खींवसर से आसान नहीं है हरेन्द्र मिर्धा के लिए हनुमान बेनीवाल के अभेद्य किले में सेंध लगाना।

खींवसर से आसान नहीं है हरेन्द्र मिर्धा के लिए हनुमान बेनीवाल के अभेद्य किले में सेंध लगाना। जातिवाद के प्रभाव के कारण राजनीतिक दल गौण।

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राजस्थान के नागौर जिले के खींवसर विधानसभा के उपचुनाव का परिणाम तो 24 अक्टूबर को ही पता चलेगा, लेकिन 21 अक्टूबर को होने वाले मतदान से पहले जो हालात बने हैं उसमें कांग्रेस प्रत्याशी हरेन्द्र मिर्धा के लिए हनुमान बेनीवाल के अभेद्य किले में सेंध लगाना आसान नहीं है। बेनीवाल अपनी आरएलपी के संयोजक होने के साथ-साथ नागौर के सांसद भी हैं। भाजपा ने यह सीट समझौते के तहत आरएलपी को छोड़ दी है। इसलिए हनुमान बेनीवाल खींवसर से तीन बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। चूंकि अब सांसद भी हैं, इसलिए खींवसर को बेनीवाल अभेद्य किला माना जाता है। खींवसर और नागौर में बेनीवाल के प्रभाव को देखते हुए ही भाजपा ने यह सीट छोड़ दी। अब अपने भाई को विधायक बनवाने में बेनीवाल कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि हनुमान बेनीवला का युवा में खासकर जाट समुदाय के युवाओंमें खास असर है। यही वजह है कि कांग्रेस के मुकाबले में नारायण बेनीवला का प्रचार भी आक्रमक है। जम्मू कश्मीर से अनुचछेद 370 को हटाने के बाद राष्ट्रवाद का जो माहौल बना है, उसका फायदा भी आरएलपी के उम्मीदवार को मिलेगा। हनुमान बेनीवाल आरएलपी के एक मात्र सांसद हैं। जो केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार को समर्थन दे रहे हैं। खींवसर से कांग्रेस की स्थित पहले भी कमजोर रही है। तीन बार से तो बेनीवाल ही कांग्रेस प्रत्याशी को हरा रहे हैं। लेकिन हरेन्द्र मिर्धा की सादगी और मिलन सारिता का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। चूंकि हरेन्द्र मिर्धा का बेनीवाल परिवार से कभी विवाद नहीं रहा, इसलिए मिर्धा के समर्थक आसानी से प्रचार कर पा रहे हैं। हरेन्द्र मिर्धा की उम्मीदवार से ही खींवसर के चुनाव शांति से हो रहे हैं। कांग्रेस को थोड़ा बहुत फायदा मिर्धा की उम्मीदवार से ही है। खींवसर के चुनाव में राजनीतिक दलों की स्थिति गौण हैं। समझौते में सीटे देकर भाजपा पहले ही मैदान से बाहर है और कांग्रेस पूरी तरह हरेन्द्र मिर्धा की छवि पर निर्भर है। भाजपा की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खींवसर के मंडल अध्यक्ष अपने साथियों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। लेकिन नारायण बेनीवाल की जीत को भी भाजपा अपनी सफलता मानेगी। नागौर में कांग्रेस संगठन भी एकजुट नहीं है। हालांकि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने खींवसर में जीत का दावा किया है, लेकिन इस दावे में कितना दम हैं, इसका पता 24 अक्टूबर को मतणगना वाले दिन चलेगा। चूंकि आरएएलपी और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार जाट समुदाय के हैं, इसलिए गैर जाट मतदाताओं में चुनाव को लेकर खासा उत्साह नहीं है। खींवसर विधानसभा क्षेत्र वैसे भी जाट बहुल्य हैं।
एस.पी.मित्तल) (16-10-19)
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