रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण के मुद्दे पर विवाद से बचाना चाहिए।

रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण के मुद्दे पर विवाद से बचाना चाहिए।
हिन्दू पक्ष भी थोड़ा धैर्य रखे। 

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18 अक्टूबर को भी टीवी चैनलों पर दिनभर अयोध्या में रामजन्म भूमि विवाद की खबरें चलती रही, जबकि ऐसी खबरों की अब कोई गुंजाइश नहीं है। अब तक सभी पक्ष मानते थे कि विवाद का हल आपसी सहमति से निकलना चाहिए। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित भूमि पर से अपना मालिकाना हक छोड़ देगा। बोर्ड के पदाधिकारी भी आए दिन अपने हक और बाबरी मस्जिद की बात करते थे, तब शिया वक्फ बोर्ड ने विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण की सहमति दी तो मुस्लिम संगठनों ने ऐसी सहमति को खारिज कर दिया। मुस्लिम संगठनों का कहना रहा कि भूमि विवाद में शिया वक्फ बोर्ड पक्षकार नहीं है। इसलिए इस बोर्ड की सहमति कोई मायने नहीं रखती हैं। यह कथन एक सीमा तक सही भी था, क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित भूमि को जिन तीन हिस्सों में बांटा उसमें से एक हिस्सा 2.77 एकड़ का सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया। सवाल उठता है कि अब जब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम की मध्यस्थता कमेटी के समक्ष हलफनामा देकर विवादित भूमि पर से अपना हक छोड़ दिया है तो फिर विवाद क्यों हो रहा है? ताजा खबरों में कहा जा रहा है कि सहमति के इस मुद्दे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड में भी विभाजन हो गया है। हालांकि सहमति के हलफनामे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य प्रमुख पदाधिकारियों के हस्ताक्षर हैं, लेकिन बोर्ड से जुड़े कुछ लोग अब इस समझौते को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। हो सकता है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड का आंतरिक मामला हो, लेकिन  18 अक्टूबर को देखा गया कि कुछ हिन्दू संगठन भी आपसी समझौते का विरोध करने लगे हैं। हिन्दू संगठनों का विरोध समझ से परे हैं क्योंकि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जो सहमति दी है उससे अयोध्या में जन्म भूमि स्थान पर राममंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है। यह माना कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आना शेष है। अभी यह भी देखना होगा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता कमेटी के माध्यम से जो सहमति दी है उस पर सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है। लेकिन देश में सद्भावना बनी रहे इसके लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड की सहमति बहुत मायने रखती हैं। असल में  सुन्नी वक्फ बोर्ड की सहमति के बाद अनेक मुस्लिम और हिन्दू संगठनों के हाथ से मंदिर निर्माण की डोर निकल गई है। ऐसा नहीं कि मुस्लिम संगठनों के नेता ही इस मुद्दे पर राजनीति करते आ रहे थे, हिन्दू संगठनों के प्रतिनिधि भी इस मुद्दे पर लगातार राजनीति कर रहे थे। लेकिन अब जब आपसी सहमति से मंदिर निर्माण का रास्ता निकल रहा है तो किसी भी पक्ष को विरोध नहीं करना चाहिए। हिन्दू पक्ष के प्रतिनिधियों को भी थोड़ा धैर्य रखना चाहिए। जो हिन्दू संगठन अब तक अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे थे, उन्हें धैर्य के साथ सुप्रीम के फैसले का इंतजार करना चाहिए। हो सकता है कि कुछ मुस्लिम संगठन ज्यादा ही उग्र हों, लेकिन उन्हें भी देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखना चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (18-10-19)
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