कश्मीर पर अमरीका के इस रुख को पाकिस्तान और कांग्रेस समझे।

कश्मीर पर अमरीका के इस रुख को पाकिस्तान और कांग्रेस समझे।
अब शांति बहाली में सहयोग करें, ताकि कश्मीरियों का भी भला हो सके।
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26 अगस्त को फ्रांस में कश्मीर मुद्दे पर अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का जो रुख देखने को मिला उससे अब पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस पार्टी को सबक लेना चाहिए। जी-7 की बैठक से पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप मीडिया के सामने उपस्थित हुए। ट्रंप ने साफ कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान आपस मिल कर सुलझा लेंगे। वहीं मोदी ने कहा कि हम तीसरे पक्ष को कष्ट नहीं देना चाहते। ऐसे में सवाल उठता है कि ट्रंप पिछले एक माह से मध्यस्थता करने का राग क्यों अलाप रहे थे। कश्मीर की जानकारी रखने वालों को पता है कि होगा कि गत माह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमरीका में ट्रंप से मुलाकात की थी। तब ट्रंप ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे (ट्रंप) मध्यस्थता करने का आग्रह किया है। ट्रंप के इस बयान से पाकिस्तान में खुशियां मनाई गई तो भारत में कांग्रेस पार्टी ने संसद और सड़क पर हंगामा किया। कांग्रेस को अमरीका की मध्यस्थता पर ऐतराज था। तब नरेन्द्र मोदी को छोड़कर पूरी सरकार ने ट्रंप के बयान का खंडन किया। इमरान खान के पाकिस्तान लौटते ही 5 अगस्त को भारत की ससंद ने कश्मीर से अनुचछेद 370 को बेअसर कर दिया। जम्मू कश्मीर प्रांत को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित कर लद्दाख को अलग दर्जा दे दिया। अनुच्छेद 370 को बेअसर करने के बाद 26 अगस्त में फ्रांस में मोदी और ट्रंप मीडिया के सामने थे। पूरी दुनिया ने दोनों का दोस्ताना अंदाज भी देखा। ट्रंप ने मोदी की बात पर भरोसा करते हुए कहा कि 5 अगस्त के बाद से कश्मीर में हालात नियंत्रण में हैं। पाकिस्तान और कांग्रेस पार्टी माने या नहीं लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर मोदी और ट्रंप एकमत हैं और कश्मीर में शांति चाहते हैं। ट्रंप ने मध्यस्थता करने वाला बयान एक सोची समझी राजनीति के तहत ही दिया। यदि ऐसा नहीं होता तो 26 अगस्त को ट्रंप का यू टर्न नहीं होता। असल में पाकिस्तान में इमरान खान को भी आभास हो गया था कि फ्रांस में क्या होगा, इसलिए मोदी-ट्रंप की मुलाकात के बाद इमरान ने राष्ट्र को संबोधित किया। 370 के बेअसर होने के बाद पाकिस्तान का भी कश्मीर में दखल खत्म हो गया है, इसलिए इमरान खान भारत पर परमाणु हमले की धमकी दे रहे हैं। इमरान को भी अब अपने देश को जवाब देना है, इसलिए कश्मीर पर हमलावर बने हुए हैं। अब पाकिस्तान कश्मीर में आतंकी वारदातों में इसलिए सफल रहा है कि कश्मीर घाटी में पाक परस्त नेताओं, अलगाववादियों का कब्जा रहा, लेकिन अब कश्मीर में ऐसे तत्वों से मुक्त हो गया है। बदले हुए माहौल में पाकिस्तान और कांग्रेस को हार जीत नहीं देखनी चाहिए। दोनों का प्रयास कश्मीर घाटी में शांति कायम करना होना चाहिए। जिन कश्मीरियों का 70 साल विकास नहीं हुआ, उन्हें अब विकास से जुडऩा चाहिए। कांग्रेस पार्टी को भी पाकिस्तान से हट कर अपनी छवि बनानी चाहिए। भारत के अन्य हिस्सों में भी मुसलमान समुदाय शांति के साथ रह रहा है।
एस.पी.मित्तल) (27-08-19)
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