रस को मात्र डेढ़ लाख मत ज्यादा मिले थे। विधानसभा चुनाव में डेढ़ लाख मतों की हार और लोकसभा चुनाव में 80 लाख मतों की जीत राजस्थान की राजनीति को बयां करती है। सवाल उठता है कि पांच माह में ऐसा क्या हो गया जो हार और जीत का इतना बड़ा अंतर रहा। असल में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वसुंधरा राजे का और लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखा। यदि विधानसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखा। यदि विधानसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखा जाता वो आज राजस्थान में भाजपा की सरकार होती। भाजपा के नेता माने या नहीं लेकिन विधानसभा चुनाव में सिर्फ वसुंधरा राजे की वजह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश की जनता ने तो जनवरी 2018 में हुए अजमेर और अलवर में हुए लोकसभा के उपचुनाव में ही इशारा कर दिया था, लेकिन वसुंधरा राजे और भाजपा के नेताओं के बुरी तरह हारने के बाद भी मतदाताओं का इशारा नहीं समझा। उल्लेखनीय है कि लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा को दोनों संसदीय क्षेत्रों के सभी 16 विधानसभा क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा था।
राजे की दर्शनीय उपस्थिति:
इसे राजनीति और समय का चक्र ही कहा जाएगा कि जिन वसुंधरा राजे के बगैर राजस्थान में सरकार और संगठन में पत्ता भी नहीं हिलता था, उन्हीं वसुंधरा राजे की 16 जून को भाजपा को प्रदेश कार्य समिति की बैठक में दर्शनीय उपस्थिति रही। हालांकि विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था, लेकिन राजे को मोह अभी भी प्रदेश की राजनीति से कम नहीं हुआ है। यह बात अलग है कि लोकसभा चुनाव में राजे की कोई प्रभावी भूमिका नहीं थी। कुछ स्थानों को छोड़ कर राजे ने प्रदेशव्यापी दौरा भी नहीं किया। यदि 16 जून जैसे ही हालात रहे तो भाजपा की बैठकों में भी राजे की कोई प्रांसगिता नहीं रहेगी। जोधपुर से गजेन्द्र सिंह शेखावत, बाड़मेर से कैलाश चौधरी, बीकानेर से अर्जुन मेघवाल, राजसमंद से दीयाकुमारी आदि भाजपा उम्मीदवारों ने राजे की भूमिका के बारे में भाजपा के बड़े नेताओं को कई महत्वपूर्ण जानकारी दी है।
एस.पी.मित्तल) (16-06-19)
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