तो अब राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सरकारी बंगला संख्या 13 खाली करना पड़ेगा।

तो अब राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सरकारी बंगला संख्या 13 खाली करना पड़ेगा। हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली आजीवन सुविधाओं पर रोक लगाई। राजे ने मुख्यमंत्री रहते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश दर किनार किए थे।

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भगवान के यहां देर है पर अंधेर नहीं। यह कहावत अब राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे पर चरितार्थ हो रही है। 2013 से 2018 के कार्यकाल में वसुंधरा राजे और उनके दलाल किस्म के चमचों ने जो ज्यादतियां की उसी का परिणाम है कि अब राजे को जयपुर में सिविल लाइंस स्थित सरकारी बंगाल संख्या 13 खाली करना पड़ेगा। 4 सितम्बर को जोधपुर स्थित हाईकोर्ट के जज प्रकाश चंद गुप्ता ने राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम 2017 को अवैध घोषित कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री को मिलने वाली सुविधाओं को सुप्रीम कोर्ट के आदेश में देखा  जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में आदेश दे रखा है कि पूर्व मुख्यमंत्री आजीवन सुविधा लेने के हकदार नहीं है। ऐसे में राजस्थान में भी किसी पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी बंगला और अन्य सुविधाएं नहीं दी जा सकती है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी सिविल लाइंस  स्थित बंगला संख्या 13 खाली करना पड़ेगा तथा सरकारी सुविधाएं भी लौटानी पड़ेगी। हालांकि वसुंधरा राजे के पास अरबों रुपए की सम्पत्ति है, लेकिन अब उन्हें सरकारी सुविधाओं का मोह छोडऩा पड़ेगा। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि वसुंधरा राजे जब मुख्यमंत्री थी तभी उन्होंने 2017 में विधानसभा में प्रस्ताव स्वीकृत करवाया। इस प्रस्ताव में पूर्व मुख्यमंत्री को जयपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र में केबिनेट मंत्री को मिलने वाला बंगला देने के साथ साथ निजी सचिव, 2 स्टेनोग्राफर, एक कार्यालय अधीक्षक, ड्राइवर, तीन चपरासी तथा देशभर में मुफ्त हवाई यात्रा आदि की सुविधा स्वीकृत करवा ली। कांग्रेस इस बिल पर कोई ऐतराज नहीं करे, इसके लिए तबके पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी ऐसी सुविधाएं दी गई। इतना ही नहीं पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं होने के बावजूद नियमों के विरुद्ध पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिय़ा को भी ऐसी सुविधा उपलब्ध करवाई गई। सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री के सरकारी निवास बंगला संख्या 8 को तो बनाए रखा, साथ ही सिविल लाइंस के बंगला संख्या 13 पर भी अवैध तौर पर काबिज रहीं। मुख्यमंत्री रहते हुए राजे ने बंगला संख्या 13 में सरकारी खर्चे पर तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध करवा ली। इसे राजनीति का घालमेल ही कहा जाएगा कि अशोक गहलोत के सीएम बनने पर वसुंधरा राजे को पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से बंगला संख्या 13 ही अलॉट कर दिया गया। कांग्रेस सरकार बन जाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने अपने अंतिम दिनों के कार्यकाल में विधायकों को सरकारी आवास आवंटित कर दिए थे, लेकिन नए विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने मेघवाल के आवंटन आदेश को पलट दिया, लेकिन वसुंधरा राजे के बंगले से कोई छेड़छाड़ नहीं की। यानि राजनीति में दिखता है कुछ और होता कुछ अलग है। वसुंधरा राजे को उम्मीद थी कि वे बंगला संख्या 13 में आजीवन रहेंगी, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश से अब राजे को इस बंगले से बाहर निकलना होगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी जब उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती और अखिलेश यादव ने लखनऊ के सरकारी बंगले खाली नहीं किए थे, तो सामान बाहर फिकवाने की नौबत आ गई थी। बाद में अखिलेश यादव पर बंगले को क्षतिग्रस्त करने और नालों की टोंटी तक ले जाने के आरोप लगे। आखिलेश ने भी वसुंधरा की तरह मुख्यमंत्री रहते हुए अपने लिए सरकारी बंगला तैयार करवाया था। पूर्व होते ही अखिलेश ने इस बंगले को आवंटित करवा लिया। लेकिन बाद में बेईज्जत होकर अखिलेश को बंगला खाली करना पड़ा। राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री चाहते हुए भी वसुंधरा राजे के प्रति कोई नरम रुख नहीं अपना सकेंगे, क्योंकि यदि राजे ने बंगला खाली नहीं किया तो हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर होगी।
एस.पी.मित्तल) (04-09-19)
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