प्रेरणादायक रहा आईआरएस नरेश सालेचा के पुत्र के विवाह का अशीर्वाद समारोह।

प्रेरणादायक रहा आईआरएस नरेश सालेचा के पुत्र के विवाह का अशीर्वाद समारोह।
लिफाफा, उपहार आदि लेने वाले राजनेता और अधिकारी सीख ले सकते हैं। 

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13 अक्टूबर को जयपुर के जेएलएन मार्ग स्थित एंटरटेनमेंट पैराडाइज आलीशान सेंट्रल लॉन में रेल मंत्रालय में संयुक्त सचिव स्तर के आईआरएएस नरेश सालेचा के पुत्र मिथुल के विवाह का आशीर्वाद समारोह हुआ। समारोह में मैंने देखा कि सालेचा और उनकी पत्नी श्रीमती निर्मला सालेचा ने किसी भी मेहमान से लिफाफा, उपहार आदि नहीं लिए। हालांकि कई मेहमान जबर्दस्ती लिफाफे को कोट की जेब में डाल रहे थे, लेकिन उतनी विनम्रता के साथ सालेचा ने लिफाफे को लौटा दिया। अजमेर रेल मंडल के सीनियर मैनेजर (डीआरएम) रहे सालेचा इस समय रेल मंत्रालय में वित्त विभाग के सबसे बड़े अधिकारी हैं। दिल्ली से मुम्बई के बीच बन रहे फ्रेट कॉरिडोर के वित्तीय कंट्रोलर हैं। न जाने कितनी कंपनियों के मालिकों के काम सालेचा के पास आते हैं। सालेचा के हस्ताक्षर से ही करोड़ों रुपए के भुगतान होते हैं। ऐसे में यदि सालेचा अपने पुत्र के विवाह के आशीर्वाद समारोह में लिफाफे और उपहार लेते तो नोटों का ढेर लग जाता। सबसे अहम बात तो यह है कि सालेचा ने उन्हीं को आमंत्रित किया, जिनसे उनके व्यक्तिगत संबंध हैं। असल में अनेक राजनेता और बड़े अधकारी ऐसे मौकों पर लिफाफों और उपहारों का मोह नहीं छोड़ पाते हैं। कई अधिकारी तो इस बहाने अपनी काली कमाई को सफेद कर लेते हैं। यानि आयकर विभाग में रिटर्न भरते वक्त लाखों रुपए की आय आशीर्वाद समारोह की दिखा दी जाती है। लेकिन सालेचा इन सब बुराइयों से दूर रहे। सालेचा की पत्नी भी दिल्ली में भारत सरकार में वरिष्ठ अधिकारी हैं। ऐसे में आर्थिक दृष्टि से सालेचा का परिवार मजबूत है। लेकिन लिफाफों और उपहारों मोह छोडऩा आसान नहीं होता है। जो राजनेता और अधकारी अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह के मौके पर लिफाफे और उपहार लेते हैं उन्हें सालेचा के परिवार से सीख लेनी चाहिए।  धनाढ्य व्यक्तियों के लिए यह तर्क बेमानी है कि जब हम लिफाफा देते हैं तो अपने परिवार के समारोहों में क्यों न लें। भारत की सनातन संस्कृति में कन्यादान की परंपरा है, जो पुत्री के विवाह पर होती है। लेकिन यह परंपरा भी धनाढ्य परिवारों पर लागू नहीं होती। नि:संदेह सालेचा ने समाज में प्रेरणादायक कार्य किया है, जिसकी प्रशांसा होनी चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (14-10-19)
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