राजस्थान विधानसभा चुनाव में मात खा चुकी भाजपा अब वसुंधरा राजे के बगैर ही पंचायत चुनाव लड़ेगी।

राजस्थान विधानसभा चुनाव में मात खा चुकी भाजपा अब वसुंधरा राजे के बगैर ही पंचायत चुनाव लड़ेगी। लोकसभा चुनाव की तर्ज पर होगा प्रचार। सांसदों पर होगी बड़ी जिम्मेदारी। 

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विधानसभा चुनाव में मात खा चुकी भाजपा अब राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बगैर ही पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव लड़ेगी। राजस्थान में चार माह बाद ही पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव होने हैं। हालांकि मदनलाल सैनी के निधन के बाद अभी तक प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त नहीं हुआ है, लेकिन संगठन की सारी बागडोर संगठन महासचिव चन्द्रशेखर के पास है। चन्द्रशेखर की देखरेख में ही भाजपा का सदस्यता अभियान सफलतापूर्वक चला। अशोक परनामी जैसे वसुंधरा राजे के समर्थक चाहते हैं कि पंचायती राज चुनावों में राजे की सक्रिय भूमिका हो। लेकिन भाजपा राष्टीय नेतृत्व जानता है कि वसुंधरा राजे की वजह विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान हुआ। जिद के कारण राजे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। जबकि राजे का चौतरफा विरोध हो रहा था। यही वजह रही कि भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा। राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय करना चाहा, लेकिन राजे ने राष्ट्रीय राजनीति में कोई भूमिका नहीं निभाई। नाराज नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव में राजे की भूमिका नहीं के बराबर रखी। राजे के विरोध के बाद भी आरएलपी के हनुमान बेनीवाल से समझौता किया तथा गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को भाजपा में शामिल करवाया। चूंकि लोकसभा चुनाव में राजे की भूमिका नहीं थी, इसलिए सभी 25 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई। जब लोकसभा चुनाव में एक तरफा जीत हो सकती है, तो फिर पंचायती राज चुनाव में भाजपा विधानसभा चुनाव की गलती को क्यों दोहराएगी? लोकसभा चुनाव में भाजपा को 200 में से 185 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल हुई है। यहां तक की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत भी जोधपुर से चुनाव हार गए। मुख्यमंत्री रहते हुए वसुंधरा राजे ने राष्ट्रीय नेतृत्व को जिस तरह चुनौती दी, उसे भुलाया नहीं जा सकता। भाजपा को राजस्थान में सरकार गंवा कर कीमत चुकानी पड़ी है। ऐसा भ्रम फैलाया गया कि वसुंधरा के बगैर राजस्थान में भाजपा का कोई वजूद नहीं है। विधानसभा चुनाव में यह भ्रम खत्म हो गया। भाजपा के सूत्रों के अनुसार पंचायती राज के चुनाव संगठन के दम पर लड़े जाएंगे। सभी संसदीय क्षेत्रों में भाजपा के सांसद हैं। जिला प्रमुख से ग्राम पंचायत के सरपंच तक की जिम्मेदारी सांसदों को सौंपी जाएगी। प्रचार के लिए सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ही होगा। भले ही मोदी पंचायती राज के चुनाव में प्रचार के लिए नहीं आए, लेकिन मोदी सरकार की ग्रामीण विकास की योजनाओं को ग्रामीण मतदाता के सामने रखा जाएगा। केन्द्र की ग्रामीण विकास की योजनाओं में हर ग्रामीण को कुछ न कुछ लाभ पहुंचा है। ऐसे में किसी प्रादेशिक नेता के चेहरे की जरुरत नहीं है। वैसे मतदाताओं को सिर्फ मोदी के चेहरे पर ही भरोसा है। आलोचक कुछ भी कहें, लेकिन लोकसभा चुनाव में सिर्फ मोदी के चेहरे पर ही वोट मिले हैं।
एस.पी.मित्तल) (08-09-19)
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