चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को अब अयोध्या भूमि विवाद के फैसले में विलम्ब नहीं करना चाहिए।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को अब अयोध्या भूमि विवाद के फैसले में विलम्ब नहीं करना चाहिए। समझौते की कोशिशें नाकाम। मोदी सरकार की भी होनी है अग्नि परीक्षा। 

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18 जुलाई को मध्यस्थता कमेटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत कर दी है। कोर्ट ने कमेटी से कहा कि अयोध्या भूमि विवाद के प्रकरण में 31 जुलाई तक फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी जाए। अब सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंगन गोगोई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ 2 अगस्त को खुली अदालत में सुनवाई करेगी। इसी दिन यह तय होगा कि मामले की सुनवाई किस तरह हो। सुप्रीम कोर्ट की पिछली कार्यवाही बताती है कि चीफ जस्टिस गोगोई ने कोर्ट के बाहर दोनों पक्षों में समझौते के बहुत प्रयास किया। चीफ जस्टिस का पद संभालने के बाद जस्टिस गोगोई ने कहा कि अयोध्या भूमि विवाद कोर्ट की नजर में सामान्य प्रकरण है। इसलिए सामान्य तरीके से ही सुनवाई होगी। फिर जस्टिस गोगोई ने भूमि विवाद को सुलझाने के लिए रिटायर जज एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में मध्यस्थता कमेटी बना दी। कमेटी की गतिविधियों की खबरें मीडिया में जारी होने पर पाबंदी भी लगा दी। हालांकि अभी मध्यस्थता कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है, लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि कमेटी अपने उद्देश्य में विफल रही है। दोनों पक्षों की ओर से कहा गया कि कोर्ट को ही आदेश देना चाहिए। यानि चीफ जस्टिस को जो प्रयास करने थे, वो कर लिए। अब अच्छा हो कि सुप्रीम कोर्ट अपना निर्णय दे दे। माना तो यही जाता है कि अदालतेें सबूतों के आधार पर फैसला देती हैं। अयोध्या में विवादित भूमि पर भगवान राम का मंदिर था, इसके पक्के सबूत अदालत में मौजूद हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में मंदिर के अवशेष मिले हैं। सवाल यह भी है कि भगवान राम का जन्म स्थान भारत में नहीं होगा तो क्या अमरीका में होगा? रामजी जन्म स्थान से करोड़ों हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं, लेकिन कोर्ट की नजर में धार्मिक भावनाएं कोई मायने नहीं रखती है। कोर्ट को सबूत के आधार पर फैसला देता है। धार्मिक भावनाएं लोकतंत्र में सरकार के लिए बहुत मायने रखती हैं। सुप्रीम कोर्ट कुछ भी फैसला दे, लेकिन इस फैसले के बाद ही केन्द्र में नरेन्द्र मोदी वाली भाजपा सरकार की अग्नि परीक्षा होगी। इसलिए चीफ जस्टिस गोगोई को अब रोजाना सुनवाई कर निर्णय देना चाहिए। अब विलम्ब होगा तो अदालत की मंशा पर भी सवाल उठेगा।
एस.पी.मित्तल) (18-07-19)
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